आषाढ़ की पहली बारिश 

15-07-2019

आषाढ़ की पहली बारिश 

डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’

आषाढ़ की पहली बारिश ने मन प्राण भिगोया है
पावस ने पुलकित जल बूँदों का हार पिरोया है।

 

लीला अबूझ है प्रकृति की
ख़ुशियाँ जल में बरसाती
यह मिट्टी हवा जलाशय के
अन्तर्मन को सरसाती
स्नेहिल फुहार से वसुन्धरा का आनन धोया है

 

तन-मन का सारा तपन खींच
हरितिमा लुटाने आयी
उम्मीदों वाली फुनगी पर
मेघों की पाँत सजायी
दृग ने भी रिमझिम फुहार का सुसपन सँजोया है

 

घनघटा देख श्यामल श्यामल
सृजन में जीवन आया
लेखन को नव आयाम मिला
कृतियों का मन हरषाया
मेघों ने अमृत आखर को वसुधा पर बोया है

 

ले प्रथम चरण मल्हार का
भू पर छा जाता आषाढ़
बादल रागों का कोमल गीत
सुना जाता आषाढ़
सुन देश-राग सुर, ताप ने भी निज सुध बुध खोया है। 

1 टिप्पणियाँ

  • 15 Jul, 2019 01:35 AM

    शानदार अभिव्यक्ति। प्रकृति का सजीव चित्रण। जीवंत कविता।

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