उलझा हुआ हूँ कुछ दिनों से, एक बात मन में आ खटकती है।
समेटे फिरता हूँ वो अनकही बातें, जो अब बस सदृश भटकती हैं।
वक़्त भी तो न था जो सुना सकता तुम्हें, हाँ बातें तो जरूर थीं जो अब नागवार गुज़रती हैं।