बचपन की याद

15-06-2019

बचपन की याद

भानु प्रताप सिंह

धूमिल यादों के बीच
बचपना जब लौट आता है,
सुरभित होते है दिगंत 
पवन का झंझावात॥

 

मरांद उत्सव सा वह पीत पराग
क्रीड़ा स्थल का वह अनुराग
रत्न सौंध सी वह मिट्टी
मरु मरीचिका सी वह सृष्टि॥

 

सुनहरी लगती थी संसृती 
कितनी अच्छी थी स्मृति
दग्ध हृदय कहता इकबार
उसका फिर हो अभिसार॥

 

एक बार फिर देखा छिन्नतार
कोई नहीं बचा सुनी झनकार
अकेला पथिक कहां तक जाऊँ
जीवन का अभिषेक कहाँ कर पाऊँ॥

 

मौन रहूँ या व्रत तोड़ूँ
या जीवन की डगर मै छोड़ूँ
तुम्हीं बता दो हे नाथ
कैसे पाऊँ खोया प्रात॥


 

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