आँसू

ज़हीर अली सिद्दीक़ी  (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

तन्हाई के अकेले साथी
आँसुओं की सच्चाई है
ख़ुशी का उजाला हो या
मुसीबत की काली रात
साथ नहीं छोड़ते
हम दिल से जुड़ते हैं
आँखों के आँसू हम से
ये ख़ुशी के वक़्त
सभी के सामने जुड़ते हैं
दुःख में अकेले में
तभी तो ज़िन्दगी भर
ये हमारे अपने होते हैं
बारिश के बौछार की तरह
तूफ़ान के झोकों में भी
ठण्डक भर रहे थे
टूटने से रोक देते हैं
सूखने पर सींच देते हैं
बदन के जर्जर कपड़े
बटन के मरहूम होने पर
डरते हैं कहीं उड़ न जाएँ
ये आँसू पसीनों से मिलकर
जर्जर लिबास को भी
बदन पर स्थिर कर
नंगा होने से बचा लेते हैं
वरना लोग जर्जर कपड़े में
उँगली डालकर फाड़ देते हैं
हवा में उड़ा देते हैं
इस कश्मकश में
आँसुओं का एक साथी
माथे का पसीना
आँखों में धीरे से जाकर
जलन पैदा कर रहा था
आँसुओं को रोक रहा था
ऐसे लगा मानो
रोने से मना कर रहा हो
आँसुओं को आराम देने की
क़वायद कर रहा हो॥

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