अभिनव अभिव्यंजनाओं की अभिनव अनुभूतियाँ

19-07-2008

अभिनव अभिव्यंजनाओं की अभिनव अनुभूतियाँ

अभिनव शुक्ला

समीक्ष्य पुस्तक : अभिनव अनुभूतियाँ
(अभिनव शुक्ल की कविताओं का संग्रह)
समीक्षक : डॉ. बृजेन्द्र अवस्थी
मूल्य: 150 रुपए
प्रकाशक: पाण्डुलिपी प्रकाशन, 77-1, ईस्ट आज़ाद नगर, नई दिल्ली 11051

‘अभिनव अनुभूतियाँ’ मानव मन की वे गहन अनुभूतियाँ हैं, जिनकी अभिव्यक्ति वक्त की माँग है, इन्सानियत का तकाज़ा है। मन करवटें बदलता है, कुछ पदचाप सुनाई देते हैं, आशा और निराशा के बीच शांति युद्ध चलता रहता है, हमारा अंत:स्थल कराह उठता है, विसंगतियाँ और विद्रुपताएँ उसे झकझोरती हैं, फिर भी वह थका हारा, स्वयं से जूझता, मानव मन, आशा और विश्वास की किरणों हाथों में थामे हुए जीवन पथ पर चलता रहता है, अविराम, अक्लान्त। इन्हीं सरस, कोमल, अनछूए भावों की सशक्त अभिव्यक्ति है - ‘अभिनव अनुभूतियाँ’, सुकवि, इंजीनियर, देश के लाड़ले फनकार श्री अभिनव शुक्ल की।

इस काव्य ग्रन्थ में जीवन के विविध, रंग बिरंगे, अनछूए पहलुओं को छूते हुए, मानव मन की छटपटाहट को वाणी देने वाले 55 गीत-नवगीत-नई कविताएँ संकलित हैं। इनमें राष्ट्रप्रेम की धधकती ज्वाला है, भावों की विषद गहराई है तथा कोमल अनुभूतियों की हृदयस्पर्शी अभिव्यंजना है। ‘अभिनव अनुभूतियाँ’ जीवन के काल-कूट विष को पचाकर सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ बनकर हमें जीवन की जiटल समस्याओं से जूझने की शक्ति प्रदान करती है और मन में छिपी आग में स्वयं को कुन्दन के समान दहका कर कुछ ‘अभिनव’ करने की प्रेरणा प्रदान करती है। अभिनव के गीतों में राष्ट्र भक्ति का संदेश है, देश का स्वाभिमान जगाने वाला उद्‍घोष है और त्याग-समर्पण-बलिदान की सत्प्रेरणा है। उनके गीतों में देश-प्रेम की खौलती आग है, वह आग जो जीवन की हर विषमता को लांघकर सुन्दरतम्‌ भारत के निर्माण के सपने संजोती है।

कवि नींद में डूबे हुए भारत को जगाना चाहता है, जंग लगी शमशीरों को शौर्य के निकष पर घिसकर चमकाना चाहता है। ‘भारत तेरे चरणों में (मंगलाचरण) कविता में उद्‌बोधन का भाव स्पृहणीय है -

आज जगाना है हमको, इस नींद में डूबी स्याही को,
और देश के गाँव-गाँव में, सोए हुए सिपाही को,
चमकानी हैं आज हमें, पत्थर पर घिस कर शमशीरें,
राह दिखानी है हमको, हर भूले भटके राही को।

कवि उन्मुक्त हृदय से देश की लचर राजनीति को संदेश देता है कि हमें गुजरे हुए कल को भूल कर भविष्य का निर्माण करना है, समझौतों के दलदल से निकल कर देश के स्वाभिमान कि रक्षा करनी है। नौजवानों की धमनियों में जो लावा पिघल रहा है, उस लावे का अभिषेक करना है -

भारत क्यों तेरी सांसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत सी बाकी है।

कैसी विडम्बना है? - गद्दार देश का सौदा कर रहे हैं, व्यापारी भुखमरी को अनदेखा कर अनाज के गोदाम भर रहे हैं, और संसद के रखवाले सत्ता की मदिरा पीकर झूम रहे हैं। हमें यह सब अनदेखा करके अपने राष्ट्र धर्म का निर्वाह करना है -

तुम अपना काम करो और हमको अपना धर्म निभाने दो,
होती नैया में उथल पुथल अब बेड़ा पार लगाने दो,
है राष्ट्र बना गोदाम कि जिसका नहीं कोई है रखवाला,
संसद नें आँखें मूँदी हैं कानून के मुँह पर है ताला,
सब कोट वकीलों से काले न्यायालय भी है मतवाला,
शहरों कोने कोने में रिश्वत नें बुन डाला जाला।

कवि निर्भीक स्वर में आह्वान करता है - ये राजनीति के पिट्ठू इसी प्रकार निंदनीय समझौते करते रहेंगे, वे निजी स्वार्थों के लिए देश के बलिदानी शोणित का अपमान करते रहेंगे। हमें इन गद्दारों की चिंता न करके अंतिम युद्ध की तैयारी करनी होगी।

अनेक झंझावात भारत की शस्य श्यामला धरती पर मंडरा रहे हैं। इन्हीं झंझावातों के मध्य हमें अपनी मंज़िल तलाश करनी होगी। कवि निराशा के सघन अंधकार को चीर कर आशा के दीप जलाता है, और जन जन को अनवरत संघर्ष करने की प्रेरणा देता है -

नव अंकुर मृदा से फूटेंगे, बस वायु वेग संचार रहे,
सक्षम हम हैं यह ज्ञत रहे, बढ़ती कदमों की धार रहे,

‘राष्ट्र भाषा हिन्दी’ कविता हिन्दी का मंगलार्चन है, हिन्दी की भाव भीनी वंदना है। अभिनव मातृभाषा को प्रणाम करते हुए कहते हैं 

रग रग में जो है बसी हुई, जो जीवन की अभिलाषा है,
वह स्वप्न सुंदरी नहीं कोई, मेरी माँ सी हिन्दी भाषा है।

हम जान चुके हैं - ‘मेरा भारत महान’ या ‘फील गुड’ जैसे नारों के उद्‌घोष से देश का उद्धार नहीं होगा। तमाम काम अधूरे पड़े हैं। देश के नव निर्माण का बिगुल बज रहा है। हम पूर्ण आस्था के साथ वे अधूरे पड़े कार्य पूरे करें - तभी नव जागरण का स्वप्न साकार होगा।

उत्तर क्या दोगे तुम आखिर, पावन गंगा की घाटी को,
जो काम अधूरे हैं उनको, तुम अब तो पूरा कर डालो,
अब जागो हिन्दोस्ताँ वालों,
अब जागो हिन्दोस्ताँ वालों।

‘साहस’ कविता में अभिनव जी देश के सोए हुए साहस, शौर्य और पराक्रम को जगाना चाहते हैं। ‘तुम कहते हो’ में देश के चप्पे चप्पे में पसर रहे आतंक, असुरक्षा और भय का सफल चित्रण है। न्यूनतम शब्दों में गहनतम अनुभूतियों का चित्रण अभिनव की कविता की पहचान है। एक हृदयस्पर्शी उद्धरण द्रष्टव्य है -

घर के बच्चे चढ़ी रात,
सोते से उठ कर,
अम्मा अम्मा चिल्लाते हैं,
बच्चों की आवाजें सुनकर,
घर के बूढ़े सहम रहे हैं,
सब कोनों में दुबक रहे हैं।

मनुष्य देवत्व का ढोंग रचाता है। कटु यथर्थ यह ह कि पग पग पर शैान उसके जेहन पर हावी है। वह चाह कर भी पाश्विकता की उस दलदल से नहीं निकल पाता -

जिन्दगी के हर कदम पर,
साथ हैं,
हाथ बाँधे,
पाश्विक,
मजबूरियाँ।

‘तराज़ू टूट जाता है’ नवगीत वातावरण में गूँज रहे हाहाकार और मानव की छटपटाहट का सजीव चित्रण है। सन्नाटे का यथार्थ चित्र द्रष्टव्य है -  

वक्त का हाहाकार चुप है,
हर दर-ओ-दीवार चुप है,
चीख आती है कहीं पर,
कहीं पर बाजार चुप है।

कवि खोखले आदश… के लिहाफ में प्रसन्नचित्त होकर सोने का आदी नहीं है। अभिनव की सोच अभिनव है, उनकी ‘एप्रोच’ अभिनव है तथा अभिव्यंजना की कला भी अभिनव है। ‘जागती आँखों का सपना’ रचना इसका ज्वलंत उदाहरण है - देश की गरीब जनता आज भी एल्यूमीनियम की प्लेट पर आधी रोटी का इंतजार कर रही है। कौन पढ़ेगा उन प्यासे नैनों की भाषा को? देश के संभ्रांत और कुलीन लोग तो उत्सव मनाने में व्यस्त हैं।

उत्सव मनाते हुए लोग,
तथा एल्यूमीनियम की प्लेट में,
आधी रोटी का,
एक तिरस्कृत टुकड़ा।

‘लड़कियों की जिन्दगी’ नवगीत नारी के जीवन की वह सच्ची दास्तान सुनाता है, जो ऊपर से हसीन लगती है परंतु वक्त के थपेड़े जिस सुकोमल जीवन गान को चीथड़ों में बाँट देते हैं -

रात भी अजीब है, ज़ुल्म की पनाह से,
बेखबर ही कट गई,
लड़कियों की ज़िन्दगी, आज भी जहान में,
चीथड़ों सी बंट गई।

कविता अपने कालखण्ड का यथार्थ प्रतिबिंब है। वह कवि ही नहीं जिसकी जुबान सत्य कहते हुए लड़खड़ाए।

अभिनव ऊँचे महलों में पनप रही पाश्विकता का जिक्र करते हुए कहते हैं कि वहाँ कि चमक दमक में नि:संदेह वृद्धि हो रही है परंतु कटु यथार्थ यह है कि आज इंसान इंसान की खाल नोंच रहा है, उसका पूरा प्रयास है कि मैं अपनी ख्वाहिशात की पूiर्त के लिए दूसरे के हंसते खेलते जहान में कैसे आग लगाऊँ।

पढ़ के अब कानून हमदम आ गए हैं इस तरफ,
शौक से अब आदमी की खाल नोचे आदमी,
है बड़ी ऊँची इमारत और छोटे आदमी,
किस तरह अब रास्तों के पार सोचे आदमी।

‘अभिनव अनुभूतियाँ’ ग्रन्थ का काव्य शिल्प चुस्त और परिपक्व है। कवि ने सहज मुहावरेदार लोक प्रचलित भाषा का प्रयोग किया है, जो हृदय की सहज अभिव्यक्ति होने के कारण प्रभावोत्पादक बन पड़ी है। भाषा में गजब का प्रवाह है, शैली में नयापन है, और अभिव्यक्ति कोमल संवेदनाओं को उकेरने में पूर्णतया सक्षम है। न अलंकारों का दुराग्रह, न कृत्रिमता का बोझ, केवल मुक्त, स्वच्छंद निर्झरणी का नाद, जो अपने लिए स्वयं माग्¥ चुनती है, कल कल स्वर से बहती हुई पयस्वनी, जो हर प्यासे मन की प्यास बुझाती है, ऐसी अभिनव कविता है - कविवर्य अभिनव की भाषा की सजीवता, मौन संवेदनाओं का मधुर आलाप, उर्दू फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग, एक उदाहरण देखिए -

खिली चाँदनी बिखरी बिखरी,
चहके चहके से हालात,
घुली हवा में मीठी खुशबू,
दिल की दिल से होती बात।

अभिनव शब्दों के जादूगर हैं। उनके शब्द वातावरण में मीठी सुगंध घोलते हैं, कभी मजदूर की बिवाइयों से बह रहे रक्त की भाषा बोलते हैं तो कभी हिमाद्रि के बर्फ को पिघला देने वाला अनल भी बरसाते हैं। ‘शान-ए-अवध’ कविता लखनऊ की शानो-शौकत का आईना पेश करते हुए गुनगुनाती है -

वो नज़ाकत, वो नफासत, वो तकल्लुफ यारों,
जो किताबों में कहीं तुमने भी पढ़ा होगा,
वहाँ की गलियों में सब आज भी मुहाफिज़ है,
वक्त भी पहले आप कह के ही बढ़ा होगा।

‘विडम्बना’ रचना हिन्दी से आजीविका कमाने वाले उन बड़े साहित्यकारों, अधिकारियों, नेताओं पर करारा व्यंग्य है, जो आज भी पश्चिमी सभ्यता के गुलाम हैं और अंग्रेजी में संभाषण करना अपनी शान समझते हैं -

शब्दों को भाषा की चाशनी में,
हम ठीक प्रकार से घोलते हैं,
परंतु आजकल फैशन के मुताबिक,
पब्लिक में,
सिर्फ अंग्रेजी ही बोलते हैं।

‘हमें तो बहुत पैसा कमाना है’ रचना आधुनिक युग की घुड़दौड़, आपाधापी, स्वार्थ-निष्ठा, अर्थ लोलुपता तथा मानव की मर रही संवेदनाओं पर तीखा व्यंग्य है। ‘रेल यात्रा’ रचना भारतीय रेलवे के जनरल कम्पार्टमेंट की यात्रा के कसैले अनुभवों की व्यथा कथा है। कुछ व्यंग्य रचनों लम्बी हो गईं हैं। व्यंग्य जितना संक्षिप्त, धारदार और चोटीला हो - उतना ही अधिक हृदयस्पर्शी होता है।

अंतत: ‘अभिनव अनुभूतियाँ’, आम आदमी के अन्तस में छटपटा रहे संत्रास का चित्रण हैं, सुरसा की तरह मुँह फैलाए खड़ी विसंगतियों एव विद्रुपताओं पर करारा व्यंग्य हैं और जंग खा रही राष्ट्र-भक्ति की शमशीर को पैना बनाने वाली लुहार की भट्ठी हैं - जिसकी धधकती आग में दहक कर यदि चन्द शमशीरें भी चमक उठीं तो अभिनव की यह अभिनव उड़ान सार्थक और कारगर सिद्ध होगी। मैं माँ सरस्वती के इस लाडले पुत्र को हृदय से आशीर्वाद देता हूँ - अभिनव काव्य-गगन में निरंतर ऊँची उड़ान भरें और उनके अनमोल काव्य हीरकों से हिन्दी जगत निरंतर दीiप्तमान होता रहे। इसी मंगल कामना एवं शुभाशीष के साथ -

डॉ. बृजेन्द्र अवस्थी

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