आस का इंद्रधनुष
डॉ. सुकृति घोषदुख के काले मेघ चीरकर, आस का इंद्रधनुष धर लूँगी
लाख बारिशें ग़म की हो मैं, नेह की छतरी तान रखूँगी
मन की शुष्क धरा को अपने अश्कों से ही तर कर लूँगी
कटुता की गंदली झाड़ी को, प्रेम अनल से सुलगा दूँगी
एकाकीपन की संध्या में, यादों की तस्वीरें संग रखूँगी
रुचिर नगीने अहसासों के, बड़े जतन से छुपा रखूँगी
स्याह अमावस विभावरी में, निश्चय का दीप जलाऊँगी
जगमग तारे गठरी में भरकर, देहरी पर रख आऊँगी
स्वच्छ धवल पूनम की निशा में, चंदा संग बतियाऊँगी
चंद्रप्रभा को आँचल में भरकर, घर भर में बिखराऊँगी
दुनियादारी की भागदौड़ में, पल फ़ुरसत के मैं जी लूँगी
साँझ समय अनुमप वेला में, गुनगुन गीत मधुर गाऊँगी
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