अस्त होता सूरज

15-03-2021

अस्त होता सूरज

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

दुनिया का अजीब दस्तूर है
उगते सूरज को सब नमन करते हैं
उसे रोज़ सुबह अर्घ्य भी देते हैं।
क्योंकि उस से हमें ये आशा रहती है
कि वह हमें ऊर्जा और प्रकाश देता है।
जबकि अस्त होते सूरज को
कभी किसी ने अर्घ्य नहीं दिया;
क्योंकि उस समय ना तो उसके पास तेज
होता है और ना ही ऊर्जा।
अस्त होते सूरज की भी अपनी गरिमा है,
उसने सम्पूर्ण प्रकृति को प्रकाशित किया है,
समस्त जीव-जंतुओं को ऊर्जा दी है।
आज अगर उसका तेज क्षीण हो भी गया तो क्या?
उस अस्त होते सूरज के अपने जीवन काल में
कई पुण्य कर्म हैं,
जिन्हें हम भुला नहीं सकते।
लेकिन ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है
उदित होते शैशव को तो ख़ूब स्नेह देती है
किन्तु ढलते बुढ़ापे को एक नज़र भी नहीं देखती।
पर अस्त होते सूरज का महत्त्व
कभी कम नहीं होगा;
जब भी कोई सूरज उदय होगा
तो उसे जीने का तजुर्बा
अस्त होते सूरज से ही लेना पड़ेगा;
तभी कोई उदित होता सूरज
इस दुनिया को प्रकाशित कर पाएगा।
अस्त होते सूरज!
तू आशा कभी मत छोड़ना
तेरा महत्त्व भी कभी कम न होगा
तेरे आगे भी जहां नम होगा ।
तेरे लिए कोई अर्घ्य ना भी दे तो क्या ग़म?
मेरे जैसा बेचारा तुझे निहारता रहेगा
और नतमस्तक होता रहेगा।
जब-जब जीवन कठिन होगा
तब-तब तू याद आयेगा
जीवन तुझसे ही सीख लेकर
आशान्वित होता रहेगा।

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