हम हैं धरती के अनमोल रतन
पहचाने कहाँ हर किसी का मन?

 

घर-बगिया की किलकारी हमसे
पापा-मम्मी की फुलवारी हमसे।

 

खेल न पाते गेंद उछाल,
पड़ती बड़े-बड़ों की फटकार

 

तुम बहुत हो शोर मचाते।
कहते - हम उन्हें हैं भाते।

फिर क्यों हमें हैं वे भगाते?

 

हम बच्चों ने किया विचार

चलो अब अंबर तारों के संसार

 

जहाँ न होगी कोई दीवार,
दामन ख़ुशियों से होगा निहाल।

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