आगे बढ़ता चल

15-10-2020

आगे बढ़ता चल

जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’  (अंक: 167, अक्टूबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

लक्ष्य मन में ठान
छोड़ दे मद-मान
कर्म पथ को जान
कर ज्ञान का सम्मान।
आगे बढ़ता चल . . .॥
 
रूढ़ियों को तोड़
रास्तों को मोड़
जीतने की होड़
सारे रिश्ते जोड़।
आगे बढ़ता चल . . .॥
 
कर ज़िंदगी से प्यार
यह तो नहीं है भार
संघर्ष कर मत हार
कर लक्ष्य को स्वीकार।
आगे बढ़ता चल . . ....॥
 
यह दुनिया की है रीत
कभी हार कभी जीत
कभी द्वेष कभी प्रीत
कभी ग्रीष्म कभी शीत।
आगे बढ़ता चल . . ....॥
 
सदा रखो देश का मान
नहीं धन का हो अभिमान
सदा धैर्य से लो काम
मानवता को पहचान।
आगे बढ़ता चल . . .॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
कविता
गीतिका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में