विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

तेजेन्द्र शर्मा – व्यक्ति और संस्था

व्यक्ति चित्र | नीना पॉल (स्वर्गीय)

अपना घर बार छोड़ कर किसी विदेश में आकर बसने का दुख वही जानता है जिसने इसे भुगता हो। 60 का दशक ऐसा समय था जब बहुत से भारतीयों ने अपना बसेरा ब्रिटेन में बसाया। इसमें बहुत से शिक्षक थे और कुछ कहानियाँ और कविताएँ भी लिखते थे। देश छूटने की कसक वह अपने लेखन द्वारा निकालने लगे।  कहानियाँ अधिकतर नॉस्टेल्जिया पर आधारित होतीं जो उन्हीं लेखकों तक ही सीमित रह जातीं। बरसों यहाँ रहते हुए और इतना सब लिखते हुए भी किसी का एक भी कहानी संग्रह सामने नहीं आया था।

समय एक जैसा नहीं रहता। 90 के दशक में भारत के प्रसिद्ध कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन में आए। वह दूसरे लोगों के समान किसी मजबूरी में यहाँ नहीं आए थे। भारत में उन्होंने बहुत अच्छे दिन देखे थे। किन्हीं निजी कारणों से भारत में अपनी एयरलाइन की नौकरी छोड़ कर वह ब्रिटेन में बसने आ गए। हिंदी लेखन जगत तेजेन्द्र शर्मा के नाम से भलीभाँति परिचित है। ब्रिटेन में आते ही उनकी साहित्यिक गतिविधियाँ सक्रिय हो उठीं। एक सामाजिक प्राणी अपने समाज से, उनकी कठिनाइयों से अनभिज्ञ कैसे रह सकता है। फिर तेजेन्द्र जैसा भावुक लेखक। यहाँ आकर भी उनकी क़लम जागरूक रही।

तेजेन्द्र शर्मा हिंदी के ऐसे प्रथम लेखक हैं जिनका ब्रिटेन की भूमि पर 1998 में कहानी संग्रह सामने आया। तेजेन्द्र शर्मा ने इसकी शुरुआत करके और लेखकों का भी हौंसला बढ़ाया। 

अच्छा लेखक किसी परिचय का मुहताज नहीं होता। एक साहित्यकार की रचनाएँ स्वयं अपना परिचय देती हैं। उसका लेखन अपनी गुणवता का प्रमाण होता है। क़लम ही एक लेखक की सबसे बड़ी पूँजी होती है। कोई भी लेखक बड़ा या छोटा नहीं होता। उसका लेखन उसे अच्छे लेखक का दर्ज़ा दिलवाता है।  उसका काम, उसका परिश्रम स्वयं बोलता है। इसी परिश्रम के फ्लस्वरूप वह विभिन्न सम्मान व ख़िताबों का हक़दार साबित होता है। यहाँ उस इंसान का चाम नहीं उसका काम देखा जाता है। यह काम उसके स्वभाव, उसके अन्य लेखकों से सम्बंध व कार्य करने के तरीक़े से सामने आ जाता है।

तेजेन्द्र शर्मा ऐसी ही एक हस्ती हैं। एक बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व, जो साथी साहित्यकारों की सहायता करने को सदैव तत्पर दिखाई देते हैं। ब्रिटेन के लेखक अभी भी नॉस्टेल्जिया से बाहर नहीं आए थे। अपना घर बार छूटने का ग़म किसे नहीं होता किंतु उससे बाहर भी एक जहां है। उसमें भ्रमण करने से बहुत कुछ हासिल हो सकता है। तेजेन्द्र शर्मा ने लेखकों को यह एहसास दिलाया कि जिस देश में हम रहते हैं उसके प्रति भी हमारे कुछ कर्तव्य हैं। अपने चारों ओर घटती घटनाओं पर ध्यान केंन्द्रित करो और उस पर लिखो। 

तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी ही हस्ती हैं। यह हिंदी में एक अलग दुनियाँ के लेखक हैं जो किसी भी नए विषय पर लिखने से नहीं घबराते। उन्होंने अपनी लेखन शैली में विभिन्न प्रयोग किए हैं। फिर वह क़िस्सागोई हो या नए विषय।

यही चीज़ वह ब्रिटेन के साहित्यकारों में देखना चाहते थे। तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसे लेखक हैं जो केवल अपना नाम कमाने के पीछे नहीं भागते। वह अपने साथ अन्य साथी लेखकों को लेकर चलते हैं। जहाँ कहीं भी आवश्यकता हो वह उनकी सहायता करने को नहीं चूकते।…

अजय नावरिया ने अपने एक लेख में इस बात की पुष्टि की है कि "यूँ तो प्रवासी साहित्यकोरों में बहुत से सितारे हैं मगर ध्रुवतारे सा चमकता नाम तेजेन्द्र शर्मा है।"

कोई किसी के विचार, किसी की सोच नहीं ले सकता। हर कोई अपने अनुभव अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही काम करता है। तेजेन्द्र शर्मा के अनुभवों की दुनिया विशाल है। उनके अनुभव उनकी कहानियों में साफ़ दिखाई देते हैं। वह अपनी बात कहते हुए डरते नहीं। किसी भी नए विषय को छूने से पहले वह उस पर पूरी रिसर्च करते हैं। हाँ कोई भी कहानी काल्पनिक पुट के बिना नहीं बन सकती। यही काल्पनिकता की उड़ान उस कहानी को सफल बनाती है। लेखक को इस बात का हक़ है कि वह उस काल की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक गतिविधियों के विषय पर अपनी लेखनी चला कर पाठकों को उनसे अवगत कराए।

साहित्य एक ऐसा ही तो आइना है जिसमें कुछ छुप नहीं सकता। एक बार जो लेखक की क़लम से निकल कर सामने आ गया वह फिर पाठकों की पूँजी हो जाता है। एक लेखक को अपने समय और समाज में हस्तक्षेप करने की पूरी आज़ादी होती है। इसका भ्रमण वह अपनी सोच द्वारा, अपने अनुभवों को शब्द देकर कहानियों के रूप में अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता रहता है।

तेजेंद्र शर्मा की एयरलाइन की लम्बी नौकरी, उसके पश्चात ब्रिटेन में आकर रेलवे की नौकरी उनका परिचय कुछ ऐसी स्थितियों से करवाती है जो हिंदी लेखन और पाठक के लिए एक तिलिस्म का दरवाज़ा खोलती है। एक ऐसी दुनिया जिसमें अनुभवों के साथ उनके जीवन संघर्ष की गाथा जुड़ कर उनकी कहानियों में एक अलग ही रंग भर देती है।

कृष्णा सोबती का कहना है कि "तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है।उसके पात्र ज़िंदगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिए नया रास्ता तलाश करते हैं...वह बाहरी दुनिया की कहानी लिखते हैं जिसमें चरित्र होते हैं और डायलॉग का ख़ूबसूरत प्रयोग किया जाता है।"

डायलॉग की ख़ूबसूरती ही कहानी की असली जान होती है। इसे आप जब चाहें कहीं भी थोप नहीं सकते। यही कहानी में ट्विस्ट लाते हैं और कहानी को कुशलता से आगे बढ़ाते हैं।

तेजेंद्र शर्मा ने देखा कि ब्रिटेन में कथागोष्ठियों की आवश्यकता है जहाँ लेखक आकर अपनी कहानियाँ अपने मुख से लोगों तक पहुँचाएँ। उन्होंने कथा गोष्ठियों की मुहिम चलायी। लंदन ही नहीं ब्रिटेन के अन्य शहरों में बैठे ख़ामोश लेखकों को उन गोष्ठियों में आमंत्रित किया। युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए लंदन ही नहीं बर्मिंघम और लेस्टर में कहानी वर्कशॉप लगाईं। घर से टाइप करके नोट्स लाते और उनमें बाँटते। कहानी लिखने की नई विधियाँ बताते। इनके प्रशंसकों की संख्या बढ़ने लगी। यह नहीं कि हर कोई इनकी साहित्यिक गतिविधियों से प्रभावित व प्रसन्न हुआ हो। जो पहले से इस क्षेत्र में अपनी धाक जमाए बैठे थे उनका अप्रसन्न होना स्वाभाविक था। कहीं पर भी एक छोटा सा परिवर्तन हो तो लोग आवाज़ तो उठाएँगे ही।

तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी परिश्रमी हस्ती हैं जिन्होंने अपने साहित्य व साहित्यिक सरगर्मियों द्वारा एक बहुत बड़ा मुक़ाम हासिल किया है। राजेंद्र यादव ने एक स्थान पर तेजेन्द्र की कहानियों पर चर्चा करते हुए कहा है कि "तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ़ नैरेशन की गहरी समझ है। वह बाख़ूबी जानते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अंतर्द्वंदों, संबंधों की जटिलताओं को कैसे कहानी में रूपांतरित किया जाता है। तेजेन्द्र की कहानियाँ परिपक्व दिमाग की कहानियाँ हैं।" 

तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसा साहित्यकार है जो ख़ामोशी से अपना कार्य करता रहता है। तेजेन्द्र शर्मा की यह ख़ासियत है कि वह एक ही विषय पर दो तीन कहानियाँ लिख सकते हैं। जैसे कैंसर पर आधारित बहुत ही मार्मिक कहानी "कैंसर” और फिर अभी हाल ही में लिखी एक चर्चित कहानी "मौत एक मध्यांतर” सामने आई है। विषय कैंसर होते हुए भी दोनों कहानियाँ एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। एक पाठक ही असली आलोचक होता है। जो बिना किसी पक्ष के किसी लेखक के लेखन की सही आलोचना करता है।

तेजेन्द्र शर्मा केवल अपना नाम कमाने के पीछे ही नहीं भागते यह अपने साथ अन्य साथी लेखकों को लेकर चलते हैं। कहीं पर भी बैठे ख़ामोश लेखक को खोज निकालते हैं। इनके सामने लेखक नहीं उसके लेखन की अहमियत है। तभी तो लंदन में रहते हुए लंदन से दूर दूसरे शहरों में बैठे हुए लेखकों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। जैसे बर्मिंघम से शैल अग्रवाल, योर्क से ऊषा वर्मा, लेस्टर से नीना पॉल आदि का नाम सामने लाए।

इनके जीवन में कितने ही उतार चढ़ाव क्यों न आए हों किंतु इन्होंने स्वयं को टूटने नहीं दिया। दूसरों के सामने खिलखिला कर हँसने वाला इंसान अंदर से कितना पीड़ित है यह कोई नहीं जानता। तेजेन्द्र शर्मा बहुत छोटी आयु में ही विधुर हो गए थे। 1995 में इनकी कैंसर ग्रस्त प्रिय पत्नी इंदु शर्मा दो छोटे बच्चों को छोड़ कर हमेशा के लिए इनसे दूर हो गईं। इंदु शर्मा भी एक लेखिका थीं। तभी से पिछले बीस वर्षों से अपनी दिवंगत पत्नी की याद में श्रद्धांजलि के रूप में प्रत्येक वर्ष भारत के किसी साहित्यकार की कृति को इंदु शर्मा सम्मान के नाम से सम्मानित करते आ रहे हैं।

ब्रिटेन आ कर भी तेजेन्द्र शर्मा ने इस मुहिम को जारी रखा। यहाँ इन्होंने कथा यू. के के नाम से एक संस्था स्थापित की जिसमें इंदु शर्मा साहित्य सम्मान के साथ साथ, यह पद्मानंद साहित्य सम्मान के नाम से ब्रिटेन के किसी साहित्यकार को हाऊस ऑफ़ कॉमन्स में सम्मानित करने लगे। इस सम्मान की भारत में व ब्रिटेन में बहुत गरिमा व मान्यता है। कोई भी साहित्यकार इस सम्मान को पा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है।

ब्रिटेन में कुछ लेखक काफ़ी अच्छा लिख रहे हैं। उनकी कहानियाँ भारत की बड़ी पत्रिकाओं में छप रहीं हैं। पाठक उन्हें पसंद कर रहे हैं। भारत से उन्हें उनकी कहानियों पर सम्मानित भी किया जा रहा है। फिर भी उनके लेखन को प्रवासी साहित्य का नाम दिया जाता है, उन्हें प्रवासी के नाम से पुकारा जाता है। 

तेजेन्द्र शर्मा पहले कहानीकार हैं जिन्होंने इस प्रवासी नाम के विपक्ष में अपनी आवाज़ उठाई। इसका विरोध किया। एक लेखक प्रवासी हो सकता है उसका लेखन नहीं। प्रवासियों की कहानियाँ छापने के लिए भारत की पत्रिकाएँ प्रवासी संस्करण निकालती हैं जिसमें केवल बाहर के देशों की कहानियाँ ही ली जाती हैं।

तेजेन्द्र शर्मा ने इस बात पर आवाज़ उठाई कि यहाँ की रचनाओं को पढ़ कर उनकी आलोचना करने के पश्चात ही उन्हें किसी ढाँचे में रखा जाए। यहाँ बर्मिंघम से डॉ. कृष्ण कुमार भी उनके पक्ष में लिखते हैं कि "जटिल प्रवासी तेजेन्द्र का मानना है कि प्रवासी साहित्य वह है जिसमें उस जगह के सरोकार हों जहाँ कि रचनाकार रह रहा हो। इस बात को लेकर तेजेन्द्र ने एक मुहिम सी छेड़ रखी है जो अच्छे परिवर्तन लाती नज़र आ रही है और प्रवासी साहित्य को भारत के प्रकाशक अब गम्भीरता से लेने लगे हैं।"

कहानी जगत के एक बहुत ही अनुभवी लेखक तेजेन्द्र शर्मा की यह विशेषता है कि यह जिस विषय को हाथ लगाते हैं उस में जान डाल देते हैं। अपने अनुभवों को आधार बना कर जो कहानी इनकी क़लम से निकलती है वह अपने में बेजोड़ होती है। यह हर चीज़ को बड़ी बारीक़ी से लेते हैं। पात्र स्वयं सामने आ कर अपनी कहानी सुनाने को बाध्य हो जाते हैं। क़िस्सागोई तो ऐसी कि एक बार जो पाठक इनकी कहानी के मकड़जाल में जकड़ जाए वह बिना पूरी कहानी पढ़े बाहर नहीं निकल सकता। तेजेन्द्र शर्मा अपनी कहानी को एक ऐसा मोड़ देकर छोड़ देते हैं कि पाठक छटपटाता रह जाता है कि "ये क्या हुआ…”

भावसिंह हिरवानी ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के विषय में बिल्कुल सही कहा  है कि "तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ शहरी जीवन की उस बदसूरत तस्वीर को बड़ी सफ़ाई के साथ हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं, जहाँ हर पहलू को आर्थिक दृष्टि से देखना लोगों की आदत बन गई है। रिश्ते नाते सब कुछ दायरे में सिमट कर अर्थहीन हो गए हैं। इनकी कहानियों को पढ़ते वक्त हमारे आंतस में जमी काई उसी तरह साफ़-साफ़ दिखाई देने लगती है, जैसे किसी नदी या तालाब के स्थिर जल में उसके तल में फैली गंदगी दिखाई देती है।"

तेजेन्द्र शर्मा के पास अनुभवों का भंडार है। इन अनुभवों के साथ इनके जीवन संघर्ष की गाथा जुड़ कर इनकी कहानियों में एक विचित्र क़िस्म का रस पैदा करती हैं। इसी रस में पाठक गोते लगाते हुए तेजेन्द्र के साथ ही कभी हँसते हैं तो कभी पलकें छलकाते हैं। कहानियों में भारत के महानगर की महिलाओं की स्थितियाँ दिखाई देती हैं तो ब्रिटेन की संघर्षग्रस्त नारी भी है। जहाँ इनकी कहानियों में समुद्र की गहराई है तो वहीं नदी के पानी की मिठास भी है।

हरियश राय के शब्दों में...”तेजेन्द्र शर्मा अपनी कहानियों में अपने समय के परिवेश को सघनता से व्यक्त करते हैं। इनकी कहानियों मे फैले परिवेश का विस्तार देशी और विदेशी पृष्ठभूमि पर आधारित है।" वहीं भारत भारद्वाज का कहना है कि "तेजेन्द्र की कहानियों में अनुभवों का ताप ही नहीं, सामाजिक संबंधों का दंश भी है। इनकी अधिकांश कहानियों में उनका अपना अनुभव है और इस अनुभव में हमारे समय के यथार्थ, विद्रूपताएँ और विसंगतियाँ हैं तो साथ ही अपने मित्र लेखक लेखिकाओं के कठोर अनुभव भी हैं।"

इनकी कहानियों के विषय अधिकतर भोगे हुए यथार्थ पर आधारित होते हैं। उनका मानना है कि यथार्थ में अपनी कल्पना और उद्देश्य का पुट मिला कर ही कहानी बनती है। यह कहानी की हर घटना को पहले स्वयं महसूस करते हैं फिर पाठकों को उसका अनुभव कराते हैं। कहानियों की घटनाएँ काल्पनिक नहीं हमारे आस-पास घूमती हुई मिलती हैं। प्रोफ़ेसर फ़्रेंचेस्का ऑस्रीनी का कहना है कि "तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ सपना देखने वाले बेचैन लोगों की कहानियाँ हैं…"

तेदेन्द्र शर्मा जिस गहराई से किसी पुरुष की पीड़ा का वर्णन करते हैं उसी शिद्दत से महिलाओं की भावनाओं के महीन से महीन कणों को परखने में भी इनकी आँखें नहीं चूकतीं। यदि अभिशप्त में पुरुष की व्यथा है पीड़ा है तो सपने मरते नहीं में पति की नज़र में पत्नी के दर्द को बड़ी बारीक़ी से उकेरा गया है। एक पुरुष लेखक को किसी नारी के अंतरमन तक झांक कर इतनी कुशलता से उसकी पीड़ा का वर्णन करना आसान बात नहीं है।

यह विशेषता तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में साफ़ दिखाई देती है जो इन्हें दूसरे लेखकों से अलग करती है। प्रमोद कुमार गोविल का कहना है कि "तेजेन्द्र की कहानियों को पढ़ते हुए एक और दिलचस्प तथ्य सामने आता है। जिस तरह हिंदी में महिला लेखन पर बात करते हुए कुछ महिला कथाकारों के बारे में समय समय पर कहा जाता रहा है कि वे पुरुष मनोभावों के चित्रीकरण में सिद्धहस्त हैं, ठीक उसी तरह तेजेन्द्र की कहानियों को पढ़ते समय लगता है कि तेजेन्द्र महिला पात्रों के भीतर से भी बड़ी स्वाभाविकता से बोलते हैं। निश्चय ही यह एक उपलब्धि है।"   

तेजेन्द्र शर्मा न केवल कथा यू.के. और प्रवासी लेखन सम्मेलन आदि बहुत से उपक्रमों में संलग्न दिखाई देते हैं, बल्कि कथेतर साहित्य में भी उनकी टहल बराबर बनी हुई है। रंगकर्म और सिने अभिनय से जुड़े रह चुके तेजेन्द्र शर्मा की बहुविध सक्रियताओं वाले जीवन में एक गतिशीलता दिखाई देती है। पावर प्वाइंट पर ये भारतीय सिने जगत के प्रसिद्ध संगीतकार व गीतकार, उनके गाने व जीवन के विषय में बहुत ही दिलचस्प जानकारी देते हैं जो अपने में एक उदभुत प्रोग्राम होता है।

तेजेन्द्र शर्मा बहुमुखी प्रतिभाओं के मालिक हैं। इनकी नज़रों में स्त्री का एक बहुत ऊँचा स्थान है। यह संबंधों की क़द्र करते हैं।

जगदम्बा प्रसाद दीक्षित का तेजेन्द्र के लेखन के विषय में कहना है कि "तेजेन्द्र के लेखन के संबंध में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण बात है – जीवन के कटु और भयावह सत्यों का सामना करने की लेखक की प्रवृति और क्षमता। निश्चय ही तेजेन्द्र के पास ऐसा अनुभव संसार है जो दूसरे लेखकों को सहज उपलब्ध नहीं है। अपने अनुभव संसार से उन्होंने ऐसे प्रसंगों को चुना है जो कहीं न कहीं पाठक को झकझोर जाते हैं।"

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