सावधान रहिये सदा, जब हों साधन हीन।
जाने कल फिर हो न हो, पैरों तले ज़मीन॥
अफ़वाहों के पैर में, चुभी हुई जो कील।
व्याकुल वही निकालने, बैठा आज 'सुशील'॥
अफ़वाहें मत यूँ उड़ें, मन हो लहू-लुहान।
मंदिर सूना भजन बिन, मस्जिद बिना अजान॥
मेरे घर में छा गया, मेरा ही आतंक।
राजा से कब हो गया, धीरे-धीरे रंक॥
हाथ लगी जब चाबियाँ, निकले नीयत-खोर।
बन के भेदी जा घुसे, लंका चारों ओर॥