अतृप्त मन

01-05-2021

अतृप्त मन

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

धोखा ही खाया,
मन ये सिरफिरा,
फिर से गिरा।
 
बुद्धि-अंकुश,
काम न मेरे आया,
ओफ़! ये माया।
 
ज्ञान- भण्डार,
शिक्षा में ख़र्चा अर्थ,
सब है व्यर्थ।
 
छाई उदासी,
धन से आयी हाँसी,
सब अतृप्त।
 
थमा जीवन,
भागता हुआ मन,
अधूरी प्यास।
 

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