आज मुझमें बज रहा जो तार है
डॉ. अवनीश सिंह चौहानआज मुझमें बज रहा जो तार है,
वो मैं नहीं - आसावरी तू
एक स्मित रेख तेरी
आ बसी जब से दृगों में
हर दिशा तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में, खगों में
दर्पणों के सामने जो बिम्ब हूँ,
वो मैं नहीं - कादम्बरी तू
सूर्यमुखभा! कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा! कटिकमानी
बींध जाते हृदय मेरा
मौन इनकी दग्ध वाणी
नाचता हूँ एक आदिम नाच जो,
वो मैं नहीं- है बावरी तू