समझ घन चिलमन को चुपचाप,
आ छुपा चन्दा पूनम का।
प्रभा है दिव्य दामिनी सी,
अंग अंग दमका हमदम का॥
 
श्याम अलि कुल सा केश कलाप,
मदन को चाप सदृश भ्रू चाप।
झील से नील नयन नत आप,
कोकिला कण्ठ मधुर आलाप,
लसे शुक चंचु सम नासा,
रूप अनुपम है प्रियतम का॥
 
गले में मुक्ता मणि की माल,
होंठ ये बिम्बाफल से लाल।
सुकोमल कर ज्यों कमल मृणाल,
डालते मुझपे मोहक जाल॥
नहीं मालूम मुझे ये स्पर्श,
सनम का है या शबनम का॥

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