आदमी (अनेकार्थता)

02-12-2007

आदमी (अनेकार्थता)

प्रभाकर पाण्डेय

आइए, आपको आदमी से परिचित कराता हूँ। मैं भी आदमी हूँ और आप भी आदमी हैं फिर भी आदमी के बारे में बताता हूँ। आदमी ने आदमी की उत्पत्ति अरबी के शब्द आदम से बताया है और आदमी का प्रयोग बाबा आदम के जमाने से करता आया है।

वही आदमी (व्यक्ति, मानव) कभी आदमी (मर्द, पुरुष, नर) और औरत में फर्क बताता है और वही आदमी शादी के बाद अपनी पत्नी का आदमी (पति, मर्द, शौहर, खसम, नाथ, कांत) बन जाता है। वही आदमी कभी सेठ, अधिकारी बनकर आदमियों (कर्मचारी, कामगार, कामदार) से काम कराता है और वही आदमी कभी मालिक बनकर अपने आदमी (नौकर, सेवक, दास) से जूठा भी मँजवाता है। वही आदमी खुद ही आदमी (सभ्य, सुशील) नहीं बनता ना दूसरे आदमी को आदमी (सभ्य, सुशील) बनाता है और अपनी आदमियत (आदमीयत भी) को भूलकर आदमखोर भी बन जाता है।

आदमी, आदमी से अत्यधिक ईर्ष्या रखता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि आदमी किसी उपसर्ग या प्रत्यय (हीन, पूर्ण, सु, कु इत्यादि) को आदमी के पास भटकने भी नहीं देता है, जिसके कारण आज भी शब्दकोश में आदमी के बाद केवल आदमियत ही दिखता है, आदमी से कोई और शब्द नहीं बनता है।

ईश्वर ने आदमी को आदमियत के लिए बनाया है, इस बात को समझिए और ऊँच-नीच, घृणा आदि का त्यागकर आपस में प्रेम-भाव से रहिए (इसी में आदमी की भलाई है)।

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