बजट का हलवा

डॉ. हरि जोशी

भारतीय राजनीति का पारदर्शी सोच है कि सरकार कितना भी अच्छा हलवा तैयार कर जनसामान्य को परोसे, प्रतिपक्ष उसे ज़हरीला या कड़वा बताकर अस्वीकार्य कर ही देता है? "मिलावटी घी से बना है", इतना ही कह दे तो भी गनीमत है। चलो हलवे में डले काजू को मूँगफली बता दे? किशमिश या बादाम को सूखा महुआ या निम्बोली का बीज घोषित कर दे, पर इतना भी उदार नहीं? विरोधी सदस्य उसमें डले काजू किशमिश बादाम वगैरह को विषैले बीज बताकर ही दम लेते हैं। चीख-चीख कर बतलाते हैं, "यह हलवा ग्रहण करने योग्य नहीं है। स्वास्थ्य की दृष्टि से एकदम जानलेवा है।"

यदि प्रतिपक्ष उसे मात्र कड़वी गोली बता दे, तो सत्ता पक्ष इसपर उत्तर सटीक उत्तर दे सकता है। सरकारी पक्ष कहेगा, "कड़वी भेषज बिन पिये, मिटे न तन का ताप।" याने यदि आप इसे कड़वी गोली कहते हैं तो भी आपके स्वास्थ्य का हमने ध्यान रखा है। वित्त मंत्री और पूरी समर्थक टीम के लिए तो वार्षिक स्वीट डिश तैयार होती है। सरकार किसी की भी हो, पहले वह अपनी टीम का स्वास्थ्य देखेगी या बात-बात पर शोरगुल करने वाले निठल्लों का? विपक्ष को यदि भरपूर चिल्लाने की स्वाधीनता है तो सत्ता पक्ष को भी अपनी पसंद का हलवा बनाने की। यदि इतना भी न हो तो हम स्वाधीनता किसे कहेंगे?

दिल्ली के लोग इन दिनों में नॉर्थ ब्लॉक पर आक्रमण न करें तो एक गुप्त बात बता देता हूँ। कम लोगों को मालूम है कि जिस दिन बजट मुद्रण के लिए तैयार होता है, उस दिन वित्त मंत्री, दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में आते हैं, अपने नेत्रों से देखते हैं, कहीं आटा गीला तो नहीं हुआ? ग़रीबी में गीला आटा। ठीक-ठाक बन जाने पर पूरी टीम को चखाते/खिलाते हैं। अब क्योंकि हलवे में काजू, किशमिश, बादाम और अन्य मेवे सहकर्मी ही डालते हैं, इसलिए हलवे की प्रशंसा तो उन्हें करनी ही पड़ती है! क्या हलवा बना है! वित्त मंत्री इसलिए उस हलवे को स्वयं चम्मच से चलाते हैं, क्योंकि बाद में उन्हें प्रतिपक्ष को भी तो चलाना होता है। विरोधियों को भी, उनके चम्मच ही अधिक चलाते हैं? उनका काम तो एक बार सिर्फ़ घुमाना भर होता है। ताकि कहीं वह तली में चिपक कर, अधिक आँच के प्रभाव में, बेस्वाद न हो जाये? हलवा भी ऐसा बनना चाहिए जो तल में न चिपक पाये। कढ़ाई के या मुँह के तलवे में चिपक कर न रह जाये? सही हलवा तभी कहलाता है जब वह न तली में जले, न बेस्वाद हो ग्राहकों को खले! वैसे कई वित्त मंत्रियों ने ऐसे ही हलवे से हवालामार्ग प्रशस्त किया, रायता भी फैलाया, किन्तु सभी सत्तासीनों ने हमेशा उसे सर्वश्रेष्ठ हलवा ही घोषित किया।

असल में हलवा ही ऐसा व्यंजन है जो हर उम्र के व्यक्ति द्वारा पसंद किया जाता है। बच्चा हो, बूढ़ा हो या जवान। यह अलग बात है कि उसमें शकर की मात्रा कम की या बढ़ायी जा सकती है। मधुमेह के रोगियों के लिए कम मीठा। मौसम ठण्ड का रहता है, अतः बजट पर बात करने के लिए गर्म-गर्म हलवा खाने में कोई बुराई भी नहीं दीखती।

लगभग प्रत्यक सत्तासीन पार्टी के आश्रम में हलवे का प्रसाद इन दिनों मिलता है। एक भक्ति गीत भी है "तेरे दर पे आऊँगी, नाचूँगी गाऊँगी, माँ मुरादें पूरी कर दे, हलवा मैं चढ़ाऊँगी।" याने जब किसी पार्टी की बजट बनाने की मुराद पूरी हो जाती है तो वह हलवा चढ़ाती है।

राजनीति का महाकुम्भ सार्वकालिक है। किसी भी बड़े आश्रम के भक्त बन जाएँ, प्रसाद के रूप में हलवा ही मिलेगा। फिर अधिकांश दाढ़ी मूँछ रखने वाले हमारे यहाँ बाबाओं की श्रेणी में ही रखे जाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक मनमोहन बाबा का प्रसाद मिलता था, इन दिनों मोदी बाबा का मिल रहा है। बारी-बारी से मुरादें पूरी हो रही हैं इसलिए हलवा खिलाया जाता है। जिसकी मुराद पूरी होगी वही हलवा खिलायेगा।

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