आज मुझमें बज रहा जो तार है

01-11-2019

आज मुझमें बज रहा जो तार है

डॉ. अवनीश सिंह चौहान

आज मुझमें बज रहा जो तार है,
वो मैं नहीं - आसावरी तू


एक स्मित रेख तेरी
आ बसी जब से दृगों में
हर दिशा तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में, खगों में


दर्पणों के सामने जो बिम्ब हूँ,
वो मैं नहीं - कादम्बरी तू


सूर्यमुखभा! कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा! कटिकमानी
बींध जाते हृदय मेरा
मौन इनकी दग्ध वाणी


नाचता हूँ एक आदिम नाच जो,
वो मैं नहीं- है बावरी तू

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

व्यक्ति चित्र
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बात-चीत
सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में