आसमाँ शक के घेरे में है

15-03-2021

आसमाँ शक के घेरे में है

अनिल मिश्रा ’प्रहरी’ (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

आसमाँ   शक    के    घेरे    में     है 
क्योंकि   सूरज    अँधेरे     में      है। 
 
अमन के फूल  खिलें  भी  तो   कैसे 
नफ़रत  का  ज़हर  तेरे  मेरे   में   है। 
 
डसना तो उनकी आदत में है  शुमार 
पर हुनर भी नहीं कम  सपेरे  में   है। 
 
उजाले  पर  तो  हक़   सबका     था
आज क़ैद  महल, अटारी, डेरे  में  है। 
 
दुश्मन को कभी कम कर मत  आँक
वह हरदम तुझे लूटने  के फेरे  में  है। 
 
चाँद - सितारे चमकते  रहे  रात  भर
पर वह बात कहाँ  जो  सवेरे  में   है।  

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें