बादल भैया

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बहुत तेज़ गर्मी है मम्मी
कहाँ गया बादल का पानी।
सूखी सूखी सी धरती है
कहाँ गई वो चूनर धानी।
 
रूठ गए हैं बादल भैया,
कोई उन्हें मना कर लाओ।
बादल भैया बादल भैया ,
क्यों रूठे तुम ये बतलाओ।
 
पेड़ सभी तुमने काटे हैं,
बोलो मैं कैसे आ जाऊँ?
वर्षा बूँदें इनसे बनती,
अब कैसे पानी बरसाऊँ?
 
प्रकृति संग खिलवाड़ किया है,
धुएँ भरे संयंत्र लगाए।
पर्यावरण नष्ट कर तुमने ,
काट वनों को शहर बनाये।
 
बादल भैया बादल भैया ,
आज क़सम हम सब धारेंगे।
पाँच पेड़ हर साल लगायेंक,
हम पर्यावरण सुधारेंगे।

घन घन घन घन घोर गरज कर,
बरस रहें हैं बादल भैया।
कितना मज़ा आ रहा मम्मी,
गोलू नाचे ता था थैया।

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