...और सत्संग चलता रहा

20-02-2019

...और सत्संग चलता रहा

डॉ. नरेंद्र शुक्ल

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे ज्ञान व भक्ति का एक ऐसा प्रयाग हैं जिसमें कोई भक्त बिना किसी भेद-भाव के डुबकी मार सकता है।

भक्तो, संत कबीर ने कहा है ...
जाति-पाति पूछे नहीं कोई
हरि को भजि तो हरि का होई।

यहाँ कोई राजा रंक नहीं। कोई निर्बल नहीं। कोई अनाथ नहीं है। सब के साथ सर्वशक्तिमान प्रभु स्वयं खड़े हैं। प्रभु के हाथ बहुत विशाल हैं। उनके आशीर्वाद की छत्रछाया सभी भक्तों पर समान रूप से हैं। प्रभु-दरबार सबके लिये खुला है। सुबह-शाम, जब भी किसी दुखिया को प्रभु की याद आये, वह यहाँ आ सकता हैं। कोई पाबंदी नहीं। प्रभु अपने सौ भक्तों में से भी पीड़ित को पहचान लेते हैं। उसके दर्द को अनुभव कर लेते हैं। प्रभु संवेदनशील हैं। वे एक क्षण के लिये भी अपने भक्त की पीड़ा बरदाश्त नहीं कर सकते। प्रभु का स्वरूप प्रकृति के कण-कण में हैं ...पहुप बास ते पातरा ऐसा तत अनूप अर्थात प्रभु फूल में खूशबू की तरह बसे हैं। ..यहाँ सभी भक्तों के साथ बैठे हैं उनके दिलों में विराजमान हैं। मेरा आशीर्वाद यहाँ आये सभी भक्तों के साथ है। सबके कष्ट दूर होंगे ..बस आप सब इसी तरह से बाबा पर अपनी आस्था, विश्वास व सम्पर्ण की भावना बनाये रखना। परमात्मा को प्राप्त करके इस जन्म और मरण के चक्र से मुक्ति पाने का यही रहस्य है। मानव में अपने इष्ट को प्राप्त करने के लिये प्रेम-रस का उद्गम होना अत्यंत आवश्यक है। प्रेम आत्मा-परमात्मा के मिलन-पथ की पहली सीढ़ी है। सभी भक्तों का कल्याण होगा। इस संसार में प्रभु कई रूपों में अवतरित हुये हैं। उनके सभी रूपों में से कृष्ण रूप सबसे उत्तम है। यह आत्मा व परमात्मा में प्रेम की भावना उत्पन्न करता है। प्रेम में आकर्षण है ....आलिंगन है। रस है। अमृत है। अगर आप प्रभु को हासिल करना चाहते हैं तो आप सब भक्तों को लोक-लाज, मोह-माया तजकर मुझसे प्रेम करना होगा। मैं भगवान हूँ। इस प्रेम-मार्ग में शारीरिक पवित्रता की अपेक्षा मन की पवित्रता, आस्था व विश्वास आवश्यक है।"

"...परदेसिया, तू है मेरा पिया
तुझ बिन तड़पे जिया
..ओ परदेसिया ..तू है मेरा पिया।
घूँघट की आड़ में, दिलवर का दीदार अधूरा रहता है
जब तक न पड़े साजन की नज़र, शृंगार अधूरा रहता है।
घूँघट की आड़ में, दिलवर ...।"

पीड़ाहरि बाबा परमात्मा की भक्ति में लीन होकर अपनी ख़ास चेलियों के साथ मंच पर डांडिया खेलने लगते हैं।

सामने पंक्तिबद्ध बैठे सभी भक्त हाथ जोड़कर कर श्रद्धा भाव से गाने लगते हैं-

"परदेसिया, तू है मेरा पिया
तुझ बिन तड़पे जिया
..ओ परदेसिया ..तू है मेरा पिया।"

मंच के ठीक सामने लगी पंक्तियों में सबसे पिछली पंक्ति में बैठी ताई बड़े ध्यान से बाबा जी के प्रवचन सुन रही थी। भक्तों के गाने व जयघोष की तेज़ आवाज़ में प्रवचन ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था। उसने साथ आई धोबिन फुलिया से पूछा- "री फुलिया, क्या हम बाबा के सामने सबसे अगली लाइन में नहीं बैठ सकते?"

"काहे नाहीं बैठ सकते ताई ..पर सुना है कि प्रभु के सामने सबसे अगली लाइन में वही भक्त बैठ सकता है जो कठोर तपस्या व त्याग करने का बूता रखता हो।"

" ...तपस्या तो ठीक है ..पर त्याग ..त्याग किस चीज़ का! प्रभु तो स्वयं मालामाल हैं ..। उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता?" ताई ने हैरानी से कहा।

"मेरा मतलब यह है कि ..जो सांसारिक मोह-माया का बंधन त्याग के प्रभु के चरणों में अपना तन-मन-धन सब कुछ समर्पित करने का प्रण लेता है वही प्रभु के चरणों में स्थान पाने का अधिकारी हो सकता है।"

" ..वैसे मुझे ज्यादा तो नहीं मालूम ..पर, मेरी सखी, साध्वी मयूरी कह रही थी कि प्रभु के सामने अगली लाइन में समाज व परिवार से तिरस्कृत व पीड़ित भक्तों को ही बैठाया जाता है ताकि प्रभु का आशीर्वाद रूपी फल सीधे उनकी झोली में गिरे और उनकी पीड़ा दूर हो।"

ताई को अपनी पीड़ा का आभास होने लगा। नंदिनी के बापू व उसके पति सुधाकर पाँडे के स्वर्गवासी होते ही उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। जिन बेटों को पाने के लिये उसने उपवास किये, देवी-देवताओं की अराधना की, दूर पहाड़ों पर बने मंदिरों में जाकर मनौतियाँ माँगी। ..जिनको दूध पिलाकर बह हाड़-मास हो गई ..आज वही उसकी एकमात्र पूँजी ...यह घर हथियाना चाहते हैं। ..अपनी सगी माँ व मानसिक-रूप से अपंग अपनी असहाय बहन नंदिनी को बेघर करने पर तुले हुये हैं। दाने-दाने को मोहताज़ कर दिया है। बहुयें भी उस बेचारी पर अत्याचार करने से बाज़ नहीं आतीं। बड़े की बहू रीटा तो बड़ी निर्दयी है ..अभी कल ही की तो बात है ..सुबह जल्दी उठकर बिटटू को तैयार न कर पाने व स्कूल की बस छूट जाने पर रीटा ने नंदिनी को इतना मारा कि वह बेहोश हो गई। ..वो तो भला हो प्रोफेसर साहब का जिन्होंने घर का गेट फाँदकर उसे बचाया ..नहीं तो वह उसे मार ही डालती ...पर, गलती उसकी अपनी ही है ..जो मंदिर जाते हुये उसने नंदिनी को नहीं जगाया। ...मैं भी क्या करूँ माँ हूँ न ..। बेचारी सारा-सारा दिन घर का काम करती रहती है। खाने को भी ढ़ग से नहीं मिलता। इस पर वह दो घड़ी सो भी न पाये ... मुझसे उसका दुःख नहीं देखा जाता। ..बेचारी चीथड़ों में लिपटी रहती है। छोटे की विमला रानी भी कम नहीं है। उसकी नज़र नंदिनी के गहनों पर है। ..कल कह रही थी मम्मी तुम नंदिनी की चिंता बिल्कुल न करो। यह मेरी छोटी बहन की तरह है ..वो तो कल मैं अपने मायके गई हुई थी ..वरना क्या मज़ाल कोई उसकी तरफ आँख उठा कर देख भी ले। जीना हराम न कर दूँ तो पहलवान तिवारी की बेटी नहीं ..यही विमला मुझसे दो महीने तक नहीं बोली थी जब करवाचौथ पर मैंने उसे नंदिनी के गहने देने से मना कर दिया था। ..खोखला प्यार है ..केवल दिखावा है ..सब जानती हूँ ..सब के सब धन के लोभी हैं ..मक्कार हैं। ..सूअर का बाल है इनकी आँखों में। ... वो तो जाते हुये "ये" यह घर मेरे नाम कर गये ...वरना ये हमें कब का दूध में मक्खी की तरह इस घर से निकाल बाहर कर चुके होते। खैर ..कोई बात नहीं ..परमात्मा के घर देर है अंधेर नहीं ..बस, प्रभु मेरी कोमल ..मासूम बच्ची को ठीक कर दें। ..उसका हकलाना और नींद में चलना बंद हो जाये तो मैं अपनी नंदिनी की शादी करके सदा के लिये यहीं .. प्रभु के आश्रम में ही आ जाऊँगी ..उसने अपने आँसू पोंछ लिये। नुक्कड़ वाली पनवाड़िन रेखा कह रही थी कि ताई पीड़ाहरि बाबा के पास हर मर्ज़ की दवा है। उनके पास अनेक सिद्धियाँ हैं। बाबा जी मनुष्य तो क्या पशुओं तक के शारीरिक दोषों को दूर कर देते हैं। पड़ोस की मिसराइन के बच्चा नहीं हो रहा था। ..ब्याह को सात साल हो गये थे। उसने कोई दवा-दारु नहीं छोड़ी। डॉक्टर, पंडित, मौलवी सभी को दिखाया लेकिन कोख जस की तस ..बंजर ही रही। ..बेचारी बड़ी परेशान थी ..दो-दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुकी थी। घर के बड़े-बूढ़े सभी ताने देते थे। मुझसे उसका दुःख देखा नहीं गया। मैं उसे बाबा के पास ले आई ..और बाबा के आशीर्वाद से पिछले महीने से वह पेट से है। ..और तो और वो तुम्हारे पड़ोसी ननकउ का बेटा बिलेसर ..देखा था ..बाप को कैसे पीटता था दोनों मे एक क्षण के लिये भी नहीं बनती थी। बाबा की शरण में आते ही दोनों में इतना प्यार पैदा हो गया अब हर हफते विलेसर खुद अपने लगड़े बाप को पीठ पर लाद कर सत्संग छोड़ जाता है। धन्य हो महाराज ..ताई ने हाथ जोड़ लिये।

"ताई चलो ..सत्संग खतम हो गया," फूलिया ने ताई का हाथ पकड़कर उठाते हुये कहा।

"..हूं ..क्या सत्संग खतम हो गया ..पर मुझे तो बाबा से मिलना है! ..नंदिनी के बारे में बात करनी है," ताई ने जैसे नींद से जागते हुये हड़बड़ी में कहा।

"ताई अब कल आयेंगे। मेरी साध्वी मयूरी से जान-पहचान है। तू घबरा न ..मैं उससे मिलकर प्रभु से मिलने की कोई तरकीब निकालती हूँ ..लेकिन इसके लिये कुछ भेंट का इंतज़ाम करना होगा।"

"कैसी भेंट फुलिया ..प्रभु तो स्वयं त्यागी हैं। मोह-माया के बंधन से परे हैं," ताई ने प्रभु के निष्छल स्वरूप का बखान करते हुये कहा।

"वो तो ठीक है ताई लेकिन, साध्वी मयूरी का कहना है कि प्रभु चरणों में खाली हाथ जाने से बरक्कत नहीं होती। मनोरथ सफल नहीं होता। मानव को अपना सब कुछ अपने अराध्य की सेवा में न्योछावर कर देना चाहिये ..और फिर ...वह कुछ उपहार लिये बिना मेरा काम थोड़े ही करेगी। गाँव में उसे अपने छोटे भाई को पढ़ाने के लिये हर महीने कुछ न कुछ भेजना पड़ता है। ताई तू केवल दो हज़ार का प्रबंध कर ले ..बाकि मैं देख लूँगी," फुलिया ने सीधे-सीधे एक साथ सब कुछ कह दिया।

" ..ठीक है कोई बात नहीं ..अपनी बेटी नंदिनी के लिये मैं कुछ भी कर सकती हूँ पर, कल प्रभु दर्शन तो हो जायेंगे न! ताई बात पक्की कर लेना चाहती थी।"

"हाँ, हाँ क्यों नहीं ..मैं आज ही मयूरी से बात करूँगी ...पर, तू कल सुबह सत्संग शुरू होने से कम से कम दो घंटे पहले ठीक आठ बजे पनवाड़िन की दुकान के पास मिलना। दोनों एक साथ आश्रम चलेंगे।" उस दिन पूरी रात ताई को नींद न आई। रह-रह करवटें बदलती रही। ..आज साक्षात प्रभु की झलक पाकर उसे विश्वास हो गया था कि वे उसकी फूल सी कोमल बेटी को अवश्य अच्छा कर देंगे। प्रभु की कृपा व मंत्र-जाप से वह हकलाना व नींद में चलना छोड़ देगी ..और फिर सुंदर सा राजकुमार देखकर वह अपनी नंदिनी की शादी कर देगी। ताई ने साथ लेटी हुई नंदिनी का माथा चूम लिया। नंदिनी ने प्यार से अपनी माँ के गले में बाहें डाल दीं।

सुबह ताई मुह अँधेरे ही उठ गई। घड़ी में देखा पाँच बजकर बीस मिनट हुये थे। ताई ने जल्दी-जल्दी घर का सारा काम-काज निपटाया और साढ़े छः बजे तक वह नहा-धो कर तैयार हो गई। आज उसकी बूढ़ी हड्डियों में न जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गई थी कि वह आज बड़े से बड़ा पहाड़ भी धकेल सकती थी। उसने अपना लाल रंग का छोटा सा पर्स उठाया खोल कर देखा। पेंशन के पूरे पाँच हज़ार रुपये पड़े थे। ताई ने एक-एक हज़ार के दो नोट अपनी साड़ी के पल्लू में बाँधे और घर से निकल आई। गाँव की छोटी-छोटी गलियों से होते हुये वह पनवाड़िन रेखा की दुकान के पास पहुँची। उजाला होने लगा था। वहीं बरगद के पेड़ के पास खड़े होकर वह फुलिया का इंतज़ार करने लगी। सड़क के दोनों ओर जंगल-पानी के लिये जाने वाले लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था। लगभग बीस मिनट इंतज़ार करने के बाद फुलिया हाँफते हुये वहाँ पहुँची। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। ताई ने पूछा- "फुलिया, आधा घंटा हो गया यहाँ खड़े-खड़े। तू कहाँ रह गई थी।"

फुलिया ने हाँफते हुये कहा- "ताई आज तो गज़ब हो गया था। पिंकी के पापा जाग गये थे तुम्हें तो मालूम ही है कि वे साधू-संतों से कितनी नफरत करते हैं। ..उन्हें पीड़हरि बाबा के चमत्कारों पर जरा भी विश्वास नहीं। परसों कह रहे थे लम्पट है साला। हमेशा औरतों के पीछे रहता है ..मक्कार है ..तांत्रिक क्रियाओं व झाड़-फूँक से मासूम गाँव वालों में अंधविश्वास फैलाता है ...डरा-धमकाकर भोले-भाले लोगों की ज़मीनें हड़पता है। अपहरण करता है। अपने फायदे के लिये हत्याएँ तक करने में भी उसे गुरेज नहीं। गाँजा अफीम और ..वो क्या कहतें हैं मर्दाना शक्ति बढ़ाने के नाम पर नकली दवाओं का व्यापार करता है। सुना है ...आश्रम के पैसों को सूद पर चढ़ाया हुआ है। यह आश्रम नहीं ..चोरी, डकैती, अपहरण, लूट और बाबा की अय्याशी का अड्डा है। ख़बरदार, जो वहाँ गई। ..फुलिया तू देख लेना एक दिन यह पाखंडी बाबा कानून की गिरफ़त में ऐसा फँसेगा कि इसका अगला-पिछला सब निकल जायेगा। आज जो पालीटिशियन वोटों के लालच में इसके साथ खड़े हैं कल सब इससे कन्नी काट लेंगे। ..भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। ..पाप का घड़ा एक न एक दिन अवश्य फूटता है।"

ताई डर गई। उसकी आँखों में बाबा का ख़ौफ़ साफ दिखाई देने लगा। फुलिया ने शिकार हाथ से फिसलता हुआ देखकर बात पलटते हुये कहा- "ओह हो ताई! तुम बेकार में डर रही हो। कहीं ऐसा थोड़े ही होता है। तुम घबराओ नहीं ये तो इनके दोस्त विक्रम की लगाई हुई आग है जिसे दो महीने पहले आश्रम में चोरी के आरोप में पुलिस ने पकड़ा था। पीड़ाहरि बाबा तो साक्षात भगवान हैं। देखा नहीं था कितना तेज था माथे पर। चेहरे पर अपार शांति व सुकुन लिये सत्संग में जब वे प्रवचन देते हैं तो ऐसा लगता है जैसे फूल झर रहे हों। प्रभु पीड़ित को देखते ही जान जाते हैं कि उसे क्या पीड़ा है। ..धन्य हो महाराज ...।" श्रद्धा स्वरूप फुलिया दोनों हाथ जोड़ते हुये कहा।

बाबा के प्रति फुलिया की श्रद्धा भावना देखकर ताई के चेहरे पर एक बार फिर से उम्मीद की रेखा उभर आई- "फुलिया, तू बातें ही करती रहेगी ..या चलेगी भी। आठ बजने को हैं। अभी तूझे मयूरी से भी मिलना है।"

फुलिया ने ताई का हाथ पकड़ते हुये कहा- "ताई, तू इसकी चिंता छोड़ दे। मेरी मयूरी से कल ही बात हो गई है। ..आज तू प्रभु से अवश्य मिल पायेगी ..पर तू पैसे तो लाई है न! ..मयूरी उधार बिल्कुल नहीं करती।"

"हाँ-हाँ क्यों नहीं। ..यह ले दो हज़ार रुपये, ठीक से गिन ले ..पूरे दो हज़ार हैं। ताई ने साड़ी के पल्लू में बंधे रुपये खोल कर देते हुये कहा।"

" ..क्यों शर्मिंदा कर रही हो ताई ..मैं क्या तुम्हें नहीं जानती। सारी दुनिया फ़रेब कर सकती है पर तुम ..कभी नहीं।" फुलिया ने रुपये ब्लाउज़ के अंदर रखते हुये ताई पर अपना विश्वास जताया। इस तरह इधर-उधर की बातें करते हुये दोनों आश्रम पहुँच गये। आश्रम के बाहर शांति थी। चारों ओर अगरबत्ती व धूप की खुशबू आ रही थी। टैंट में बाबा का विशाल मंच और उस पर रखे हुये झूले के ठीक सामने दरियाँ बिछ रही थीं। सामने लगे पर्दों पर बाबा की फोटो बनाई गई थी। सत्संग आरम्भ होने में अभी काफी समय था। लिहाजा़, इक्का-दुक्का भक्त ही नज़र आ रहे थे। ताई इस भव्य सत्संग स्थल की सजावट देखकर चकाचौंध थी। ..कल सत्संग में वह लगभग दो लाख श्रद्धालुओं के पीछे बैठी थी ...इसलिये संतसंग स्थल की भव्यता को न देख पाई थी।

"ताई, तू यहाँ दरी पर बैठ मैं बाबा से तेरी मीटिंग फिक्स करा के आती हूँ," फुलिया ने प्रोफेशनल अंदाज़ में कहा।

"ठीक है फुलिया पर तू जल्दी आना ..सत्संग शुरू होने में बस अब आधा घंटा ही रह गया है," ताई ने वहीं दरी पर बैठते हुये कहा।
"तू चिंता न कर ताई। तू अब प्रभु के दर पर है आज तेरी पीड़ा का अंत अवश्य होगा।"

फुलिया आश्रम से लगभग दो सो गज़ पर दायीं ओर बनी अनेक कुटियाओं में से एक कुटिया के दरवाज़े पर जाकर ठिठक गई। कुटिया के भीतर से पीड़हरि बाबा की कड़क आवाज़ आ रही थी- "चोर ...साले ..सब के सब चोर। इन्हें मोटी पगार चाहिये। आश्रम की गाड़ियों से तेल चुरा कर बेचते हैं। भक्त लाने के एवज़ में मोटा कमीशन चाहिये। ...देते हैं तुम्हें कमीशन," ...चटटाक ..चटटाक थप्पड़ों की आवाज़ आने लगी।

"कमीशन माँगेगा तू सूअर ..कमीशन चाहिये ..ये," ले चटटाक .."ये ले" ..धड़ाक घूँसों की आवाज़ आने लगी। "शमशेर बहादुर ..दीदार सिंह ..जाओ दुःखभंजन कुटिया में ले जाकर इनका इलाज करो। ज्यादा चर्बी चढ़ गई है। ..साले फ़्री का माल उड़ा-उड़ा कर भैंसे होते जा रहे हैं।"

फुलिया ने देखा दो दैत्य सरीखे गुंडे ड्राइवर रामशब्द और आश्रम में काम करने वाले रसोइये बंसी को कॉलर से पकड़कर घसीटते हुये दरवाजे से निकले। फुलिया यह सब देख-सुन कर एकबारगी काँप गई। वह अब तक आश्रम के लिये चार भक्त ला चुकी थी लेकिन कमीशन उसे केवल एक का ही मिला था। वह सोचने लगी ..हाय अब वह बाबा से अपना कमीशन कैसे माँगेगी। बाबा गुस्से में हैं। भक्त फुसला कर लाने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ..पर कुछ भी हो ... आज वह अपना कमीशन ले कर रहेगी। हिम्मत करके वह कुटिया के भीतर दाखिल हो गई। बाबा अपने सेवकों से घिरे थे। वह एक ओर कोने में साध्वी मयूरी के पास हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। बाबा ने अपने सेवकों को समझाते हुये कहा- "इस आश्रम को ऐसे जूनूनी अनुयायियों की आवश्यकता है जिनमें आग हो। चीते जैसी फूर्ति हो और हाथियों जैसा बल हो। ..ऐसे चोरों और मरियल गधों की यहाँ तनिक भी आवश्यकता नहीं है। ..चल मीनू मेरी मालिश कर दे ..संतसंग का टाइम हो रहा है। पीड़ाहरि बाबा ने साध्वी मीनू की ओर इशारा करते हुये कहा।"

" ..अरे राधे, तूने हमारे नहाने वाले पोंड में फ्रेश गुलाब जल भरा की नहीं ..बाबा ने सेवक राधे को अवाज़ लगाई।"

"अभी भर कर ही आ रहा हूँ प्रभु ..आपकी आज्ञानुसार केसर युक्त साबुन भी रख दिया है," राधे ने कुटिया में प्रवेश करते हुये कहा।

" .ठीक है ..," बाबा साध्वी गुंजन के सहारे उठ खड़े हुये।

"प्रभु की जय हो ..मैं आपकी दासी मयूरी और इसे तो आप जानते ही हैं-एस.ए 1474 देवीगंज वाली फुलिया।"

बाबा ने पीछे घूमकर देखा ..काला रंग, मोटा शरीर, अनघड़ नयन-नक्श वाली फुलिया ..बाबा ने मुँह फेर कर झल्लाते हुये कहा- "इसे क्या हुआ है? हर महीने अपना कमीशन तो ले जा जाती है ..और क्या चाहिये इसे?"

"प्रभु यह एक मालदार भक्त लाई है। उसके पास देवीगंज में आलीशान कोठी है।"

"हूं ..क्या कष्ट है उसे ..?"बाबा को भक्त में दिलचस्पी पैदा हुई।

"प्रभु उसे कोई कष्ट नहीं है। वह तो अपनी पंद्रह साल की बेटी जिसे नींद में चलने की बीमारी है.. के इलाज के लिये यहाँ आई है।"

"हूं ..ठीक है। उसका इलाज अवश्य किया जायेगा। सत्संग में तुम उसे सबसे अगली पंक्ति में बैठा देना ..देख लेंगे..।"

पीड़ाहरि बाबा कुटिया से बाहर निकल गये। फुलिया ने मुस्कराते हुये एक हज़ार का एक नोट साध्वी मयूरी को दिया और लगभग भागती हुई वापिस ताई के पास पहुँची- "ताई सब फिक्स हो गया। अब तू यहीं प्रभु के मंच के पास सबसे अगली पंक्ति में बैठ .. प्रभु तेरा कल्याण करेंगे। मैं चलती हूँ .. ये उठ गये होंगे ..और तुझे तो इनका पता ही है । आसमान सिर पर उठा लेंगे," फुलिया ने चलते हुये कहा।

बाबा के एकबारगी हाँ ने बकाया कमीशन न मिलने का दुःख कुछ कम कर दिया था। संतसंग ठीक दस बजे आरंभ हुआ। इस दौरान बाबा ने प्रसाद के रूप में गेंदे का एक फूल ताई की झोली में फेंका। ताई धन्य हो गई वहीं माथा निवाकर, ताई ने प्रभु के आशीर्वाद को क़बूल किया। बाबा ने अगली पंक्ति में बैठे कुछ अन्य पीड़ितों की झोली में भी प्रसाद स्वरूप गेंदे के फूल गिराये। सत्संग समाप्त होते ही प्रसाद धारण किये हुये सभी भक्त, प्रभु सेवकों की टोली के साथ आश्रम के दायीं ओर पीपल के पेड़ से सटी कुटिया की ओर चल पड़े। भक्तों के अनुसार यहाँ पीपल के पत्तों से ढकी इस कुटिया में प्रसादधारी पीड़ित भक्त, प्रभु से सीधे संवाद कर सकते हैं। यहाँ सभी की पीड़ा दूर की जाती है। अन्य भक्तों की तरह ताई भी कुटिया के सामने बिछी दरी पर बैठ गई। कुटिया के दरवाजे से केसर युक्त अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी। कुटिया के दरवाजे के आगे सफेद रंग का एक झीना परदा लटक रहा था। बाबा को कोई छू नहीं सकता था। साध्वी गौरी ने वहाँ बैठे सभी भक्तों को बताया कि यह संवाद कुटिया है। यहाँ कोई परदा पहीं है। यहाँ सब कुछ खुला है। यहाँ इशारों की कोमल भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसलिये भक्त अपने मन की सभी शंकायें एक ओर रखकर एकाग्रचित्त हो प्रेमपूर्वक प्रभु की भक्ति में आास्था व विश्वास बनाये रखें। प्रभु साक्षात आपके समक्ष विराजमान हैं। भक्तजन निःसंकोच भाव से अपनी व्यथा प्रभु के समक्ष रख सकते हैं। प्रभु के आशीर्वाद से सबकी पीड़ा दूर होगी। उजले सफेद रंग का चोगा, गले में रुद्राक्ष, सिर पर सफेद रंग की पगड़ी तथा पगड़ी के एक कोने पर मोर पंख लगाये पीड़ाहरि बाबा ने धीरे से अपनी आँखें खोली और सामने बैठी 24-25 वर्ष की एक गौरवर्ण युवती की ओर इशारा कर के उसे अपने पास बुलाया। बाबा ने उसकी आँखों में देखते हुये कहा- "तेरे परिवार में संकट है। तेरा पति तेरे वश में नहीं है। वह शराब पीकर तुझे पीटता है। ...सब तेरे पिछले कर्मों का फल है। शुक्रवार शाम सूरज ढलने पर मेरी "उद्धार कुटिया" में आ जाना। तेरा कल्याण होगा।"

युवती बाबा के समक्ष हाथ जोड़, सिर निवा के चली गयी।

"तेरा बेटा कार एक्सीडेंट में घायल हो अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। घबरा मत माई। पूजा-अर्चना पर विश्वास रख। सब ठीक हो जायेगा। प्रभु बच्चे को अवश्य बचायेंगे। बुधवार को सुबह पाँच बजे 10 ग्राम के पाँच सिक्कों व हवन सामग्री के साथ "यज्ञ कुटिया" में आ जाना, उपचार किया जायेगा।"

एक के बाद एक भक्तजन अपनी पीड़ा का इलाज पाकर जाते रहे। सबसे अंत में पीड़ाहरि बाबा ने ताई को बुलाया। ताई हाथ जोड़ बाबा के सामने बैठ गई। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। बाबा ने कहा- चिंता मत कर माई। तेरी बेटी नंदिनी अवश्य अच्छी होगी। उसे इंद्र सा राजकुमार मिलेगा। हम स्वयं साधना करेंगे। अनुष्ठान करेंगे। तू एक सप्ताह के लिये उसे आश्रम छोड़ दे। प्रभु पर विश्वास रख ..बाकी साध्वी गौरी तुझे समझा देगी। तेरा कल्याण होगा।" ताई को आशीर्वाद देकर पीड़ाहरि बाबा कुटिया में ही अंर्तध्यान हो गये।

गौरी ने एकांत में ले जाकर ताई को समझाते हुये कहा- "माई तेरी बेटी का सौभाग्य है कि प्रभु स्वयं अनुष्ठान कर रहे हैं। यह साधारण अनुष्ठान नहीं बल्कि महा अनुष्ठान है। इसके आयोजन में कम से कम लगभग बीस लाख रुपये लग जायेंगे। कई देवताओं को प्रसन्न करना होगा। तू कल तक रुपयों का इंतज़ाम कर ले।"

" ..पर, साध्वी जी, मेरे पास तो इतने रुपये नहीं हैं। इनके जाने के बाद, ग्रेचूटी के सारे पैसे नंदिनी के इलाज में लग गये। ..मेरे पास तो सब कुछ मिलाकर सत्तर हज़ार रुपये ही हैं," ताई रो पड़ी।

"तो ठीक है, तू ऐसा कर, अपना घर आश्रम के नाम कर दे। मैं प्रभु से बात करूँगी। गरीबों की मदद के लिये प्रभु सदैव तैयार रहते हैं," साध्वी गौरी ने ताई को उपाय बताते हुये कहा।

"लेकिन, मेरे चार बेटे, बहुयें व उनके बच्चे भी मेरे साथ ही रहते हैं ..सब के सब बेचारे बेघर हो जायेंगे," ताई ने रोते हुये साड़ी का एक छोर अपने मुँह में खोंस लिया।

"तू इसकी चिंता बिल्कुल न कर माई। तेरे बेटे कोई न कोई काम तो अवश्य ही करते होंगे। सब मिलकर आश्रम का कर्ज़ चुका देना। ..और फिर हम तुझे या तेरे परिवार का घर से थोड़े ही निकाल रहे हैं। जब तू हमारे पैसे दे देगी हम पुनः तेरा घर तेरे नाम कर देंगे ..वैसे तो सब मोह-माया है। तेरा-मेरा कुछ नहीं हैं ..सब प्रभु का है। ..बस तू कल घर के पेपर आश्रम के नाम कर दे और परसों सुबह तड़के पाँच बजे अपनी बेटी को अनुष्ठान के लिये आश्रम छोड़ जा। प्रभु तेरा भला करेंगे। साध्वी गौरी संवाद कुटिया के भीतर चली गई।

ताई भारी मन से घर की ओर चल दी। आज उसके चेहरे पर कल जैसी खुशी नहीं थी। घर पहुँचकर ताई ने संदूक से घर के पेपर निकाल कर अपने झोले में डाल लिये और बिस्तर पर लेट गई पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। करवटें बदलते हुये वह सारी रात बेटी नंदिनी और अपने परिवार के बारे में सोचती रही। उसका मन किसी भी तरह से अपना घर आश्रम के नाम करने को राज़ी नहीं हो रहा था ..पर क्या करे, बेटी नंदिनी के दुःख के आगे वह बेबस थी। अगले दिन सुबह ही वह अपना घर आश्रम के नाम कर आई। एक के बाद एक दिन बीतते गये और आज इतवार है ..आठवां दिन ..आज वह नंदिनी को आश्रम से लेने जा रही है। घर से निकल कर उसने ऑटो को आवाज़ दी। ऑटो वाले ने उसके पास आकर पूछा- "कहाँ जाना है माई। मुकामगंज ..पीड़ाहरि बाबा के आश्रम," ताई ने बिना मोल-भाव किये ऑटो में बैठते हुये कहा।"

"बीस रुपये लगेंगे माई," ऑटोवाले ने बाद में झिकझिक से बचने के लिये पहले से ही अपना रेट बताते हुये कहा।

" ..ठीक है दे दूँगी, पर तू ज़रा जल्दी चल," ताई को आज पैसे की परवाह नहीं थी। आज उसकी मुराद पूरी होने वाली थी। ऑटोवाले ने ऑटो स्टार्ट करके ऑटो चौथे गियर में डाल दिया। दस मिनट में ही वे आश्रम के गेट पर थे।

..पर यह क्या। पूरे आश्रम को पुलिस ने क्यों घेरा हुआ है। ऑटो से उतरकर ताई ने सामने खड़े रिक्षावाले से पूछा- "भैया, आश्रम में पुलिस क्यों आई है?"

रिक्षावाले ने इशारा करते हुये बताया- "माई, यहाँ वो सामने अनुष्ठान भवन की सैकिंड फ्लोर से कूद कर एक लड़की ने जान दे दी है ..वह देख उसकी लाश ..पुलिस शिनाख़्त कर रही है। लोग कह रहे हैं कि बाबा इससे जबरदस्ती करना चाहते थे। बेचारी ने कूद कर अपने प्राण दे दिये। ..साला ..लंपट बाबा, रात से ही फरार है।"

आश्रम के बाहर बैठे रहने वाले भिखारी रधिया ने कहा- "मेरी बीवी लक्ष्मी को भी बाबा ने ही गायब किया है।"

आश्रम के प्रांगण में हज़ारों की तादात में खड़े बाबा के समर्थक बाबा का निर्दोष साबित करने में लगे हुये थे। साध्वी मयूरी कह रही थी- "बाबा बेकसूर हैं उन्हें साज़िश के तहत फँसाया जा रहा है।"

साधू राम गोपाल एक टी.वी चैनल को अपना ब्यान देते हुये कह रहे थे- "सदैव भक्तों का भला सोचने वाले प्रभु ऐसी घिनौनी हरकत कभी नहीं कर सकते। यह सब विरोधियों की चाल है। वे हमारे धर्म का कबाड़ा करना चाहते है।"

सेवक रामदीन ने कहा- "देख लेना बाबा बेकसूर साबित होंगे। जो बाबा को सतायेगा ..खड़े-खड़े भस्म हो जायेगा। ..बोलो पीड़ाहरि बाबा की जय।"

बाबा के समर्थकों का हुज़ू़म बाबा के समर्थन में जयघोष के नारे लगाता हुआ आश्रम के मेन गेट की ओर आ गया। वहाँ खड़े लोगों की बातों को अनसुना कर ताई पागलों की तरह भीड़ को चीरती हुई लाश के एकदम करीब पहुँच गई- "अरे ..यह तो नंदिनी है ..मेरे बेटी ..क्या हुआ मेरी बेटी को ..?" रोते हुये ताई ने नंदिनी के सिर को अपनी गोद में रख लिया।

"यह आपकी बेटी है? सामने खड़े इंस्पैक्टर ने कहा।"

"हाँ साहब, यह मेरी लाडली है ..मेरी बच्ची नंदिनी ..इंस्पैक्टर साहब क्या हुआ मेरी बच्ची को?"

"आपकी बेटी ने अनुष्ठान भवन की खिड़की से कूद कर जान दी है ..लेकिन हमें मालूम है कि यह आत्महत्या नहीं कोल्ड ब्लडिड मर्डर है। ..आप घबराइये नहीं दोशी को अवश्य सज़ा होगी। बाबा पुलिस के हाथों बच नहीं सकता," लाश को पोस्टमार्टम के लिये गाड़ी में रखवाते हुये .इंस्पैक्टर ने कहा।

गाड़ी रवाना हो गई। ताई वहीं बाबा के चबूतरे पर सिर पटक-पटक कर बेहोश हो गई।

"..मौन रहने से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है-

मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणाः अर्थात ..ऊँचे रसूखदार लोगों से मित्रता करने से सुख की प्राप्ति होती है।" आश्रम से संतसंग की आवाज़ें आने लगीं .....और सत्संग चलता रहा।

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