और बकस्वाहा बिक गया 

01-06-2021

और बकस्वाहा बिक गया 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बकस्वाहा का जंगल 
काट दिया जाएगा 
क्योंकि उस जंगल से 
एक क़ीमती पत्थर 
निकला जाएगा। 
अढ़ाई लाख घने पेड़ काट दिए जाएँगे
जंगल मे रहने वाले
हज़ारों प्राणी मोर, हिरण, नीलगाय, बंदर 
बहुत से पक्षी आदि अन्य जीव 
सभी बेघर हो जाएँगे। 
 
हीरा मरते हुए को नहीं बचा पायेगा 
न ही दे सकेगा क़ीमती प्राणवायु 
मनुष्य के इन फेफड़ों को 
एक बेजान क़ीमती पत्थर 
के लिए काट डाला जायेगा। 
 
कोरोना से मरे होंगे लाखों 
बिना ऑक्सीजन के तड़पे होंगे 
और बग़ैर अपनों का कंधा लिए 
नदियों के किनारे पड़े होंगे 
हज़ारों शव शिव की प्रतीक्षा में। 
हे मनुष्य तुम्हारी जान 
हीरे से ज़्यादा क़ीमती तो नहीं है।
 
हीरे जीवन रक्षक होते तो 
दुनिया में कोरोना महामारी 
इतनी तबाही नहीं मचाती।
लेकिन संवेदनाएँ अब बचीं कहाँ हैं 
जब बेटा बाप के शव को लेने नहीं जाता 
पड़ोसी तड़पते पड़ोसी का हाल नहीं पूछता 
आदमियों के मरने से शहर कभी नहीं मरते 
शहर तो संवेदनाओं के मरने पर मरे हैं। 
 
इन मरे शहरों की साँसों को 
बेचने गिद्ध फिर तैयार हैं 
इस लिए शायद बक्स्वाहा 
बेच दिया गया और 
प्राणवायु की नली काट दी गई 
जीवन का प्राथमिक अंतिम स्रोत  
कल्याणकारी शिव के प्रतिनिधि
पेड़ पौधे वनस्पति 
काट दिए जाएँगे ताकि 
सूने श्मशानों को हीरों से सजाया जा सके।

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