अग्निदाह

01-05-2021

अग्निदाह

मधु शर्मा (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

इच्छाओं को अपनी बटोरकर,
उन एक-एक का गला घोंटकर,
अरमानों का कफ़न ओढ़ा दूँगी,
चाहतों की चिता पर सुला दूँगी।
 
आहों द्वारा अग्निदाह करवाकर,
हसरतों को हँसके गले लगाकर,
आशाओं सहित अलविदा कहूँगी,
पीड़ पराई ही सही,  सदा सहूँगी।     
 
'इनके-उनके' पक्षपात में न पड़ूँगी,
एक-एक करके यादें विदा करूँगी, 
उखाड़कर दिल, वहीं शिला धरूँगी,
निर्दोष हूँ, फिर भी अहिल्या बनूँगी।  
 
इससे पहले कि:  
 
बुझते शोलों से नई उम्मीदें उभर पड़ें,
और उड़कर मेरे आँगन की ओर बढ़ें,
राख का ही क्यों न अस्तित्व मिटा दूँ,
जलती हुई ही अपने हाथों से उठा लूँ।
गंगा में बहाना है, बहाने से बिखेर दूँगी,
उन उभरती उम्मीदों पर पानी फेर दूँगी।

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