आसमान की चादर पे

15-01-2021

आसमान की चादर पे

अविनाश ब्यौहार (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

आसमान की चादर पे
थिगड़े लगे हुए।
 
हैं टुकुर-टुकुर
देखते चाँद-तारे।
है कोई रूपसी को
घूरकर निहारे॥
 
पाँखुरी सी पलकें
हौले से कोई ख़्वाब छुए।
 
ज्यों हरीतिमा पत्तों 
पर नृत्य करती।
मधु बना मुमाखी
अच्छा कृत्य करती॥
 
जैसे चाहत के गमलों
में नेह के अँखुए।
 
बुरा चलन समाज
में पाँव पसारे।
दिवस खड़े हैं
धूप में नंगे-उघारे॥
 
दबोच रहे हिरण
को बेरहम तेंदुए।

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