अंधा शहर

01-04-2021

अंधा शहर

मधुश्री (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

शहर की रातों में 
सड़कों पर रेंगते साए
दिन के उजालों का
झूठा भरम पाले बैठे हैं
 
दिन के उजाले में डराते
थे जो काले साए 
दूधिया रातों में 
दूध से ही नहाए बैठे हैं
 
है नक़ाबपोश यहाँ
रात के ये सौदागर
रेत के समुंदर में छुपे 
बगुला भगत बैठे हैं
 
शहर की भीड़ में
तारा भी कोई टूटा तो
हैं अंधे लोग यहाँ
जुगनू समझ बैठे हैं
 
रात है काली मगर
जगमगाती तारों से
विषमयी मदिरा सोम
प्याला समझ बैठे हैं

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