आश्रम में स्त्रियाँ
निशा भोसलेआश्रम में
आश्रय लेने आती है
समाज की वह नारियाँ
जिसे ठुकराया है परिवार ने
जिसे ठुकराया है समाज ने
जिसे ठुकराया है पति ने
सुबह से शाम तक खटती है
किसी मशीन की तरह
ठीक वैसे ही
जैसे वह करती थी काम
परिवार में रहकर
उसे आती होगी याद
अपने ही घर की/परिवार की
बच्चों की/पति की
देखा था जो सपना
जीवन भर जीने का
परिवार के साथ
टूट गये, बिखर गये
वे रिश्ते, वे सपने सारे
जीवन के
अब सिर्फ़
देती है बयान
आँखों के आँसू
उनकी याद आने की।