अनकही बातें
नीरज गुप्ताउलझा हुआ हूँ
कुछ दिनों से,
एक बात मन में
आ खटकती है।
समेटे फिरता हूँ
वो अनकही बातें,
जो अब बस
सदृश भटकती हैं।
वक़्त भी तो न था
जो सुना सकता तुम्हें,
हाँ बातें तो जरूर थीं
जो अब नागवार गुज़रती हैं।
उलझा हुआ हूँ
कुछ दिनों से,
एक बात मन में
आ खटकती है।
समेटे फिरता हूँ
वो अनकही बातें,
जो अब बस
सदृश भटकती हैं।
वक़्त भी तो न था
जो सुना सकता तुम्हें,
हाँ बातें तो जरूर थीं
जो अब नागवार गुज़रती हैं।