किसी अमरबेल सी लिपटी
तेरी यादों में ज़िन्दगी
बही जा रही है
है रवानी अब भी बाक़ी
इसमें जब तक बानगी है
पर सोचता हूँ
कश-दर-कश यादें
क्यों कर सताती हैं
तेरे ख़ामोश नैनों की कोई
कहानी सुनाती हैं
सवाल मेरे माँझी
मेरे मंजर का नहीं
तेरे अहसास-ए-सुकूँ का है
अमरबेल सी लिपटी तेरी यादें।

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