अनमोल रतन
अर्चना सिंह 'जया'हम हैं धरती के अनमोल रतन
पहचाने कहाँ हर किसी का मन?
घर-बगिया की किलकारी हमसे
पापा-मम्मी की फुलवारी हमसे।
खेल न पाते गेंद उछाल,
पड़ती बड़े-बड़ों की फटकार
तुम बहुत हो शोर मचाते।
कहते - हम उन्हें हैं भाते।
फिर क्यों हमें हैं वे भगाते?
हम बच्चों ने किया विचार
चलो अब अंबर तारों के संसार
जहाँ न होगी कोई दीवार,
दामन ख़ुशियों से होगा निहाल।