ऐसा क्यों?

01-01-2021

ऐसा क्यों?

आशा बर्मन (अंक: 172, जनवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ऐसा क्यों‍ होता है कि
कहीं तो
एक लम्बे अन्तराल के पश्चात्‌
मिलने पर भी,
सम्बन्धों के सभी सूत्र
अनायास ही जुड़ जाते हैं।
 
हृदय-तन्त्री के सभी तार
एक साथ ध्वनित हो जाते हैं।
स्नेह-संचार में समय ही नहीं लगता।
विश्वास ही नहीं होता कि 
इतने दिनों बाद मिले हैं।
 
और कहीं,
बरसों पर बरस, 
साथ-साथ रहते हुये भी, 
सम्बन्ध इतने तार-तार हो जाते हैं, कि
कहीं कोई सूत्र हमें जोड़ नहीं पाता,
वरन्‌ जोड़ पाती है केवल एक दूरी
जो निरन्तर बढ़ते हुये
केवल यही प्रश्न पूछती रहती है कि
क्या हम कभी निकट भी थे?

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
साहित्यिक आलेख
कार्यक्रम रिपोर्ट
कविता - हाइकु
गीत-नवगीत
व्यक्ति चित्र
बच्चों के मुख से
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो