आमजन से जुड़े हुए तकनीकी तथ्यों का ख़ज़ाना है, 'डिजिटल हिंदी की यात्रा'

15-05-2021

आमजन से जुड़े हुए तकनीकी तथ्यों का ख़ज़ाना है, 'डिजिटल हिंदी की यात्रा'

कान्ता रॉय (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)


पुस्तक : डिजिटल हिंदी की यात्रा
लेखक : विजय प्रभाकर नगरकर
संस्करण : प्रथम, अक्तूबर 2020
मूल्य : 350/-
प्रकाशक : एशियन प्रेस बुक्स, कोलकाता-28

एक प्रयोक्ता (यूज़र्स) की नज़र में कम्प्यूटर की दुनिया में हिंदी का पता बताती है ये पुस्तक।

डिजिटल टेक्नोलॉजी के लिए यह बात कही गई है कि तकनीक, उसी की है जो तकनीक का ही होकर रह गया। अर्थात आप जितना अधिक उस पर निर्भर रहेंगे वह उतना ही अधिक आपके नज़दीक रहेगी। निश्चित रूप से ऐसे ही टेक्नोसेवी लेखक विजय प्रभाकर नगरकर के द्वारा यह पुस्तक पाठकों के समक्ष आई है।

पुस्तक हाथ में लेते हुए एक रोमांचक अनुभूति हुई। मेरा भी तकनीकों के प्रति लगाव एकमात्र कारण था। यह सच है कि आप जिन चीज़ों से लगाव रखते हैं, प्रेम करते हैं, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना, उनको पढ़ना अच्छा लगता है।

यह पूरी पुस्तक यूनिकोड में ही टाइप की गई है। यह इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि डेस्कटॉप पब्लिशिंग से जुड़ी होने के कारण मैं भली-भाँति इस बात से परिचित हूँ कि पब्लिकेशन हाउस में कोरल ड्रॉ, पेज मेकर और क्वार्क एक्सप्रेस यह मुख्य तीन सॉफ़्टवेयर ही इस्तेमाल किए जाते हैं और यह तीनों सॉफ़्टवेयर यूनिकोड हिन्दी फ़ोन्ट को सपोर्ट नहीं करते हैं। कोरल ड्रॉ के नए वर्ज़न में यह सुविधा उपलब्ध है लेकिन बहुत महँगा सॉफ़्टवेयर होने के कारण साधारण पब्लिकेशन हाउस उस पर काम नहीं कर पाता है। माइक्रोसॉफ़्ट ने माइक्रोसॉफ़्ट पब्लिशर के रूप में एक बड़ा फ़ीचर, पब्लिकेशन हाउस के लिए तैयार किया है।

'डिजिटल हिंदी की यात्रा' विजय प्रभाकर नगरकर द्वारा रोचक जानकारियों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।

आमजन से जुड़े हुए तकनीक सम्बंधित तथ्यों का यह ख़ज़ाना, कम्प्यूटर प्रेमियों को उपहार स्वरूप मिला है। इस पुस्तक के शुरुआत में सूचना प्रौद्योगिकी की व्याख्या करते हुए क्रमवार तरीक़े से भारतीय लिपियों की विशेषताओं एवं राष्ट्रीय लिपि में विकास की विस्तार से चर्चा की गई है। नागरी और ब्राह्मी लिपि में भेद को बारीक़ी से चिह्नित किया गया है। देवनागरी के बारे में अनेकों नए तथ्य जैसे कि सी-डैक पुणे के अनुसंधान के अनुसार देवनागरी लिपि का मूल आधार ब्राह्मी लिपि है, इस पुस्तक के माध्यम से नए संदर्भों के साथ सामने आये हैं। किसी पुस्तक में हिन्दी स्क्रिप्ट कोड के बारे में इतनी जानकारी पहली बार प्राप्त हुई है। ऐसा कहने के पीछे कारण यह है कि 1994 में मेरी बेटी के कोर्स में जब कम्प्यूटर शिक्षा शुरू हुई थी तब उसे होमवर्क कराते हुए मेरे लिए भी कम्प्यूटर शिक्षा के ककहरा सीखने का वह ज़रिया बनी। उन दिनों कम्प्यूटर डेस्कटॉप महँगा बजट होने के कारण, कई बार इंटरनेट कैफ़े पर जाया करती थी। 20 रुपए घंटा बिठा कर पुस्तक खोलकर, उसके कीवर्ड, ड्राइव और माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस की कई कार्यप्रणालियों को लेकर, प्रश्नों के उत्तर तैयार किए थे। उस वक़्त यूनिकोड अर्थात हिंदी में कम्प्यूटर पर टाइप करना हम सोच भी नहीं सकते थे। विशेष सूचना अथवा विषय वस्तु की तलाश इतनी जटिल हो जाया करती थी कि अँग्रेज़ी में हिंदी के शब्दों को टाइप करना अर्थ का अनर्थ करते हुए, अनर्गल विषयों से जूझते हुए, सर्च करना मुश्किल लगता था। क़रीब दस वर्ष इन्हीं मुश्किलों के साथ इंटरनेट की दुनिया से वास्ता रहा जो नज़दीकी का ज़रा भी नहीं था। कभी-कभी तो यह बड़ा झुँझलाहट भरा होता था। सन् 2004 में जब बेटी ने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाख़िला लिया तो घर में इंटरनेट की सुविधा के साथ पर्सनल कम्प्यूटर का पदार्पण हुआ। इन्हीं दिनों मुझे पहली बार 'गूगल इनपुट टूल' जो हिंदी, अँग्रेज़ी समेत अन्य भाषाओं में लिखने की सुविधा उपलब्ध हुई। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी सुविधा थी। अब मैं किसी ख़ास विषय की तलाश के लिए सहज हो गई थी। यह तो था एक यूज़र्स की नज़र में कम्प्यूटर की दुनिया में हिंदी का मेरा अपना निजी सफ़र। लेकिन आज इस पुस्तक को पढ़ने के बाद अंदाज़ा लगा कि हम यूज़र्स के लिए पिछले कुछ दशकों से लगातार कितने रिसर्च, कितने प्रयोग और सफल प्रयास किए गए हैं। जब सन् 1952 में कोलकाता के एक संस्थान 'भारतीय सांख्यिकी संस्थान' से भारत में कम्प्यूटर का पदार्पण होता है तब यह एक छोटी सी शुरुआत थी जो वैज्ञानिक समस्याओं की पूर्ति तक सीमित थी। इसके बाद अन्य बड़े संस्थानों द्वारा निरंतर इस दिशा में हो रहे नवीनतम प्रयोगों पर नज़र रखी गई एवं इन्हें अपनाया भी गया। लेकिन इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात तब सामने आती हैं जब पर्सनल कम्प्यूटर का पदार्पण होता है। पर्सनल कम्प्यूटर अपने साथ जो भाषा लेकर, भारत आता है वह निश्चित रूप से अँग्रेज़ी ही थी।

लेकिन वर्तमान समय में हिंदी में बड़े पैमाने पर यूज़र्स की संख्या का अंदाज़ा, इंटरनेट पर उपस्थिति को देख कर, लगाया जा सकता है। इन सबके पीछे जो प्रयास हुए हैं, इस बारे में विजय प्रभाकर नगरकर अपनी पुस्तक 'डिजिटल हिंदी की यात्रा' की भूमिका में, वे स्वयं के अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि सन् 1981 में डाक तार विभाग में भर्ती हुए थे जहाँ ग्राहकों से संवाद स्थापित करना दैनिक कामकाज का हिस्सा था। हिंदी कैडर में जब आधुनिक तकनीक से जुड़ कर काम करने लगे तो राजभाषा हिंदी में कार्य करने में दिक़्क़त हुई। इन दिक़्क़तों से कैसे 'यूनिकोड' के ज़रिए सफलता प्राप्त हुई इसको वे विस्तार से बताते हुए, सूचना प्रौद्योगिकी व्याख्या एवं परिचय में लिखते हैं और यह सच है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के फलस्वरूप विश्व का अधिकांश भाग एक दूसरे से जुड़ गया है। सूचना प्रौद्योगिकी में हुए इस क्रांतिकारी परिवर्तन ने सम्पर्क साधने के माध्यमों, जैसे कि डाक भेजने से लेकर इंटरनेट बैंकिंग तक को आसान कर दिया है।

पुस्तक के केंद्र में जो मुख्य प्रश्न है वह कि यूनिकोड क्या है? यूनिकोड कंसोर्टियम किस प्रकार काम करता है, इस कन्सोर्शियम के सदस्यों में कम्पूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न नियम और संगठन किस तरह से शामिल है इसकी जानकारी विस्तार से दी गयी है। यूनिकोड16 बिट कोडिंग का प्रयोग करते हुए 65000 से अधिक वर्णों (65536) के लिए कोड बिंदु निश्चित करता है, इस तरह की जानकारी अभिभूत करने वाली है। देवनागरी से अन्य लिपियों के रूपांतरण, देवनागरी लिपि को कम्प्यूटर पर टंकित करने के लिए उपलब्ध तीन विकल्पों को भी विस्तार से बताया गया है। हिन्दी ट्रांसलेशन, हिन्दी रेमिंगटन, हिन्दी टाइपराईटर, इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड, वेबदुनिया की-बोर्ड, हिन्दी विशेष वर्ण एंग्लो नागरी की-बोर्ड के साथ विशेष तौर पर हिन्दी के लिए इंडिक आई एम ई 1 में छह प्रकार के की-बोर्ड आते हैं। भारती लिखावट कुंजीपटल किसी भी ऐप की मदद से भारतीय भाषाओं में संपादन कर सकता है। जानकारी के क्रम में गूगल लिप्यान्तरण टूल की सुविधाएँ किस प्रकार से प्राप्त कर सकते हैं इसका ब्यौरा छोटी-बड़ी सभी जानकारियों के साथ दी गयी हैं। 

अब तकनीकें हैं तो निश्चित रूप से उसकी भी अपनी समस्याएंएँ होंगी, इन्हीं समस्याओं पर एक अलग से अध्याय रखा गया है जो पाठकों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इसमें फॉण्ट सम्बन्धी समस्याओं को केंद्र में रखा गया है जिसमें वर्तनी की समस्या मुख्य है। 

पुस्तक में एक अध्याय का ज़िक्र मैं विशेष रूप से करना चाहूँगी वह है ‘उर्दू से देवनागरी लिप्यान्तरण की कहानी’। बड़े ही लालित्यपूर्ण ढंग से गूगल ग्रुप के चिट्ठाकार वेब पर की गयी चर्चा को समाधान की तलाश करते हुए जस का तस यहाँ उद्घृत किया गया है।  

भारतीय भाषाओं की यूनिकोड योजना, मशीनी अनुवाद, हिन्दी के प्रसार में सहायक मुफ़्त सॉफ़्टवेयर जैसी विषयों के साथ ‘मोबाईल में हिन्दी का विकास’ जो कि वर्तमान समय में यह यूज़र्स अर्थात मोबाइल धारकों की सबसे बड़ी ज़रूरत है, इसको केन्द्रित किया गया है। इस अध्याय में मोबाइल के अलग-अलग मॉडल पर चर्चा करते हुए उनमें बेसिक अंतर को स्पष्ट किया है। हैण्ड हेल्ड, वायरलेस, पॉकेट पी सी, पामटॉप, पाम साइज़, आई फोन उपकरणों के डिज़ायन पर बात की गयी है। विजय प्रभाकर नगरकर ने कई प्रश्नों के उत्तर तलाशने के साथ कई संदर्भ देते हुए बताया कि हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के उपयोग में कहाँ कैसे सहायक हैं इस पर सी-डैक के जिस्ट लैब ने सेलुलर फोन्स में भारतीय भाषाओं के लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया है।

राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार में एंड्रायड मोबाईल की भूमिका में ऐप सम्बंधित जानकारी के साथ कई उपयोगी लिंक भी पुस्तक में प्रेषित की गयी है। विश्व के अंतरजाल पर भारतीय भाषाओं का व्यापक स्वरूप जो कम्प्यूटर के कारण आया है उसका विहंगम तस्वीर जानकारी के रूप में प्रदान किया है। इस पुस्तक में एक और बड़ी ही रोचक जानकारी जो शेयर करते हैं विजय प्रभाकर नगरकर वह है ‘एक रोबोट ने लिखा एक लेख’। रोबोट के मन में मानवीय व्यवहार को लेकर एक नैसर्गिक प्रतिक्रिया को पढ़ते हुए रोमांच-सा पैदा होता है। इस तरह की और भी कई तकनीकी दुनिया की अजीबोग़रीब सच्ची घटनाओं का ज़िक्र पुस्तक की विशेषता है। लेखक एवं ब्लॉगर रवि रतलामी के आलेख ‘लिनिक्स के भारतीय भाषा उत्पाद’ में लिनिक्स से जुड़ी सभी बेसिक जानकारी प्राप्त होती है। इस पुस्तक में मुझे माइक्रोसॉफ़्ट के भाषिक टूल्स की विस्तार से जानकारी मिली जिसमें विंडोज़ 10 की असीमित क्षमताओं को समझने में मदद मिली। इंडिक टूल के विभिन्न रूपों को लेकर भी विजय नगरकर द्वारा इस पुस्तक में सारी भ्रांतियों को भी दूर किया गया है।

इनके अलावा और भी ‘जन संचार में हिन्दी ब्लॉगर की भूमिका एवं विस्तार’, माइक्रोसॉफ़्ट के भाषिक टूल्स, ओपन सोर्स अर्थात ओपन ऑफ़िस में हिन्दी टूल्स, लिब्रे ऑफ़िस और ओपन ऑफ़िस में हिन्दी, सी-डैक के भाषिक उत्पाद, सिंपल डिक्शनरी, प्रगति ब्रोउज़र, ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी, वेब क्षितिज पर हिन्दी, विश्वजाल में हिन्दी, हिन्दी विकिपीडिया एवं परिशिष्ट में उपयोगी जानकारी का संकलन पुस्तक को कम्प्युटर प्रेमियों के लिए एक कुंजिका के रूप में स्थापित करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जिन परिवर्तनों से हम लाभ उठा रहे हैं उनकी यात्रा कैसी रही होगी, इस क्षेत्र में कार्य करने वालों को किन-किन चुनौतियों को सामना करना पड़ा होगा, इन सभी दुश्वारियों पर विजय प्राप्त करने की पुस्तक है, 'डिजिटल हिंदी की यात्रा'। विशेष कर हिन्दी टाइपिंग टूल के उपयोग को लेकर जितनी भी दुश्वारियाँ हैं उनके एकमात्र समाधान के रूप में 'डिजिटल हिंदी की यात्रा' को देखा जा सकता है। शैक्षणिक दृष्टि से इस पुस्तक की उपादेयता विद्यालयीन शिक्षा में यह अत्यंत उपयोगी साबित हो सकता है। आशा करती हूँ कि आने वाले दिनों में आप तकनीकी पक्ष को उजागर करने वाली इस तरह की और पुस्तकों की सीरीज़ लेकर आएँगे।

समीक्षक : कान्ता रॉय
प्रशासनिक अधिकारी
मध्यप्रदेश राष्ट्राभाषा प्रचार समिति
हिन्दी भवन, भोपाल
मो. 9575465147
ईमेल : roy.kanta69@gmail.com
 

3 टिप्पणियाँ

  • 15 May, 2021 01:35 PM

    हार्दिक धन्यवाद,कांता जी, आपने विस्तृत रूप से पुस्तक का परिचय प्रदान किया है।यह एक अकादेमिक कार्य है।कृपया अक्षरा में प्रकाशित करके मुझे अवश्य सूचित करें। स्नेह बना रहे। हार्दिक शुभकामनाएं।

  • बेहतरीन समीक्षा

  • 15 May, 2021 07:46 AM

    बहुत हीं अच्छी, महत्वपूर्ण एवं तकनीकी जानकारी। इस पुस्तक को अवश्य पढना चाहूँगा।

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