विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में प्रेम की सौन्दर्यानुभूति...

रचना समीक्षा | डॉ. परवीन कुमारी

‘सौंदर्य’ शब्द की व्युतपत्ति संस्कृत के सुन्दर विशेषण शब्द से भाव अर्थ में ‘अञ’ प्रत्यय से जुड़कर होती है। सौंदर्य इतना सूक्ष्म भावगर्भित शब्द है कि यह अपने शुद्ध रूप में रसानुभूति से घनिष्ठतम रूप में संबद्ध है। डॉ. रामेश्वर खंडेलवाल ने ‘सौंदर्य’ शब्द के प्रति अपने विचारों को कुछ इस तरह प्रकट किया है कि, “सौंदर्य शब्द के अर्थ में वस्तुतः अनेक भाव समाविष्ट हैं जैसे - सौम्य, मनोहर, उदान्त, पेशल, रमणीय, चारू, मंजुल, रुचिर, शोभन, सुषमावान, लावण्यमान, कांत, साधु, मनोज, द्युतिवाल, छविमान, मंगलकारी और शुभ आदि।” 

सौंदर्यानुभूति – “सौंदर्य की आनंदमयी अनुभूति को सौंदर्यानुभूति कहते हैं। अर्थात प्रकृति, मानव-जीवन तथा ललित कलाओं के आनंददायक गुण का नाम सौंदर्य है। सौंदर्य का स्वरूप ऐंद्रिय भी है और अतींद्रिय भी। इसका साक्षात्कार प्रायः स्थूल रूप ज्ञानेंद्रियों से, बुद्धि से तथा हृदय से माना जाता है। 

किसी भी रमणीय एवं सुन्दर पदार्थ या वस्तु को देखकर नेत्र विस्मय-विमुग्ध हो जाते हैं; हृदय उसके द्वारा आनंद की अनुभूति करता है; बुद्धि, नेत्र तथा हृदय का समर्थन करती है। अर्थात जहाँ इन तीनों का समन्वित रूप उपस्थित हो, वही वास्तविक सौंदर्य कहलाता है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “सौंदर्य की अनुभूति अलौकिक होती है, प्रीतिकार होने से अतिरिक्त कल्याणकारी होती है। आधुनिक शब्दावली में राग-द्वेष आदि से मुक्त, सामान्य ऐंद्रिय - मानसिक अनुभूति की अपेक्षा अधिक उदात्त एवं अवदात होती है। अर्थात सौंदर्यानुभूति सुखद तथा आनंदमयी ऐंद्रिय एवं मानसिक अनुभूति है। अंततः यह अनुभूति तत्वतः एकरूप होती है। लेकिन माध्यम में इसे अनेक प्रकार का माना जाता है जैसे कि - चक्षु ग्राह्य सौंदर्य, श्रोत-ग्राह्य सौंदर्य, जिह्वा, नासिका एवं त्वचा द्वारा ग्राह्य सौंदर्य, काव्य सौंदर्य तथा मानस-ग्राह्य सौंदर्य। इन सभी के माध्यम से जो अनुभूति हमें प्राप्त होती है उसकी तुलना हम सौंदर्यानुभूति से करते हैं। 

रामशंकर मिश्र के शब्दों में सामान्य रूप से भावगत सौंदर्यबोध  का विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अज्ञेय के प्रति आस्था, कल्पनातत्व की प्रधानता, आनुभूतिक तीव्रता, सहजबोध तथा भावना आदि ही इस विधा के अंतर्गत आते हैं और उन्हीं क्रियाओं के द्वारा सौंदर्यबोध की प्रकृतियाँ भी सप्ष्ट होती हैं।” अर्थात साहित्य में सौंदर्यानुभूति आंतरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार से मानी जाती है।

हीगल के अनुसार - “इंद्रिय-ग्राह्य विषयों द्वारा अपनी आत्मा को व्यक्त करना ही आत्मा का सौंदर्य है।” अर्थात जिस भाँति व्यक्ति के मन में सौंदर्य का बोध जीवंत जगत के अनेक अनुभवों के आधार पर होता है, उसी प्रकार तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी कहानियों में प्रेम की सौंदर्यानुभूति को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखा है और उसे अपनी कहानियों में अवतरित किया है।

मान उस वस्तु को सुन्दर कहता है जो कि उसके लिये उन भावनाओं को व्यक्त करती है। ह्यूम के अनुसार - “प्रकृति के नियमों में कुछ ऐसे गुण निहित कर दिये गये हैं जो हमारे मन में नई सौंदर्य भावना को जाग्रत करते हैं, लेकिन स्वयं उन वस्तुओं का कोई गुण नहीं अपितु सौंदर्यानुभूति करने वाले मन में विद्यमान है।” अर्थात प्रेम की सौंदर्यानुभूतिन केवल व्यक्ति के, अपितु उसकी जाति के जीवन में विकसित और संस्कार रूप में संचित होती रहती है।

तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी कहानियों के माध्यम से जो प्रेम को ‘आध्यात्मिक’ सौंदर्यानुभूति को अनंतता, एकांत, स्थिरता, सम्मात्रा, शुद्धता एवं संपत्ति का ‘कहा’ है। अर्थात ईश्वरवादी विचारधारा के कारण इन गुणों का संबंध ईश्वर से माना गया है। सेंट ऑग्सटीन के शब्दों में “असीम शिवत्व, सत्यत्व तथा सौंदर्य ईश्वर के गुण हैं और ईश्वर की वस्तुओं को ये गुण प्रदान करता है।” अर्थात विश्व का मूल तत्व ‘शिवत्वमय’ एक है जिसमें प्रज्ञा और बुद्धि का उदय होता है, यही प्रेम की आध्यात्मिक सौंदर्यानुभूति है।

तेजेन्द्र शर्मा सरल एवं सुन्दरतम हृदय के लेखक हैं। आपने अपनी कहानियों में प्रेम के माध्यम  से लोग-मंगल की अमर अभिलाषा, कोमलता की मृदुलता सन्निहित है तथा सहज ही मोह लेने की अद्भुत शक्ति है। आपकी कहानियों के विशाल भण्डार को देखते हुए यहाँ चन्द कहानियों को चर्चा विषय बनाया गया है जिसमें – ‘कैंसर’, ‘क्या मुझमें कोई कमी है?’, ‘सपने मरते नहीं’, ‘अपराधबोध का प्रेत’, ‘प्यार की इंटेलेक्चुअल जुगाली’ आदि। 

तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी कहानियों में प्रेम का सम्बन्ध हृदय तथा आत्मा से माना है। प्रेम दो मानव हृदयों की धड़कन की वह प्रक्रिया है जिसमें दोनों को ही एक-दूसरे के सुख-दुःख की अनुभूति होती है। वे एक-दूसरे को मन एवं आत्मा से प्रेम करते हैं इसीलिये सुख की आनन्दानुभूति तथा दुःख की पीड़ा वे एक-दूसरे से दूर रहकर भी अनुभव करते हैं। अर्थात कहा जा सकता है कि अन्तर्ज्ञान के सूक्ष्म तार उन्हें एक-दूसरे का सामीप्य अनुभव करवाते हैं। प्रेम की सौंदर्यानुभूति के प्रति फ़्रांसीसी आलोचक हेनरी पेय लिखते हैं, “लिखने से पूर्व मानव ने यथाशक्ति गहन अनुभवपूर्ण जीवन जीने का प्रयास किया, फिर उन उपलब्ध अनुभावों में अपनी कहानियों में समृद्ध किया जीवन-चरित की पुराणगाथा का-सा मूल्य प्राप्त हो गया।”

तेजेन्द्र शर्मा का आत्मानुराग इस प्रकार से प्रेम को आत्मेत्तर होने के लिये प्रवृत्त करता है। “आपने अपनी आत्मा की गहराई में उतरने का प्रयत्न किया है।” अर्थात आपने प्रेम की अनुभूति को वर्णानीत कहा है। शब्दों की सीमा में इस अनुभूति को बाँधा नहीं जा सकता। प्रेम का घाव अत्यन्त गहरा होता है। प्रेम के मार्ग में दुःख  तभी तक है जब तक प्रेमास्पद से मिलन नहीं होता है। जिस व्यक्ति के हृदय में प्रेम है, वही अमर है। अर्थात प्रेम प्रखर हो जाता है। जिसके प्रेम में ईश्वरपूर्ण सौंदर्य विद्यमान है वहीं स्वतः प्रेम का सच्चा अधिकारी है। 

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ‘कैंसर’ में प्रेम की सौंदर्यानुभूति में अनेक प्रकार के सजीव, सप्राण और संवेदनशीलतापूर्ण सहानुभूति, वेदना तथा अनुभूतियों से जीवन रूपी रस को संसिक्त करते हैं कि, “ऑपरेशन के लिये बस चार रातें बाकी थीं। मन में उमड़ते-घुमड़ते विचार जैसे रिले रेस में दौड़ रहे थे। पूनम आकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गयी। सदा की तरह आँखें बंद कर गायत्री मंत्र का जाप करने लगी। मैं उस सात्विक चेहरे को निहारे जा रहा था। समझ ही नहीं आ रहा था ऐसे फ़रिश्ते भी ऐसी भयानक बीमारी के शिकार हो सकते हैं।”

अर्थात आपने सत्य का आधार लेकर मन के संक्षोभ को साहित्य में उच्च स्थान प्रदान किया है, “देख लो नरेन, जितना जी चाहे देख लो। जितना प्यार करना चाहो कर लो। फिर ज़िन्दगी कभी भी सहज नहीं हो पाएगी... मुझ से नफ़रत तो नहीं करने लगोगे?... सच इसमें मेरा कोई दोष नहीं नरेन।” कहानी के इस भाग में तेजेन्द्र शर्मा ने पूनम और नरेन के माध्यम से आंतरिक प्रेमानुभूति को चित्रित किया है।

प्रेम की सौंदर्यानुभूति का एक विशाल कोष या रूप हमारे मन में ही होता है, “पूनम की आँखों में बस एक ही सवाल दिखाई दे रहा है... मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिश कर सकता है... मगर जिस कैंसर ने उसे चारों ओर से जकड़ रखा है... क्या उस कैंसर का भी कोई इलाज है।” अर्थात आपकी कहानी ‘कैंसर’ में प्रेम की सौंदर्य भावना अपनी विशिष्ठ विशेषता को उजागर करती है क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में औदात्य एवं पवित्रता की भावना मिलती है। तेजेन्द्र शर्मा ने पूनम के प्रेम को अनंत सौंदर्य-निधि के मधुर भावों में आलंबन किया है। यानि कि यही पूनम एवं नरेन के प्रेम की सौंदर्याभिव्यक्ति का रहस्य प्रकट करती है। 

तेजेन्द्र शर्मा अपनी कहानी ‘क्या मुझमें कोई कमी है?’ में शशि के माध्यम से स्त्री की गर्भावस्था एवं धात्री माता का जो उल्लेख किया है, वह इतनी अत्याधिक गहनता से किया है कि “जय, एक हीन सी भावना ने मन में घर कर लिया है। मुझे लगता है कि मेरी ब्रेस्ट और निप्पल नॉर्मल नहीं हैं। क्या मैं बच्चे को ठीक से दूध पिला पाऊँगी?”

यहाँ कुछ ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि तेजेन्द्र शर्मा को एक नारी हृदय प्राप्त हो। धीरेन्द्र अस्थाना ने लिखा भी है, “परकाया प्रवेश में तेजेन्द्र को दक्षता हासिल है। यानि कि वे अपने स्त्री पात्रों की भीतर से वैसे ही बोलते हैं जैसे कोई स्त्री ही कर सकती है।” आपके भावों में कोमलता, मार्मिकता, शशि की पीड़ा में स्त्री-सुलभ गहनता, उसकी तड़पन में नारीगत तरलता एवं उसके रूदन में स्त्री-सुलभ आर्द्रता दृष्टिगोचर होती है। 

“तुम भी पागल हो। अरे तुम एकदम नॉर्मल महिला हो। अंगों का छोटा बड़ा होना कोई मायने नहीं रखता। कभी पुरुष का अंग छोटा हो सकता है तो नारी का भी हो सकता है। जब बच्चा पैदा होता है तो नेचर ख़ुद ही दूध बनाना शुरू कर देती है।” अतः तेजेन्द्र शर्मा ने अत्यन्त सरलता से स्त्री-वर्ग की वेदना के साथ-साथ पति एवं पत्नी के अद्भुत प्रेम को भी दर्शाया है कि प्रेम की सौंदर्यानुभूति को सार्थकता प्रदान करती है। 

“यह तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है। अविल अलग भूखा मर रहा है। बस कल सुबह एक नयी सुबह होगी। अब यह कष्ट तुम और नहीं सहोगी और न ही अविल।... माँ हम आज ही केमिस्ट के पास जाकर फ़ॉर्मूला दूध लाएँगे। दुनियाँ में कितने बच्चे हैं जो बोतल का दूध पीकर बड़े होते हैं। शशि को हम रोज़-रोज़ शर्मिन्दा नहीं होने देंगे।” यहाँ तेजेन्द्र शर्मा ने अंतिम वाक्य  में प्रेम की सौंदर्यानुभूति को अत्यन्त अद्भुत एवं विरले ढंग से प्रकट किया है कि प्रेम को इन्द्रधनुष के रंगों में सजाकर अतुलनीय बना दिया है।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ‘सपने मरते नहीं’ में दाम्पत्य जीवन के विवध रंगों के अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं मर्मस्पर्शी बनाया है। आपका मानना है कि जहाँ रिश्तों में सम्मान तथा आदर नहीं होगा वहाँ प्रेम पनप ही नहीं सकता। आपकी इस कहानी में जो प्रेम की पराकाष्ठा है वह अपने-आपमें बेहद अतुलनीय है, “डिलीवरी का दर्द सहते हुए इला बस एक आवाज़ सुनना चाहती थी। अपने पहले बच्चे की आवाज़... प्रसव की पीड़ा के समय उसने नीलेश के हाथ को कसकर पकड़ लिया था।... नीलेश अपनी इला के दर्द को समझ रहा था... सन्तान एक ‘स्टिल बॉर्न बेबी’ था यानि कि मृत पुत्र। यहाँ यदि हम तेजेन्द्र शर्मा की तुलना टी. डब्ल्यु बीच के साथ करें तो अन्यथा न होगा क्योंकि टी. डब्ल्यु बीच के अनुसार, “पात्र के आंतरिक आत्म स्वरूप का ज्ञान कथा में वर्णित क्रिलापों द्वारा एवं क्रिया कलापों का उद्भव पात्र आन्तरिक मनोभूमि पर होता है।”

“ये काउंसलर क्या मेरा दर्द मुझसे अधिक समझ सकती है? बच्चा मेरा मरा है या उसका?” ... नीलेश इला को यह भी नहीं समझा पा रहा था कि उसका दर्द इला से कई गुणा अधिक है। बच्चा तो दोनों का मरा है। अर्थात तेजन्द्र शर्मा का मानना है कि प्रेम स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो प्रत्येक प्राणी में पाई जाती है। युग-युगान्तर में प्रेम को पवित्र भाव के रूप में ग्रहण किया जाता रहा है। प्रेम के समतुल्य अन्य कुछ भी नहीं है। आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, “यह प्रेम सोद्देश्य भी है। लौकिक प्रेम के बहाने रचनाकार सदा अलौकिक सत्ता की ओर इशारा करता रहता है।”

वास्तव में मनोविज्ञान जिसे मानव जीवन की प्रेरणा मानता है, वह हमारे अतीत के ही संस्कार हैं। प्रेम की सौंदर्यानुभूति स्वप्नों के माध्यम से ही व्यक्त होती है। आपने अपनी कहानी ‘सपने मरते नहीं’ में प्रेम की सौंदर्यानुभूति को प्रेम और सौंदर्य की अनुभूति के माध्यम से आध्यात्मिक प्रेम की पुनःप्रतिष्ठा प्रदान की है। प्रेम में हृदय की पावनता, शुद्धता और त्याग की भावना है, “नीलेश, तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?... तुम मुझे छोड़ना मत नीलेश, प्लीज़ मुझे छोड़ना मत... मैं मर जाऊँगी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊँगी।” तेजेन्द्र शर्मा यहाँ यही कहना चाहते हैं कि शारीरिक मिलन की अपेक्षा मानसिक वृत्तियों के सामंजस्य की अत्यन्त आवश्यकता होती है। आत्मा और शरीर, इन दोनों के समान भाव से एक-दूसरे में लय की प्रक्रिया का नाम ही प्रेम है। “नीलेश की बलिष्ठ बाँहों में वह सुरक्षित महसूस कर रही थी। “देखो इला, दुनियाँ का कोई भी हादसा हमारे रिश्तों को ठेस नहीं पहुँचा सकता। सपने कभी नहीं मरते... हम नये सपने देखेंगे, उन्हें पूरा करेंगे। जीवन कभी नहीं रुकेगा।” अर्थात अपने प्रेम रूपी जीवन को सपने मरते नहीं की माध्यम से जीवन में नये प्रेम की सौंदर्यानुभूति के साथ नये सूर्य को उदित किया है।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ‘अपराध बोध का प्रेत’ में आपने प्रेम-भावना की अनुभूति को अत्यन्त परिपुष्ट किया है। आपने सुरभि तथा नरेन के प्रेम आवरण में छुपे हुए अनंत, अगाध एवं अपरिमेय प्रेम के दर्शन ...... में परिणति सौंदर्य की अनुभूति करवाई है, “मेरी छाती तो कटवा आए... मुझे प्यार कर पाओगे अब?... सुरभि की बेचैन निगाहें दीवार पर जैसे कुछ ढूँढ रही हैं। नरेन के माथे पर पसीना छलकने लगता है। कहीं सुरभि के जाने से पहले उसका ही दम न निकल जाए।” अर्थात आपने नरेन एवं सुरभि के प्रेम की प्रगाढ़ता को अत्यन्त ही मार्मिकता एवं वेदना से प्रकट किया है। आप प्रेम की वेदना को इस कहानी के माध्यम से विश्व भर की प्रेम-वेदना का साकार रूप बना दिया है। 

“कैसा है यह इन्सान!... मर जाऊँगी न तब ढूँढते फिरना... हाथ मलते रह जाओगे...” रोने लगती है। हिचकियाँ बँध जाती हैं... “मेरे पास बैठा करो ना... तुम्हारे बिना बिस्तर काटने को दौड़ता है।... मर जाऊँगी तो कर लेना साहित्य की सेवा।”

यहाँ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हृदय की उन्मुक्त वेदना स्वयं ही अपने अनुरूप का सृजन कर लेती है। अंततः तेजेन्द्र शर्मा का हृदय जितना विशाल एवं करुणामय है वैसे ही आप प्रेम की निर्मलता से युक्त चरित्रों के माध्यम से पावन हृदय का अगाध अपरिमेय प्रेम की सौंदर्यानुभूति को उजागर करते हैं।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ‘प्यार की इंटेलेक्चुअल जुगाली’ में आपने प्रेम तथा काम को भिन्न-भिन्न भाव न बताते हुए एकाकार बताया है कि इसका विश्लेषण असंभव प्रतीत होता है। निःसंदेह आपने इस कहानी के माध्यम से आधुनिकता अस्तित्ववादी दर्शन को चित्रित किया है।

हैवलॉक के ये शब्द आपकी कहानी की सत्यता को प्रकट करते हैं कि, “मनुष्य में कामेच्छा नैसर्गिक है। अंततः इस भावना को भारत में नैतिक पवित्रता की बात करता है किन्तु पश्चिम में प्रेम तथा काम को अत्यन्त पवित्र दृष्टिकोण से उच्च स्थान प्रदान करता है।”

तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी कहानी ‘प्यार की इंटेलेक्चुअल जुगाली’ में मानव तथा हीर के प्रेम के माध्यम से प्रेमानुभूति को संपूर्णतः सत्य, सुन्दर तथा आनन्दमय बना दिया है कि “जब आपने पहली बार मुझे कहा कि आप मुझे प्यार करते हैं तो मेरी तो साँस ही रुक सी गयी थी।... इतना बड़ा चित्रकार मुझे प्यार करेगा।”

अर्थात आपने प्रेम में जो एक निष्ठता त्याग और आत्मसमर्पण की भावना का परिचय दिया है वह स्वयं में ही महुमूल्य प्रतीत होता है “वो ‘तरसन’ आत्मिक प्यार में रूपांतरित हो कर, उन्हें ‘एकात्म’ कर देती है। उनकी साँसें, रोम-रोम दूर होने पर भी, एक-दूजे में समाहित रहता है।... बहुत गहरा... दिल और रूह की रतों में रचा-बसा अलौकिक प्यार।

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