बना रही लोई

15-09-2021

बना रही लोई

अविनाश ब्यौहार (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

चलती बारिश में
बादल ने
बूँद पिरोई।
तरुणी है
मीठे-मीठे
सपनों में खोई॥
 
मेघ पाहुने केवल
पावस में रहते हैं।
सूखे की चपेट है
जेठ मास सहते हैं॥
 
और अमावस 
में रातें-
ज़ार-ज़ार रोईं।
 
चूल्हे का अपनापन
जैसे खो जाता है।
और समय बिस्तर पर
काँटे बो जाता है॥
 
अम्मा रोटी
पोने को
बना रही लोई।

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