आवाज़ कौन
नीना पॉल (स्वर्गीय)दे गया झरनों को फिर आवाज़ कौन
पत्थरों के हाथ में ये साज़ कौन
ले गईं मेरी उम्मीदें फिर वहीं
दूर से बजा रहा ये साज़ कौन
बर्फ़ को फिर-फिर पिघलने का नया
धूप को सिखला गया अंदाज़ कौन
मैं उड़ी तो दूर तक उड़ती रही
हौंसलों को दे गया परवाज़ कौन
आप भी गर रूठ कर यूँ चल दिए
फिर उठाएगा हमारे नाज़ कौन