और हमको न कोई सताए

15-08-2021

और हमको न कोई सताए

निज़ाम-फतेहपुरी (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

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और हमको न कोई सताए पहले से हम सताए हुए हैं
एक ज़ालिम की तिरछी नज़र का तीर सीने में खाए हुए हैं
 
रफ़्ता-रफ़्ता समझ में ये आया दर्द-ए-दिल की दवा कुछ नहीं है
कहने सुनने से है फ़ायदा क्या ज़ख्म दिल में छुपाए हुए हैं
 
दूर कितना भी जाएं वो हमसे छूट सकता नहीं साथ अपना
सीप में बंद हो जैसे मोती उनको दिल में बसाए हुए हैं
 
उम्र भर राह तकते रहे हम भूल कर भी न आए कभी वो
मरके इतनी ख़ुशी तो मिली है घर हमारे वो आए हुए हैं
 
उठ रहा है जनाज़ा हमारा ऐ निज़ाम आज सब रो रहे हैं
जाने क्यों एक गोशे में चुप वो अपने सर को झुकाए हुए हैं

— निज़ाम-फतेहपुरी

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