आओ ना बरसात
अशोक शर्मा(मनहरण घनाक्षरी में रचना)
वर्षा काल अनमोल, नभ देता आँखें खोल।
हर्ष भरे मेघ भैया, धरती पे आओ ना॥
धरा अब तप रही, ख़ुशियाँ भी ठप रहीं।
मिलकर सोंधी गंध, ख़ुशबू फैलाओ ना॥
भेंक राह देख रहे, पपीहा भी दर्द सहे।
बाल जन मन नैया, अब मचलाओ ना॥
नावों वाली रेस आये, छपकी मुन्हें लगायें।
खेलें साइकिल दौड़, जल उफनाओ ना॥
पशु पक्षी शोर करें, आशा नित मोर करे।
मेघ टकराने वाली, शया चमकाओ ना॥
फूल बाग़ शूल बने, रास्ते अब धूल बने।
वायु भारी गर्द गर्द, नमीं दे बैठाओ ना॥
मन भींगे ख़ुशी पा के, बचपन ताके झाँके।
खेल खलिहाल ताके, जल बरसाओ ना॥
पिया परदेश रहे, विरहन दर्द सहे।
पुरुवा के झोकों संग, दर्द पहुँचाओ ना॥
सूखे नदी ताल सर, बढ़ता गर्मी क़हर।
जीव जंतु हाँफ रहे, जलधार लाओ ना॥
बहके मदन मन , चहके कोयल बन।
झूला झूलूँ प्यारी संग, टिपटाप आओ ना॥
मेंढकों की टर्र टर्र , झींगुरों की झर्र झर्र।
सांध्य गीत शुभ लागे, जल छलकाओ ना॥
कानन अब कट रही, वायु देखो घट रही।
तरु जड़ मानवता , ज्ञान से भींगाओ ना॥
नर बुद्धि सुधि नहीं, आपदा से क्रुद्धि रही।
क्लेश द्वेष घृणा सब, धरा से बहाओ ना॥