अनुभूति 

01-07-2021

अनुभूति 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

खिलखिलाती 
फूल सी तुम 
मन मनोहर छंद हो। 
 
मुग्ध हरियल पेड़ जैसी 
मुक्त आभा रूप हो।   
गंध कस्तूरी लिए तुम 
शिखर चढ़ती धूप हो। 
 
स्वस्तिवाचन सी मधुरमय 
गीत का आनंद हो। 
 
देख तुमको स्वप्न उमगे 
नेह के झरने बहे। 
स्पर्श से जन्मे पुलकते 
गीत हम गाते रहे। 
 
सांध्य बेला सी सुहागन 
प्रेम की पाबंद हो। 
 
सप्तवर्णी पुष्प निर्मल 
सांध्य क्षण अभिसार के। 
झरझरा कर नेह बरसे 
भीगते हम धार से। 
 
नेह कलियों सी महकती 
हृदय ब्रह्मानंद हो।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
गीत-नवगीत
कविता
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में