अनूठी

स्व. अखिल भंडारी (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

वह मुझे फ़्रंट ऑफ़िस की लॉबी में साढ़े आठ बजे मिलने वाली थी। पार्किंग लॉट में विज़ीटरस पार्किंग के स्पष्ट संकेत थे। लेकिन एक भी स्थान ख़ाली नहीं था। मुख्य द्वार के आगे एक विशाल पोर्च था जहाँ कुछ कारें खड़ीं थीं। आठ बज कर पच्चीस मिनट हो रहे थे। सोचा यहीं थोड़ी देर कार खड़ी कर लेता हूँ। तभी देखा कि मुख्य द्वार की सीढ़ियों पर एक युवती दोनों हाथ हिलाते हुए मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी। हो न हो यह कैथी ही है। उसने वहीं से इशारा किया कि पोर्च के दूसरी तरफ़ ख़ाली स्थान है । यह रिज़र्वड पार्किंग थी और हर स्थान के सामने व्यक्तिगत नाम की तख़्ती लगी हुई थी। अपने नाम की तख़्ती देख कर मुझे आश्चर्य भी हुआ और प्रसन्नता भी। मेरे कार पार्क करने तक वह बाहर सीढ़ियों पर ही खड़ी रही।

“गुड मॉर्निंग! इस भव्य कंपनी में तुम्हारा बहुत-बहुत स्वागत! मैं कैथी हूँ, कैथरीन विल्सन, तुम्हारी एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट,” उसने गर्म जोशी से हाथ मिलाते हुए कहा। कैथरीन की आयु तीस-बत्तीस के आसपास थी – ऊँचा क़द, इकहरा शरीर, दिखने में सुंदर, और चेहरे पर एक स्वाभाविक मुस्कान। सफ़ेद ब्लाउज़, नेवी ब्लू स्कर्ट सूट, और बिना हील के काले पंप शूज़ में वह काफ़ी आकर्षक लग रही थी।  

लॉबी में प्रवेश किया तो वहाँ आगंतुकों की काफ़ी हलचल थी। रिसेप्शनिस्ट मुझे पहचानती थी। इंटरव्यू के सिलसिले में यहाँ दो बार पहले आ चुका था। वह अपने स्थान से उठ कर अभिवादन करने के लिये मेरी तरफ़ बढ़ आई। तभी कैथी ने सीसीटीवी मॉनिटर की तरफ़ इशारा किया जहाँ कंपनी की आंतरिक सूचनाओं का प्रसारण किया जा रहा था। इस से पहले कि मैं कुछ पूछूँ, स्वागत सन्देश के साथ मेरी फोटो मॉनिटर पर थी। अब कुछ आगंतुक भी मेरी ओर कौतूहल से देखने लगे थे।

“पिछले शुक्रवार प्रैज़िडैंट ने तुम्हारी नियुक्ति की सूचना ईमेल द्वारा सारे स्टाफ़ को दे दी थी। तुम्हारी शिक्षा और व्यवसायिक अनुभव वाक़ई बहुत प्रभावशाली हैं। हम भाग्यशाली हैं कि तुम ने हमारे साथ काम करना चुना है।”

कैथी मेरे स्वागत की औपचारिकता कुशलतापूर्वक निभा रही थी। लॉबी से निकल कर हम एक गलियारे में आ चुके थे। वह मुझ से एक क़दम आगे चल रही थी। “मैं तुम्हे किस नाम से बुलाऊँ?” उसने गर्दन घुमाते हुए पूछा। 

“तुम मुझे ‘राज’ कह सकती हो।” 

“थैंक गुडनेस!” उसने जैसे चैन की साँस लेते हुए कहा। 

“क्यों, ऐसा क्यों?” मैंने विस्मय से पूछा। 

“मैं तो ‘राजेंड्रा’ का अभ्यास कर के मरी जा रही थी,” उसने खिलखिलाते हुए कहा। 

थोड़ी ही देर में हम ऑफ़िस पहुँच गए। उस का क्युबिकल मेरे ऑफ़िस के बिल्कुल बाहर था। हम दोनों अपनी सीट से उठे बिना ही एक दूसरे से बात कर सकते थे। 

“अगले दो दिन तो तुम्हारी ओरिएंटेशन है। यह रही विस्तृत कार्यक्रम सारिणी,” उसने एक फ़ोल्डर मेरे डेस्क पर रखते हुए कहा। “अभी नौ बजे ‘एच आर’ की एवा से तुम्हारी पहली मीटिंग है। और यह जो चार मोटे बाइंडर तुम्हारे इन-बॉक्स में हैं, इन्हें भी पहले सप्ताह ही पढ़ने की सलाह है। लेकिन चिंता मत करो, तुम अपना समय ले सकते हो। मैंने यह सब पढ़ रखा है, तुम्हे मुसीबत में नहीं फँसने दूँगी,” उसने मुस्कराते हुए कहा।

बाइंडरस को देखा तो उन में कंपनी का इतिहास, उत्पादों की जानकारी, वित्तयी विवरण, कंपनी की कार्य प्रणाली और नीति-नियमों की विस्तृत जानकारी थी। “क्या इस ने सचमुच ही यह सब पढ़ रखा है या मज़ाक़ कर रही है?” मैंने मन ही मन सोचा। वह शायद मेरा संशय भाँप गई। 

“नहीं, नहीं मेरी जॉब के लिए यह सब पढ़ना क़तई ज़रूरी नहीं; लेकिन मैंने हमेशा इसी जॉब में थोड़ा रहना है!” पहले ही दिन ऐसी साफ़-गोई से मुझे कुछ आश्चर्य हुआ।

“तुम कॉफ़ी लोगे या चाय?”

“चलो मैं साथ चलता हूँ। इसी बहाने पैंट्री भी देख लूँगा।”

“इस कंपनी में फ़्री कॉफ़ी नहीं हैं,” उसने हँस कर कहा, “कैफ़ेटेरिया जाना होगा, वह पाँच-सात मिनट दूर है।” उसने घड़ी देखते हुए कहा। एवा आने वाली थी इसलिए मैंने कॉफ़ी के लिए मना करना ही उचित समझा। 

“जब से माइकल प्रेसिडेंट बना है कंपनी में काफ़ी बदलाव आ रहे हैं। पहले फ़्रंट ऑफ़िस में एग्ज़ेक्युटिव डाइनिंग रूम हुआ करता था, स्टाफ़ और मैनेजमेंट के कैफ़ेटेरिया अलग थे। माइकल ने सब के लिए एक ही कैफ़ेटेरिया और एक साझा डाइनिंग हाल बनवा दिया है। लेकिन विडंबना देखो, एक अच्छी प्रथा के साथ एक बुरी प्रथा भी शुरू हो गई। शुरू में तो माइकल भी सभी की तरह कैफ़ेटेरिया जाता था लेकिन न तो उसे लाइन तोड़ना पसंद था और न ही लाइन में खड़े रह कर वक़्त बर्बाद करना। अक़्सर ख़ाली हाथ वापस आ जाता। उसकी एडमिन असिस्टेंट ने चुपके से उस की सहायता शुरू कर दी। लेकिन जैसे ही वाइस प्रेसिडेंट्स ने यह देखा तो धीरे-धीरे कैफ़ेटेरिया से कॉफ़ी, लंच इत्यादि लाने का काम हम लड़कियों के पल्ले पड़ गया। ऊपर से तो कोई कुछ नहीं कहती लेकिन अंदर से सब कुढ़ती हैं। कुढ़ें भी क्यों न? अब यह पुराने ज़माने की सेक्रेटेरियल जॉब तो रही नहीं। सभी के पास यूनिवर्सिटी डिग्री है!”

“यह तो कोई कारगर बदलाव नहीं हुआ!” मैंने उस की बातों में दिलचस्पी दिखाते हुए कहा। 

“लेकिन आठ में से तीन वाइस प्रेसिडेंट अब औरतें हैं। और अब तुम पहले...” कहते कहते वह झिझक गई। मैं उस की बात समझ गया था लेकिन चुटकी लेते हुए पूछ लिया, “पहला क्या?”

“देखो, ग़लत नहीं समझना, तुम्हारे जैसा रेज़्यूमे तो यहाँ किसी का भी नहीं है, लेकिन कुछ साल पहले इस कंपनी में इस पद पर तुम्हारी नियुक्ति की संभावना शून्य के बराबर थी।” 

“इस बदलाव को तो फिर अच्छा ही मानना पड़ेगा। नहीं क्या?” 

“बिल्कुल! लेकिन मुझे लगता है कि औरत कंपनी प्रेसिडेंट बन सकती है पर आदमी एडमिन असिस्टेंट नहीं बन सकते!” 

“बन नहीं सकते या बनाए नहीं जाते?” मैं उसकी विचार प्रक्रिया समझ रहा था।

“यही तो! हम औरतें ही तो तरह-तरह के अनुचित व्यवहार सह लेती हैं।”

“सुनो, एक अच्छी ख़बर दूँ क्या?” मैंने उसे टोकते हुए कहा, “कम से कम तुम्हें तो मेरे खाने-पीने की व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी। मुझे अपने व्यक्तिगत काम दूसरों से करवाना अच्छा नहीं लगता।” 

“क्या?” मेरी इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया ने उसे चौंका दिया था। जैसे कह रही हो – मैंने यह सब इसलिए तो नहीं कहा था। फिर सयंत होते हुए प्रसन्नचित्त भाव से बोली, “यू आर ए रियल स्वीट हार्ट राज!” 

कैथी से काम का ताल-मेल शीघ्र ही बैठ गया। कंपनी में नया होने के कारण, उसके अनुभव और कौशल का मेरे लिए विशेष महत्त्व था। कंपनी में उसकी जान-पहचान का दायरा भी काफ़ी व्यापक था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए उस की अनौपचारिकता बढ़ती गई और साथ ही उसके क्युबिकल के बाहर की चहल-पहल भी। फ़्रंट ऑफ़िस की सहकर्मी युवतियाँ अक़्सर उस से कुछ न कुछ पूछने आ जातीं। मेरे विभाग से जो भी मुझ से मिलने आता, दो-चार मिनट उससे बात अवश्य करता। मुझे शोर-शराबा पसंद नहीं, लेकिन कैथी की कार्य प्रणाली पर इन व्यवधानों का कोई असर दिखाई नहीं देता था। वह किसी से भी बहुत लम्बी बात नहीं करती। और बात-चीत के दौरान भी अपनी व्यस्तता बनाए रखती। वह बातूनी अवश्य थी लेकिन क्रियाशील भी थी। इसलिए इस बारे में उस से कुछ कहना मुझे उचित नहीं लगा। लेकिन उस की अनौपचारिक भाषा मुझे चुभने लगी थी। हर दूसरे तीसरे वाक्य में वह बे-झिझक ‘फ़ोर लैटर वर्ड्स’ इस्तेमाल करती। वैसे मैं उस की औपचारिक व्यवहार कुशलता से काफ़ी प्रभावित था। बाहर के लोगों से उस का लहजा हमेशा नपा-तुला और सधा हुआ रहता लेकिन दूसरे ही पल अपने सहकर्मियों के बीच उस का बदला हुआ स्वर देख कर मुझे आश्चर्य होता।

एक दिन अवसर देख कर मैंने कह ही दिया कि मुझे उसकी अभद्र भाषा अच्छी नहीं लगती। 

“तुम यह सब मुझे ही क्यों कह रहे हो? तुम्हारे अधीनस्थ स्टीव और पॉल भी तो काफ़ी रंगीन भाषा बोलते हैं।”

“मैंने उन दोनों से भी यही कहा है”

“मुझे नहीं लगता स्टीव की जिह्वा धुल सकती है!”

“देखो, मैं तो सिर्फ़ ऑफ़िस में एक शिष्ट और सभ्य माहौल चाहता हूँ। किसी की भाषा या व्यवहार बदलना न तो मेरे बस में है और न ही मेरा ऐसा कोई इरादा है।”

उसके चेहरे पर अभी भी कसाव था।

“और यह कोई आदेश नहीं, बस एक आग्रह है।”

“अच्छा, मैं कोशिश करती हूँ,” उसने ढिलाई से सिर हिलाते हुए कहा।  

कंपनी में कैथी के मित्रों में नैंसी मुख्य थी। नैंसी की गणना उभरती हुई प्रतिभाओं में की जाती थी और उसे वरिष्ठ पदों के लिए तैयार किया जा रहा था। वह अपने विभाग में अभी से सीनियर मैनेजर बन चुकी थी। वह अक़्सर कैथी के साथ लंच करने आ जाती। उन दोनों की मित्रता किस आधार पर थी – मेरे मन में यह जानने की उत्सुकता उठती। लेकिन कैथी ने शीघ्र ही यह भेद खोल दिया। नैंसी हाई स्कूल में उसके साथ पढ़ती थी। दोनों में मित्रता भी थी और पढ़ाई को लेकर स्पर्धा भी। नैंसी संपन्न परिवार से थी। उसने इंजीनियरिंग करने के बाद अपनी इच्छित यूनिवर्सिटी से एमबीए भी कर लिया। कैथी और उसकी छोटी बहन की परवरिश एक अकेली माँ ने की थी। कैथी के लिए पढ़ने के साथ-साथ काम करना भी आवश्यक था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई और सप्ताह में पच्चीस-तीस घंटे काम करना संभव नहीं था। उसने अँग्रेज़ी साहित्य में बीए कर लिया। लेकिन इस के बावजूद भी कई सालों तक इधर-उधर अस्थायी काम ही करना पड़ा। पाँच साल पहले नैंसी की मदद से ही उसे यह जॉब मिली थी। अब वह पार्ट-टाइम स्टूडेंट थी और मास कम्युनिकेशनस में एमए कर रही थी। उस का लक्ष्य इस कंपनी की जनसंपर्क अधिकारी बनना था। अपनी कहानी सुनाते हुए उसके स्वर में न तो कोई कटुता थी और न ही भावुकता।

उस दिन अभी लंच शुरू किया ही था कि फोन की घंटी बज उठी। दूसरी तरफ़ स्टीव था सो बिना कौर निगले ही रिसीवर उठा लिया। बात करते-करते जैसे ही कौर निगला तो ग्रासनली में अटकन महसूस हुई और साँस उखड़ने लगी। पानी का घूँट लेना चाहा तो बोतल नहीं खुली।  क़िस्मत से कैथी अपनी सीट पर थी और निरंतर, तीव्र खाँसी की आवाज़ सुन कर पलक झपकते ही मेरे सामने थी!

“उठो राज, उठो,” उसने तुरंत बाँह पकड़ कर मुझे उठाते हुए कहा। फिर एक ही क्षण में उसने कुर्सी को परे धकेला, पीछे आ कर अपना दायाँ घुटना मेरी कमर पर रखा, और दोनों हाथों से मेरे पेट को ज़ोर से अंदर खींचना शुरू कर दिया। 

“मुँह खोलो, मुँह खोलो!” उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा। तीसरे ही झटके में, सैंडविच का एक छोटा सा टुकड़ा मेरी ग्रासनली से निकल कर मेज़ पर था।

“हे भगवान!” मैंने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा, “कैथी, अगर तुम पास नहीं होती तो न जाने क्या हो जाता!” 

“अब तो सब ठीक है न? चलो पहले दो घूँट पानी पी लो,” उसने पानी की बोतल खोलते हुए कहा, “ओह, यह पानी तो बहुत ठंडा है। रुको मैं दूसरा ले कर आती हूँ।” और वह अपने क्युबिकल से पानी की एक दूसरी बोतल उठा लाई। 

इतने में स्टीव भी हाँफता हुआ वहाँ आ पहुँचा। घटना सुनी तो कैथी की तरफ़ प्रशंसनीय दृष्टि से देखते हुए बोला, “तुम ने यह ‘हाइमलिक’ युक्ति कहाँ से सीखी?”

“जहाँ से बाक़ी सब सीखते हैं,” उसने अपने क्युबिकल में टंगे रेड क्रॉस सर्टिफिकेट की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “यह तो अच्छा हुआ कि मैंने कुछ महीने पहले ही रिफ़्रेशर कोर्स किया था”

“वाह! फिर तो तुम्हे मुँह से मुँह लगा कर साँस देने की युक्ति भी आती होगी,” स्टीव की आँखों में अब शरारत उतर आई थी, “मुझे दिल का दौरा पड़ रहा है, कोई है फ़र्स्ट-एड देने वाला?” उसने हाथ पाँव फैला कर निढाल होने का स्वाँग करते हुए कहा।  

“तुम्हें जो फ़र्स्ट-एड चाहिए, मैं राज के सामने नहीं बता सकती,” उसने अपने जूते की नोक की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “अच्छा यह बताओ कि तुम मज़ाक़ करने आए हो या मदद करने? क्या एक कप कॉफ़ी ला सकते हो? मैं लाऊँगी तो राज को अच्छा नहीं लगेगा।” 

“जो आज्ञा!” स्टीव ने झुकते हुए कहा और हँसते हुए कॉफ़ी लेने चला गया। 

कैथी ने दोबारा कभी इस घटना का ज़िक्र नहीं किया। और न ही मुझे कभी यह महसूस हुआ कि बदले में उसे किसी लाभ या उदारता की अपेक्षा थी। मेरे मन में उस का सम्मान बढ़ने के साथ एक अपनत्व का भाव भी आ गया। अब उस का अधिक बोलना मुझे परेशान नहीं करता और मैं प्राय: उस का कुशल-क्षेम पूछ लेता। वह मेरी बढ़ती हुई आत्मीयता से अनभिज्ञ न थी। 

“राज, मैं कैफ़ेटेरिया जा रही हूँ। तुम्हारे लिए कुछ लेती आऊँ क्या?” वह अक़्सर पूछ लेती।

“कैथी, इस निर्णय को पलटने की संभावना तो शून्य के बराबर है,” मैं उसी की शैली में बोलते हुए हँस कर टाल देता।

मुझे यहाँ आए लगभग एक साल हो चुका था और दिनचर्या एक ढर्रे से चलने लगी थी। कैथी आमतौर पर साढ़े चार-पौने पाँच के बीच घर चली जाती थी। मैं ऑफ़िस में अक़्सर छह-साढ़े छह तक रहता था। उस दिन पाँच बज चुके थे और वह अभी तक गई नहीं थी। मैं एक लम्बी कांफ़्रेंस कॉल में था। जैसे ही कॉल ख़त्म हुई तो वह तुरंत अंदर आ गई।

“राज, मुझे कुछ बात करनी है। अगर तुम व्यस्त हो तो मैं और इंतज़ार कर सकती हूँ।”

वह थोड़ी बेचैन लग रही थी। मेरे इशारे पर बैठते ही बोली, “एक अच्छी ख़बर है और एक …”

“बुरी ख़बर!” मैंने उसे टोक कर प्रचलित मुहावरा पूरा करते हुए कहा।

“नहीं, नहीं दूसरी ख़बर भी बुरी तो नहीं। अच्छा, दूसरी ख़बर से ही बात शुरू करती हूँ। मुझे चार सप्ताह की छुट्टी चाहिए।”

मुझे कुछ कहने का अवसर दिए बिना उसने बोलना जारी रखा, “देखो, मुझे साल में तीन सप्ताह की छुट्टी मिलती है। मैं जानती हूँ कि एक बार में दो सप्ताह से अधिक छुट्टी की मनाही है। लेकिन मेरे लिए चार सप्ताह अति आवश्यक हैं। मैं चौथे सप्ताह की भरपाई ओवर टाइम से कर सकती हूँ या फिर एक सप्ताह बिना वेतन की छुट्टी भी मुझे स्वीकार है। प्लीज़, प्लीज़, मना नहीं करना,” उसने अधीरता से कहा। 

“लेकिन कब?” मेरे पूछने से वह थोड़ा आश्वस्त हुई।

“दो महीने बाद। पहले से इसलिए बता रही हूँ ताकि तुम्हे अस्थायी व्यवस्था करने में समस्या न हो।”

“चलो अब अच्छी ख़बर भी सुना दो,” हालाँकि अच्छी ख़बर तो मैं अब तक भाँप चुका था।

“मैं शादी करने जा रही हूँ!” उसके चेहरे की स्वाभाविक भाव-भंगिमा लौट आई थी।     

“बधाई हो! कौन है वह क़िस्मत वाला आदमी?”

“क़िस्मत वाला आदमी नहीं, क़िस्मत वाली औरत!” उसने सहजता से खिलखिलाते हुए कहा।

“उस का नाम जेनिफ़र स्मिथ है। जेन्नी और मैं दस साल से साथ हैं। पिछले पाँच साल से इकट्ठे रह रहे हैं। बच्चा गोद लेने की सोच रहे हैं, इस लिये शादी करना आवश्यक है।”

उसने निश्चय ही मुझे चौंका दिया था। कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूँ। लेकिन बड़ी सादगी से पूछे हुए उसके अगले प्रश्न ने मुझे उभार लिया। 

“तुम क्या सोचते हो? क्या मैं एक अच्छी माँ बन सकती हूँ?”  

”तुम निस्संदेह सिर्फ़ अच्छी ही नहीं बल्कि एक अति उत्तम माँ बन सकती हो। मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ!” 

“तो इस का मतलब छुट्टी मंज़ूर?”

“बिल्कुल! बेशक़!” मैंने अपनी कुर्सी से उठ कर उस की तरफ़ बढ़ते हुए कहा। उसने खड़े हो कर धन्यवाद देने के आशय से दायाँ हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया। मेरे मन में उसके प्रति ममत्व और स्नेह का उफान सा उमड़ आया। “सदा सुखी रहो!” मैंने अपने हाथ नरमी से उसके कंधों पर रखे और हलके से उस का माथा चूम लिया।

2 टिप्पणियाँ

  • बहोतही अच्छी कहानी जिसका अंत अनपेक्षित था। आपने शुरूआतसे अंततक हमारी अुत्कंठा ढलने नही दी। आपका अभिनंदन।

  • 17 Aug, 2020 08:55 AM

    very unexpected ending, but nonetheless - interesting and well composed story. Congratulations Akhil.

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