अहिंसा का उपदेश 

15-04-2021

अहिंसा का उपदेश 

राजनन्दन सिंह (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अहिंसा का उपदेश
शेर और हिरण
दोनों ही के लिए व्यर्थ है
हिंसा 
शेर का जीवन है
और हिरण 
इसमें असमर्थ है
हिरण 
हिंसा कर नहीं पाएगा
और शेर  
हिंसा के बिना मर जाएगा
इसलिए शेर की हिंसा
हिंसा नहीं 
हिरण की अहिंसा भी
अहिंसा नहीं 
प्रवृत्तियाँ
अपराध तब बनती हैं 
जब वह अपनी प्रकृति के 
विपरीत चलती हैं
धूर्तता की अपनी 
अलग पहचान है
और सादगी की 
अपनी अलग
धूर्तता कभी भी ओढ़ सकता है
सादगी का छद्म
मगर सादगी 
सिर्फ़ सादगी है
छद्म ओढ़ने में असमर्थ है
अहिंसा का उपदेश
शेर और हिरण
दोनों ही के लिए व्यर्थ है

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