आशायें बस इतनी सी
अविचल त्रिपाठीऔर रद्दी हुआ जाता था इतिहास,
जिसे पर्दानशीं किये रहने की घोषणाओं,
और बेपर्दा होने के दुष्प्रभावो की भविष्य वाणियों से,
हरी, नीली, लाल, सारी क़लमों ने रँगे हैं पन्ने
जिसकी महिमा के गायन में,
ताकि सीना फूला रहे हमेशा उसका,
“फ़तह” करने के लिए..
लोक, राज, गण धर्म आदि आदि सभी
तंत्रवादियों ने जिसे हमेशा एक ही नज़र से देखा है..
सुना है, वो आजकल,
हर सफल आदमी के पीछे की सफलता
की उपमा से निजात पाने को बेकल हो रही है..
परदे और महिमा दोनों से बँधी साँसें
और सारे तन्त्रवादियो के षड़यंत्र
नाकाम होने को हैं..
हाँ, ज़रा चेहरे पर तेज़ाब और जिस्म में वीर्य
दोनों ही, ज़बरदस्ती फेंका जा रहा है अभी,
दुष्प्रभावों की भविष्यवाणी यही थी शायद,
पर आने वाले, वक़्त की गति देखकर
यकीं हो रहा है, कि ये तेज़ाब
ख़ुद पर छिडकना पड़ेगा हमें,
और वो आज़ादी की साँसों के साथ,
हमारे कवरेज एरिया से बाहर जा चुकी होगी..
आशा है बस, कि ये जल्द से जल्द हो..