अवसर कितने? 

15-07-2021

अवसर कितने? 

सुशील यादव (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

(दोहा-गीत)

 

तुझसे मिलती है हमें, 
एक अलग पहचान।
तेरे दम से पा रहे, 
होठों में मुस्कान॥
 
तुम्ही अगर रूठ गए,
जीवन भर पछताएँगे।
 
तुम में फूलों सी महक,
दुर्दिन रखती ज्ञान।
तम से डरता मैं रहा, 
सोच दिवस अवसान॥
 
तुम छूटे, दुर्दिन बोलो, 
साथ किसे लख पाएँगे।
 
हम विवाद में डूबे से, 
नहीं सधे तैराक।
कैसे उतरें पार हम, 
प्रश्न अजीब अवाक॥
 
उत्तर पाने ख़ातिर,
चक्कर कहाँ लगाएँगे।
 
मनसूबों  पानी फिरा, 
आयोजन सब हैं बंद।
सुर में अब क्या लिखें,
मुस्कानों के छंद॥
 
रूप नगरी तुमसे मिलने,
अवसर कितने आयेंगे।

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