बात अनकही सी...!

20-01-2019

बात अनकही सी...!

आस्था

झिझकते डरते हुये
एक नज़्म लिखी
मैंने भी...

एक अनजान चाह है
एक आस है गुमनाम सी..
मन को खोलना है
हर बात कहनी है दिल की
पर जाने क्यूँ
बात कहते हुये भी
रह जाती है
अनकही सी.....

जुबां खुलती नहीं
शब्दों को ढूँढती है
कहना है बहुत कुछ
पर कैसे कहें...?
आँखें मिलें तो 
नज़र से कहूँ भी...

झिझकते डरते हुये
एक नज़्म लिखी
मैंने भी...!

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