आइंदा अगस्त में आज़ादी नहीं लेंगे

01-04-2019

आइंदा अगस्त में आज़ादी नहीं लेंगे

कुबेरे सिंह साहू 'कुबेर'

सरकार ने मंत्रियों और अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई है। समस्या आम है। मामूली है। पर भौंक-भौंककर लोगों ने नींद को हराम किया हुआ है। बड़ी मजबूरी है। नींद के लिए भौंकनेवालों का भौंकना बंद करना ज़रूरी है। 

समस्या है - "अस्पतालों में बच्चे थोक के भाव मर रहे हैं।" मंत्री ने बैठक शुरू करते हुए प्रमुख सचिव से मामले का डिटेल पूछा। 
सचिव ने कहा - "सर! सरकारी अस्पताल में कुछ बच्चे मर गये हैं।"

"कब?"

"इसी महीने में।"

"मतलब?"

"अगस्त महीने में, सर।"

"कितने?"

"यही, कोई तीन-चार दर्जन।"

"तीन-चार दर्जन? बच्चों के माँ-बाप के कुछ डिटेल हैं?"

"ग़रीब थे।"

"ग़रीब थे?"

"हाँ सर, ग़रीबों के बच्चे थे। ये तो मरते ही रहते हैं। कोई बड़ी बात नहीं थी। लोगों ने बात का बतंगड़ बना रखा है।"

"हम भी जानते हैं। पर आप अपनी भाषा ठीक कीजिए। वरना फिर बतंगड़ बन जायेगा। समझा करो यार। मजबूरी है। अमीर-ग़रीब में हम फ़र्क नहीं कर सकते।"

अधिकारी के जवाब से मंत्री महोदय कुछ विचलित से लगे। स्थिर होने के बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने फिर पूछा - "बच्चों का इलाज निजी अस्पतालों में क्यों नहीं कराया गया?" 

"सर! उनके माँ-बाप ग़रीब थे।"

"ठीक है। पर बच्चे राष्ट्र की संपत्ति होते हैं। राष्ट्रीय संपत्ति की हिफ़ाज़त ज़रूरी है। अब से इस देश में, किसी भी बच्चे का इलाज, किसी भी सरकारी अस्पताल में नहीं होगा। डिलीवरी भी नहीं होगी। डिलीवरी और बच्चों का इलाज निजी अस्पतालों में ही होना चाहिए। आदेश जारी कीजिए।"

"सर! गरीब माँ-बाप इसे अफ़ोर्ड नहीं कर सकेंगे।"

"तो सरकारी खज़ाने से अफ़ोर्ड कीजिए न। राष्ट्र की संपत्ति की सुरक्षा राजकोष से हो, इसमें आपत्ति क्या है?"

"यस सर।"

"और सुनिए। निजी अस्पताल वालों से इसके लिए डील तय कर लीजिए। अच्छे से। समझ गये न?"

"यस सर, हो जायेगा।"

"और सुनिए। क्या पिछली सरकारों के समय बच्चे नहीं मरते थे?"

"सर! मरते थे।"

"कब-कब मरे, किस-किस महीने में मरे। कुछ डिटेल है आपके पास।"

"यस सर। सब अगस्त के महीने में ही मरे हैं।"

"तो ये बात है। मतलब, ’अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं।’ .... यार ये कैसा घांच-पांच है। बच्चे मरते हैं तो अगस्त में। बाढ़ आती है तो अगस्त में। बाढ़ में लोग मरते हैं तो अगस्त में। पुल, सड़कें और पटरियाँ बह जाती हैं तो अगस्त में। फ़सलें बरबाद होती हैं तो अगस्त में। किसान आत्महत्या करते हैं तो अगस्त में। और हाँ, शायद देश भी अगस्त में ही आज़ाद हुआ था न?" 

"यस सर।" 

"मतलब, इन सबका अगस्त के साथ ज़रूर कुछ न कुछ कनेक्शन है।" 

"डेफ़िनेट सर।" 

"तो ढूँढिए न कनेक्शन। देख क्या रहे हैं।" 

"सर, मिल गया। कनेक्शन मिल गया।"

"खाक मिल गया। हवाई बातों से काम नहीं बनेगा। इस अगस्त कनेक्शन का पता लगाना ज़रूरी है। जाँच कमीशन बिठाइए। और तुरंत रिपोर्ट पेश कीजिए।"

अगस्त कनेक्शन की जड़ों को ढूँढने के लिए तत्काल ’रूट रिसर्च आयोग’ का गठन किया गया। आयोग में देश हित में सोचने वाले महान राष्ट्रवादियों, विचारकों और चिंतकों को शामिल किया गया। समस्या की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने पूर्ण सहयोगात्मक भाव से दिन-रात एक करके काम किया। दिन-दिनभर पसीना बहाया। रात-रातभर यौगिक साधनाएँ की। देखते-देखते आवंटन का सफ़ाया हो गया। फिर आवंटन मिला। फिर सफ़ाया हो गया। आवंटन मिलते रहे और साफ़ होते रहे। आयोग आवंटन से तृप्त होने का प्रयास करता रहा। प्रयास अभी तक चल रहा है। पर जन्म-जन्मांतर की अतृप्त आत्माओं को तृप्ति मिले भी तो कैसे? डकारों की बौछारें शुरू हो गईं; पर तृप्ति मिलती नहीं थी। डकार की आवाज़ों की लपटें दूर-दूर तक फैलने लगीं। बाहरवाले न सुन लें इसके लिए विशेष सायलेंसर लगाये गये थे। सायलेंसर की भी बर्दास्त की सीमा होती है। सीमा जाती रही। डकार की लपटों से लोग झुलसने लगे। बड़ी मजबूरी में आयोग ने सिफ़ारिशें पेश की। सिफ़ारिशों में कहा गया था - 

  • देश और अगस्त महीने की कुंडली का मिलान करके देखा गया। हर जगह काल बैठा मिला। अकाल और अकस्मात घटनेवाली घटनाओं के मूल में ये काल ही हैं। काल दोष निवारण हेतु घटना स्थलों पर अविलंब सतत् साल-भर चलने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को शुरू किया जाना उचित होगा। 
  • अगस्त महीने का ’अ’ बड़ा ही अशुभ, अमंलकारी और अनिष्टकारी है। यह असत्य, अहंकार, अकाल और आसुरी शक्तियों का प्रतीक है। देश के समस्त कैलेण्डरों से इस महीने को विलोपित कर देना चाहिए। पर यह उचित नहीं होगा। क्योंकि, ऐसा करना एक क्रांतिकारी क़दम होगा। क्रांतिकारी क़दम उठाना इस देश की परंपरा में नहीं है। इससे समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। यहाँ हर राष्ट्रीय स्तर की समस्या का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा होने की आशंका बनी रहती है। अतः व्यावहारिक रास्ता अपनाते हुए अगस्त के ’अ’ को ’स’ से विस्थापित कर इस महीने का नाम ’संघस्त’ कर दिया जाना उचित होगा। ’स’ सत्य, शुभ, सुमेल, सुमंगल और शक्ति का प्रतीक है। यह संगठन और संघ शक्ति का भी प्रतीक है।
  • देश को आज़ादी अगस्त में ही मिली थी। आज़ादी के बाद से ही देश तरह-तरह की समस्याओं से घिरने लग गया था। समस्याओं का घेरा अब फौलादी जकड़न में बदल चुका है। अनैतिक और भ्रष्ट प्रवृत्तियाँ लोगों की मानसिकता में समाई हुई हैं। इन सबके मूल में भी यही, अगस्त का महीना है। इससे सीख ग्रहण करते हुए ’आइंदा अगस्त महीने में आज़ादी नहीं लेंगे’ ऐसा संकल्प पारित करना चाहिए। यही सर्वथा उचित होगा।

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