अँधेरों के दिन
लक्ष्मी शंकर वाजपेयीबदल गए हैं अँधेरों के दिन
अब वे नहीं निकलते
सहमें, ठिठके, चुपके चुपके रात के वक़्त
वे दिन दहाड़े घूमते हैं बस्ती में
सीना ताने
कहकहे लगाते
वे नहीं डरते उजालों से
बदल गए हैं अँधेरों के दिन
अब वे नहीं निकलते
सहमें, ठिठके, चुपके चुपके रात के वक़्त
वे दिन दहाड़े घूमते हैं बस्ती में
सीना ताने
कहकहे लगाते
वे नहीं डरते उजालों से