अब के बहार आए ज़माना गुज़र गया

15-09-2021

अब के बहार आए ज़माना गुज़र गया

डॉ. सुनील शर्मा (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अब के बहार आए ज़माना गुज़र गया 
दिल को क़रार आए ज़माना गुज़र गया
 
उनके लबों पर तबस्सुम की बिजलियाँ गिरे
बरसों हुए कि ज़िंदगी का आना गुज़र गया
 
अधखिली कलियाँ सूख गईं डाल पर तमाम
भँवरों का चमन में आन के गाना गुज़र गया
 
हर बार भटकते रहे देखकर नए सराब
अपनी हक़ीक़तों का ठिकाना गुज़र गया
 
ताउम्र तसव्वुर में जिसे रखा सँजो कर
उसकी इस बेरुख़ी से दिवाना गुज़र गया
 
मायूसियों के साए भी कुछ इस क़दर बढ़े
शादमांनियों की सहर का आना गुज़र गया
 
अब सभी एहसासों से फ़ारिग है दिलो-दिमाग़
यादों की गलियों में जाने का बहाना गुज़र गया

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें