आधुनिक श्रवण

30-08-2014

आधुनिक श्रवण

रमेश ‘आचार्य’

मिस्टर सक्सेना को इस अकेलेपन में रह-रह कर अपनी पत्नी सुनंदा की याद सता रही थी। साथ ही उन्हें अपनी पत्नी के वे शब्द भी याद आ रहे थे जो उन्होंने मरते समय उनसे कहे थे कि कभी भी अपनी पैतृक संपति को न बेचना। वक्त का कोई भरोसा नहीं है। आज वे पत्नी द्वारा कहे गए शब्दों को सच होते देख रहे थे। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों के पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी न होने दी। अपने स्वास्थ्य की चिंता न करते हुए सदा उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखा। लेकिन वे अपने दोनों पुत्रों की मीठी-मीठी बातों में आ गए और अपनी पैतृक संपति बेच दी ताकि उनके पुत्र अपना बिजनेस और आगे फैला सकें। वे सोचते थे कि उनके पुत्र बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेंगे।

लेकिन अब उनका भ्रम पूरी तरह दूर हो चुका था क्योंकि दोनों पुत्र अपने-2 परिवार में मस्त थे। मिस्टर सक्सेना फुटबाल की भाँति कुछ-2 दिनों के अंतराल के बाद दोनों के घर शरण लेते थे। उन्हें लगता था कि मानो वे एक शरणार्थी है और वे जीने के लिए नहीं बल्कि मरने के लिए जी रहे हैं। फिर भी वे इसका दोष स्वयं को देते थे। अब तो वे केवल अपने पोते-पोतियों को देखकर अपने दुखी मन को किसी तरह बहला रहे थे अन्यथा उनके जीवन में एक रिक्तता के सिवाय कुछ न था।

उस दिन वे अपने छोटे पोते के साथ खेल रहे थे कि न कहाँ से अचानक उनके दोनों पुत्र आ धमके। उन्होने अपने दोनों पुत्रों को महीनों के बाद देखा तो सकते मे आकार पूछा- "कहो क्या बात है?"

तभी उनका बड़ा बेटा बोला- "पापा, आप तो देख ही रहे है कि हमार काम-काज कितना बढ़ गया है और हमें व्यापार के सिलसिले मे अक्सर बाहर आना-जाना पड़ता है। सो इस कारण हम आपकी सही तरीके से देखभाल भी नहीं कर पा रहे हैं। और आपको भी बार-2 हमारे पास आना-जाना पड़ता है। हम जानते हैं कि इससे आपको भी बहुत तकलीफ होती है।"

वे बोले- "बेटा, मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पा रहा हूँ, साफ-2 कहो, क्या कहना है?"

तब छोटा बेटा बोला- "पापा, मम्मी के जाने बाद आप भी अकेलापन महसूस कर रहे हो। इसलिए हमने "ओल्ड एज होम" में आपका नाम लिखवा दिया है।" आप वहाँ बहुत मजे में रहेंगें और आपको कंपनी भी मिल जाएगी। और चिंता की कोई बात नहीं, बीच-2 में हम भी आपको देखने आते रहेंगे। आपका भी जब बच्चों से मिलने का मन करे, तो घर चले आना। आप हमें गलत समझ रहे होंगे लेकिन हम जो कर रहे हैं, आपके भले के लिए ही कर रहे हैं। आप अपना सारा ज़रूरी सामान बाँध लेना। मैं कल आपको वहाँ ले चलूँगा।"

मिस्टर सक्सेना मन ही मन कहने लगे। सच में बूढ़ा बाप रूई का बोझ होता है। वे अपने पुत्रों की बातें सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए और एक बार फिर स्वयं को ही दोषी मानने लगे।

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