अंत में सब बराबर

01-08-2021

अंत में सब बराबर

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

उनकी आत्मा की शांति के लिए
बहुत लोगों द्वारा
किए जाते हैं शोक संदेश प्रसारित,
 
अंतिम संस्कार पर उनके दर्शन को
हज़ारों लोगों की होती है आगत,
 
श्रद्धांजलि देने को उन्हें
होती हैं कई शोक सभाएँ आयोजित,
 
उनके योगदान पर चर्चा के लिए
की जाती हैं गोष्ठियाँ भी प्रायोजित,
 
कइयों के लिए झुकते हैं राष्ट्रीय ध्वज भी
और होता है कई दिनों का शोक घोषित,
 
एक मशहूर आदमी ज़्यादातर
मरता है एक मशहूर मौत
लेकिन ले जा नहीं पाता साथ वो
अपनी धन-दौलत,रुतबा और शोहरत,
 
बनिस्बत उसके, 
एक आम आदमी जीता है 
एक अपेक्षाकृत कम चर्चित जीवन
और पाता है
काफ़ी हद तक एक गुमनाम मौत,
 
जीवन में उन दोनों के
चाहे रही हो असमानता जितनी भी,
समानता ले आती है दोनों की ही मौत
 
शून्य से होती है शुरू 
आगे की यात्रा सबकी
मशहूर कम हो कोई या फिर हो बहुत।

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