अनामिका

15-01-2021

अनामिका

कविता झा (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

वो दिन भी कुछ अज़ीब ही था जब अनामिका अनाथ आश्रम से मिश्रा जी के साथ उनके घर आई थी। मौसम रात से ही ख़राब था। ऐसा लग रहा था जैसे चक्रवर्ती तूफ़ान दूर कहीं बंगाल की खाड़ी के तट से टकरा गया हो और बारिश उड़ेल रहा हो। तेज़ गति से हवा बह रही थी जिसमें मिश्रा जी किसी तरह छाते को कस के पकड़े हुए स्टेशन पर इंतज़ार कर रहे थे किसी लड़के का।

बहुत देर इंतज़ार करने के बाद जब उस लड़के की कोई ख़बर नहीं आई तो मिश्रा जी ने स्टेशन मास्टर से पूछना उचित समझा। वे स्टेशन मास्टर की तरफ़ जाने के लिए मुड़े ही थे कि उन्हें थोड़ी दूरी पर एक १०-१२ वर्ष की लड़की दिखी, जिसके बाल एकदम मटमैले थे और वस्त्र बुरी तरह से अस्त-व्यस्त। किसी तरह एक टूटे छाते से अपने को मूसलाधार बारिश से बचाने का असफल प्रयास कर रही थी वो बच्ची। एक टक ध्यान से मिश्रा जी ने उस बच्ची को देखा। सूखे होंठ, शून्य परंतु बड़ी-बड़ी भूरी आँखें, कंधे से नीचे तक लटके हुए कीचड़ से सने  केश और भय से भरा चेहरा। ऐसी छवि नहीं थी जो एक झलक में सम्मोहित कर सके, पर जो मासूमियत, सादगी और भोलापन झलक रहा था उस चेहरे से, उसने यकायक ही मिश्रा जी को अपनी तरफ़ खींचा। मिश्रा जी के निकट आने पे उस बच्ची ने उन्हें टोकते हुए पूछा, “क्या आप मिश्रा जी हैं, जो हावड़ा से मुझे लेने आने वाले थे?” मिश्रा जी ने एक क्षण उस छवि की ओर देखा और फिर होश सँभालते हुए उस बच्ची से पूछा, “तुम कौन हो? तुम्हें मेरा नाम कैसे पता? मैं तो यहाँ एक लड़के को लेने आया था, जो बेलूर के अनाथ आश्रम से आने वाला था।”

इस पर उस बच्ची ने एक पल के लिए मन-ही-मन कुछ सोचा और मिश्रा जी के तरफ़ देखते हुए बोली, “मैं ही बेलूर अनाथ आश्रम से आयी हूँ। मुझे मिसेस डिसूज़ा ने आपके लिए भेजा है। उन्होंने कहा था कि हावड़ा स्टेशन पे आप मुझे मिल जाएँगे। मेरा नाम अनामिका है।”

मिश्रा जी थोड़े अचंभित और थोड़े ग़ुस्से में बुदबुदाए, “लेकिन हमने तो एक अनाथ लड़के के लिए बोला था। भगवान जाने सुमन क्या करेंगी ये देख के कि एक लड़की भेजी गयी है?”

मिश्रा जी ने अनामिका से पूछा, “मिसेस डिसूज़ा नहीं आईं तुम्हारे साथ तुम्हें छोड़ने?”

अनामिका ख़ुद को बारिश से बचाते हुए बोली, “हाँ मिसेस डिसूज़ा आने वाली थीं। मगर उनको कुछ ज़रूरी काम आ गया था, तो वे पिछले स्टेशन पे उतर गयीं। उन्होंने मुझे हावड़ा में उतरने को बोला था और आपकी आने की जानकारी भी दी थी।”

मिश्रा जी ने किंकर्तव्यविमू्ढ़ हाँ में सर हिला कर अनामिका को इशारे से चलने को कहा। अनामिका मिश्रा जी के पीछे-पीछे एकदम एक अज्ञाकारी बच्चे के तरह चली जा रही थी। परंतु उसके मन में अनेक सवाल थे कि क्या उसे वापस अनाथ आश्रम जाना पड़ेगा, क्यूँकि मिश्रा जी को तो एक लड़के की दरकार है? क्या उसका एक परिवार का सपना सपना ही रह जाएगा? क्या उसे कभी माता-पिता का सुख नहीं मिलेगा? वो उस पल को याद कर रही थी जब उसे मिसेस डिसूज़ा ने जानकारी दी थी कि एक परिवार को उसकी ज़रूरत है और वो हावड़ा जा रही है। एक ही पल ने मानो उसकी ज़िंदगी बदल दी हो। कितने सपने देख लिए थे उस पल अनामिका ने और ख़ुद से वादा भी किया था कि वो अब कभी नहीं रोएगी और अपने नए माता-पिता को बहुत प्यार और सम्मान देगी।

इस छोटी उम्र में भी काफ़ी समझदार थी अनामिका। मिश्रा जी की नाराज़गी अच्छे से भाँप चुकी थी। फिर भी हिम्मत कर उसने माहौल बदलते हुए बात-चीत शुरू की। कार से हावड़ा ब्रिज और हुगली नदी का नज़ारा देख आनंदित हो बोली, “मिश्रा जी ये नदी कितनी बड़ी है और ये पुल कितना सुंदर। मैंने तो कभी ऐसा कुछ देखा ही नहीं है। हमें अनाथ आश्रम से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है न। निकालते भी हैं तो बस कुछ काम से। मैं ऐसे कभी बिना किसी काम के नहीं घूमी हूँ। मिश्रा जी आप जानते है मुझे घूमना बहुत पसंद है। बिना किसी मक़सद के बस प्रकृति को निहारते हुए, चुपचाप शांत मन से, बस यूँ ही, जब ना कोई भविष्य की चिंता हो, ना वर्तमान का डर . . .।” 

बोलते-बोलते अचानक से अनामिका चुप हो गई, जैसे किसी सपने में खो गई हो। मिश्रा जी ने यद्यपि मुड़ के नहीं देखा, पर अनामिका की अचानक चुप्पी उन्हें कुछ देर के लिए तंग कर गई। वे स्वयं से अनामिका की बातों को पूरा करने की कोशिश करने लगे, परंतु असमर्थ रहे। उन्हें डर भी था कि कहीं ज़्यादा वार्तालाप से उनकी पिता सुलभ भावना जाग ना जाए, जो उनकी पाखी के मौत के बाद जैसे सो गयी थी। 

मिश्रा जी एक संकीर्ण गली के सामने कार से उतरे और अनामिका भी उनके साथ उतर गयी। टैक्सी वाले को पैसे दे वे गली में अंदर जाने लगे। बारिश अभी रुक चुकी थी, फिर भी अनामिका ने टूटे छाते को ओढ़ ही रखा था। कुछ सोचते हुए अनामिका भयग्रस्त हो बोली, “मिश्रा जी क्या आप सच में मुझे वापस भेज देंगे?”

उस बच्ची के उस मासूमियत भरे सवाल ने जैसे मानो मिश्रा जी को सम्मोहित ही कर दिया हो। उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि वे क्या बोलें?  एक तरफ़ उन्हें मिसेस मिश्रा के प्रतिक्रिया का भय था जिन्हें एक लड़के की ज़रूरत थी जो थोड़ा बहुत घर-बाहर का काम भी देख सके, तो दूसरी तरफ़ उस मासूम बच्ची में बाल-सुलभ सच्चाई और ईमानदारी देख अपनी पाखी का स्मरण होने लगा था। मिश्रा जी एकदम नहीं समझ पा रहे थे कि ये कैसा भाव था और वो भी एक अनाथ बच्ची के लिए जिससे वे कुछ २ घंटे पहले ही तो मिले है। परंतु कहीं ना कहीं वे जानते थे कि वे उस बच्ची को वापस नहीं भेजना चाहते थे, उसे सँजो के अपने पास रखना चाहते थे सदा के लिए . . . अचानक ही उनके मुख से निकल पड़ा, “पाखी की तरह इसे नहीं जाने दूँगा कहीं इस बार।” मिश्रा जी अभी तक तो ख़ुद भी इस नए एहसास का मतलब नहीं समझ पा रहे थे।

घर पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाया तो मिसेस मिश्रा ने तुरंत उठ कर दरवाज़ा खोला और एक मासूम, कीचड़ में सनी लड़की को देख आश्चर्यचकित हो उठीं। तीखी नज़रों से मिश्रा जी को इशारे में हाथ हिला कर पूछा कि ये कौन है? मिश्रा जी ने इशारों में ही बोला कि पहले इसे अंदर ले जाओ फिर बताता हूँ पूरी बात। मिसेस मिश्रा ने पैर-हाथ धुलवा कर अनामिका को अंदर एक कुर्सी दिखाते हुए बैठने को कहा। फिर मिश्रा जी के तरफ़ मुड़ी। मिश्रा जी ने मिसेस मिश्रा की तरफ़ देखते हुए कहा, “इस लड़की को अनाथ आश्रम से मिसेस डिसूज़ा ने भेजा है। शायद उनसे सुनने में ग़लती हो गई थी और लड़के के बदले लड़की भिजवा दी। पर विश्वास करो सुमन इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है। अब हावड़ा स्टेशन पे इतनी बारिश में कैसे अकेले छोड़ देता इस मासूम को, इसीलिए संग लेते आया। मिसेस डिसूज़ा से बात कर के हम इसे वापस भेज देंगे और . . .।” इस से आगे कुछ नहीं बोल सके मिश्रा जी और ना जाने क्यूँ आख़िरी वाक्य बोलते वक़्त उनकी आँखें नम हो चली थीं। मिसेस मिश्रा समझ चुकी थी कि उस बच्ची ने मिश्रा जी के पुराने घाव को छेड़ा भी है और वही मरहम भी लगा सकती है। मिसेस मिश्रा के मुँह से अचानक ही निकल पड़ा, "एकदम आपकी पाखी जैसी है ना ये!”
 
उधर से अनामिका के नाम की घोषणा हुई और उसे स्टेज पे बुलाया गया। माइक को हाथ में लेते हुए अनामिका अपने माता-पिता को आँखों से धन्यवाद और नमन करते हुए बोलना शुरू किया, “आप सभी को मेरा नमस्कार। इस अनाथ आश्रम से बहुत गहरा नाता है मेरा। यहाँ अपने जीवन के १० वर्ष बिताए हैं मैंने, पर मैं आप सब को बताना चाहती हूँ कि आप सब के लिए भी एक मिश्रा जी और सुमन जी ज़रूर आएँगे। आप सब को भी माता-पिता मिलेंगे और वो एक पल का सपना सच होगा। बस हौसला रखिए।”

और फिर डॉक्टर अनामिका को गृह मंत्री ने पुरस्कार दे सम्मानित किया उसकी सफलता और उपलब्धियों के लिए, पर आज अनामिका को पाखी की याद कुछ ज़्यादा ही आ रही थी। उधर से मिसेस मिश्रा ने आवाज़ लगायी, “पाखी चलो बेटा मिश्रा जी बुला रहे है।”
 

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