आज   फिर  सनम  हमें  उदास  रहने  दीजिए

01-06-2021

आज   फिर  सनम  हमें  उदास  रहने  दीजिए

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

2121/2121/2122/212
 
आज   फिर  सनम  हमें  उदास  रहने  दीजिए। 
दर्द भी  सनम  जिगर 'के'  पास  रहने  दीजिए।
 
इश्क़-विस्क छोड़ मौत की यहीं  अब  शक्ल है,
ज़िंदगी 'तो'  प्यास  है 'ये'  प्यास  रहने  दीजिए।
 
देश   में  चुनाव  का  लिबास  है  ये  मुफ़लिसी, 
आप   को  सलाह   ये  लिबास  रहने  दीजिए।
 
जी  रहे 'हैं'  हम  कि  वो  मुझे  कहीं है  चाहती,
दिल 'में' इक  क़यास  है  क़यास  रहने  दीजिए।
 
रात  की  तिमिर  लिये   रुला  रही  है  तिश्नगी, 
आप  जिस्म   का  यहाँ  उजास  रहने  दीजिए। 
 
कौन जी  रहा 'है'  आज  साफ़-सुथरी  ज़िंदगी, 
कांट   पर   बबूल  के,   कपास  रहने  दीजिए।
 
वो नहीं मिरे सनम  मिलन कि फिर भी आस है,
आस है  कि  जी  रहें  'हैं' आस   रहने  दीजिए।
 
कुछ नशा न हम करें, निपट न  जायें  साहिबा! 
छोड़िए  'भी'   जेब,  सौ-पचास  रहने  दीजिए।
 
जानवर   भरा   शहर   चलो  कहीं   बेघर  चलें, 
आदमी  'के' बीच  अब 'ये'  घास  रहने  दीजिए।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
कविता
नज़्म
कविता-मुक्तक
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कविता
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में