आशावान

मोहम्मद जहाँगीर ’जहान’ (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

मैं हूँ आशावान, जहाँ में
ऐसा कोई सवेरा हो;
नफ़रत की दीवार गिरे,
न फिर कहीं अँधेरा हो।


होली, क्रिसमस, ईद, दीवाली
चाहे हो वह लोहड़ी;
सब, सब के त्योहार मनाएँ
विकसित भाईचारा हो।


गगन छुएगा अपना भारत!
बन जाये ऐसा क़ानून;
शिक्षित हों संसद के नेता,
न कोई हत्यारा हो।


बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों
से भी हो, संसद मुक्त;
मंथन, मुद्दे हों विकास के,
न कोई शोर मचा रहा हो।


पारदर्शिता हो न्याय में,
चाहे हो कोई किसी जाति का;
दण्डित हों सभी अपराधी
कोई निर्दोष न हारा हो।


बिक कर लिखना बंद करे
मीडिया की हो ज़िम्मेदारी;
तथ्यों से भरपूर हों ख़बरें
एंकर न चिल्ला रहा हो।


जन-सुरक्षा करने वाली
पुलिस भी हो निष्पक्ष;
हथ-कड़ियाँ हों हाथ में उसके,
दंगे जो फैला रहा हो।


गुरुजनों का हो सम्मान,
बनेगा उनसे भारत महान;
दंड-विधान मिले उन्हें भी,
'जहान' बैठकर जो खा रहा हो।

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