बदबू की धौंस

15-04-2021

बदबू की धौंस

राजनन्दन सिंह (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

बदबू मद में चूर
वो अपनी बदबू पर इतराता है
गंदीबस्ती में बदबूहीन
जीवों का मुँह चिढ़ाता है
बीच सड़क गली चौराहों पर
बस्ती के चुने हुए कुछ बदबू वीर
देर रात तक जाने
किस मसले पर होकर गंभीर
खड़े-खड़े गंदी बस्ती की 
शान में छुछुआता है
आते-जाते चूहों पर
बदबू की धौंस जमाता है
छछूंदर की बदबू 
जो एक घृणा है
चूहों को हड़काता है
बदबू जो एक ताक़त है
छछूंदरों को मान दिलाता है
बदबू की जिसमें ताक़त है 
वह अपना लोहा मनवाता है 
जो चूहा बदबू भाँप गया
बदबू के भय से काँप गया
जो बदबू को हाथ जोड़ता
आदरभाव दिखाता है
सही सलामत गली बदलकर
और राह अपनाता है
 
कुछ नादान चूहे
छछूंदर की क्षमता से अनजान
जो बात समझ नहीं पाता है 
या अक्कड़पन दिखलाता है
छछूंदर की फ़रमाइश पर
यदि माचिस देने लग जाता है
वह बदबू में धँस जाता है
वह बदबू में फँस जाता है

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