आसमाँ शक के घेरे में है
अनिल मिश्रा ’प्रहरी’आसमाँ शक के घेरे में है
क्योंकि सूरज अँधेरे में है।
अमन के फूल खिलें भी तो कैसे
नफ़रत का ज़हर तेरे मेरे में है।
डसना तो उनकी आदत में है शुमार
पर हुनर भी नहीं कम सपेरे में है।
उजाले पर तो हक़ सबका था
आज क़ैद महल, अटारी, डेरे में है।
दुश्मन को कभी कम कर मत आँक
वह हरदम तुझे लूटने के फेरे में है।
चाँद - सितारे चमकते रहे रात भर
पर वह बात कहाँ जो सवेरे में है।