ऐसी अद्भुत मेरी नानी

01-03-2020

ऐसी अद्भुत मेरी नानी

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 151, मार्च प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

मेरी नानी सब कुछ जाने
कहना हम सब उनका मानें।


बहुत सवेरे नानी जगतीं
मुझको भी उठना पड़ता है।
नानी सुबह घूमने जातीं
मुझको संग जाना पड़ता है।


मैं जब-जब भी दौड़ लगाता
तब तब दौड़ लगातीं  नानी।
मैं तो तेज़ दौड़ जाता हूँ
नहीं पकड़ पाती हैं नानी।


होम वर्क नानी करवातीं
दीदू को भी रोज़ पढ़ातीं।
पहले ख़ुद नानी लिखती हैं
फिर दीदू, मुझसे लिखवातीं।


स्वेटर बुनें डिज़ाइनदार
पत्ती-फूल लगें रसदार।
कुर्ते पाजामे मेरे सिलतीं
पहनूँ मैं, पर नानी खिलतीं।


रोज़ सुनातीं हमें कहानी
क्या सीखा? कहतीं फिर नानी।
नईs, नईs पोयम सिखलातीं
ऐसी अद्भुत मेरी नानी॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
कविता
चिन्तन
कहानी
लघुकथा
कविता - क्षणिका
बच्चों के मुख से
डायरी
कार्यक्रम रिपोर्ट
शोध निबन्ध
बाल साहित्य कविता
स्मृति लेख
किशोर साहित्य कहानी
सांस्कृतिक कथा
विडियो
ऑडियो