बात की बात
अंजुम कानपुरीज़मीं पे रहता हूँ मैं और सितारों की बात करता हूँ।
ख़ुदा की ज़न्नत उसके नज़ारों की बात करता हूँ।
कहाँ क़रार आया है जहान में रह के कहीं मुझको,
वस्ल ओ इश्क़ के मैं तो करारों की बात करता हूँ।
रहा हूँ सहरा में हर-दम चमन से वास्ता नहीं कोई,
ग़ज़ब ये देखिये फिर भी बहारों की बात करता हूँ।
अगर देखो तो गुनाहों की मेरी फेहरिस्त लम्बी है,
गुनाह औरों के और गुनहगारों की बात करता हूँ।
मैंने जाना नहीं ये कुदरत इशारे में क्या कहती है,
रहम अल्लाह के उनके इशारों की बात करता हूँ।
नहीं देखी कभी भी तो तपिश किसी आग की मैंने,
कहीं पर आग की कहीं अंगारों की बात करता हूँ।
दामन तार नहीं मेरा ख़ार कोई चुभा नहीं मुझको,
ग़ुलों के रंग-ओ-बू की मैं ख़ारों की बात करता हूँ।
हुआ है क्या मुझे अंजुम कितना उलझ गया हूँ मैं,
ख़ुद तआर्रुफ नहीं मेरा हज़ारों की बात करता हूँ।