विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

शब्द-संसार का सार्थक प्रयास है ‘मैं कवि हूँ इस देश का’ काव्य-संग्रह

पुस्तक चर्चा | मनोज कुमार ’मनोज’

कवि होना न तो साधारण बात है, न ही असाधारण अपितु यह तो सौभाग्य का विषय है। वह उस देश का हो या इस देश का हो, वह इस माटी का हो या उस मिट्टी का हो। उसका जन्म कहाँ हुआ, वह कहाँ रहता है...? और आज कहाँ बस गया है? वह किसकी उपासना करता है या नहीं भी करता। उसका विश्वास हमसे अलग है या वो हमारा विश्वासी या हाम्मी है। यहाँ यही सबसे ख़ास और प्रमुख है कि श्रद्धेय तेजेन्द्र शर्मा का कवि होना ही बड़ी बात है और उनकी शब्द प्रसवनी लेखनी ने जो शब्द प्रसूत किए हैं उसे नाम दिया गया है ’मैं कवि हूँ इस देश का’। 

कवि, जो शेष रहता है, जिसे सब छोड़ देते हैं या जो उपेक्षित कर दिया जाता है और विशेष, जो श्रेष्ठ होता है, जिसे सुंदर कहते हैं, वह भी उसके आकर्षण का केन्द्र बनता है परन्तु यदि वह वास्तव में सच्चा रचनाकार या कवि है तो दोनों ही स्थितियों में न्याय करता है। उसे ’सत्यं शिवं सुंदरम्’ की भावना को भी आभावान बनाना है और जिस असत्य पर दुनिया मौन हो जाए वहाँ उपनिषद् के ’चरैवेती चरैवेती’ की भावना को सार्थक करना है। जब सत्य की राह सूनी हो जाए तो गुरु रवींद्रनाथ टैगौर के ’एकलै चलो, एकलै चलो’ के ध्येय वाक्य के मान की रक्षा करनी है। हाँ, उसी सार्थक पहल का नाम है श्री तेजेंद्र शर्मा और उनकी कृति ’मैं कवि हूँ इस देश का’। 

गोपालदास ’नीरज’ ने सही कहा है-  ’मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य’ और यह हम सभी का सौभाग्य है कि उन्होंने हमें कविताओं के ऐसे कुंज के दर्शन कराए हैं, जिसमें अनेक नए विषय समाहित हुए हैं। ‘मैं कवि हूँ इस देश का’ का प्राक्कथन मेरे मन को छू गया। उन्होंने अपनी कविताएँ और अपने लिए कुछ वर्जनाएँ तथा सीमा रेखाएँ स्वयं खींची हैं। मुझे यह बहुत बड़ी बात लगती है। वे कहते हैं, उन्हीं के शब्दों में “मेरे लिए कविता विचारमात्र नहीं है। कविता में अभिव्यक्ति बहुत महत्त्वपूर्ण है। कविता को दिमाग़ से कहीं अधिक मैं दिल के क़रीब मानता हूँ। कविता जब तक दिल को न छू जाए, तब तक वह केवल इंटेलेक्चुअल अय्याशी है।”

मैं भाई तेजेद्र शर्मा के इस साहस को प्रणाम करता हूँ। बड़े-बड़े कवि भी ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचकर रचना करने से घबराते हैं, पर आपने यह लिखा ही नहीं किया भी है। मैं व्यक्तिगत रूप से भी आपको बधाई देता हूँ। यह कविता-संग्रह हिंदी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं में एक साथ है, जो दोनों भाषाओं के पाठकों को लुभाता है। व्यक्ति जिन आस्थाओं, विश्वासों और प्रतीकों को जी लेता है, जीवन-पर्यन्त उसकी आत्मा में बस जाते हैं। तेजेन्द्र शर्मा जी टेम्स नदी के किनारे खड़े होकर कैसे गंगा को याद करते हैं। मन को छूता है - 

टेम्स दौलत है, प्रेम है गंगा, टेम्स ऐश्वर्य है, भावना गंगा।
टेम्स जीवन का प्रमाद है, मोक्ष की कामना है गंगा ॥

टेम्स नदी की भौतिक सुंदरता और वैभव से कवि आकर्षण अवश्य पाता है परन्तु वह उसमें माँ गंगा को तलाशना आरम्भ करता है तो उसे बेहद निराशा होती है। उसमें जी लगाने के लिए बहुत कुछ है मगर वह माँ ही नहीं है तो उसमें ममत्व कहाँ से होगा। अतः उसका विश्वास बोल उठता है - 

जी लगाने के कई साधन हैं टेम्स नदी के आस-पास
गंगा मैया में जी लगाता है हमारा अपना विश्वास। 

और अब उन पंक्तियों की ओर ले चलते हैं जिनके लिए आप मेरे कवि भाई तेजेन्द्र शर्मा की प्रशंसा अवश्य करेंगे। उन्होंने इग्लैंड की जीवन-रेखा कही जाने वाली टेम्स नदी के मनोहारी तट पर खड़े होकर साम्राज्यवाद और शीषण की लोलुप आकांक्षाओं की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। 

देखें इन साहसिक पंक्तियों को - 

टेम्स दशकों, शताब्दियों तक करती है गंगा पर राज 
फिर सिकुड़ जाती है, ढूँढती रह जाती है अपना ताज। 

यही सत्य है। शोषण, गुलामी और साम्राज्यवाद किसी भी समाज की शाश्वत परम्परा और संस्कृति नहीं हो सकती। इन्हें स्वतंत्रता और मानवता के हाथों मरना ही था। 

बुराई यदि बुराई ही दिखे तो उससे लड़ना आसान हो जाता है मगर जब बुराई-अच्छाई का आवरण ओढ़कर आती है तो उससे पार पाना कठिन है। 

इस भावना का एक चित्र देखिए -

अच्छा उन दिनों होता था बस अच्छा
और बुरा पूरी तरह से बुरा।
मिलावट राम और रावण में 
होती नहीं थी उन दिनों।
रावण रावण रहता और राम राम॥

जब रचनाकार समाज और दुनिया पर तंज़ करता है तो एक उँगली अपनी ओर भी रखने का साहस करता है। यही न्याय संगत भी है। मेरा अपना भी व्यक्तिगत मत यही है और कविता इसका सबसे सशक्त साधन है - 

जिन आँखों में पाते जन्नत
उनमें ही आँसू लाते हैं।
हम ऐसे क्यों हो जाते हैं। 

ऐसी पंक्तियों बुराई के चेहरे पर गहरी खरोंच छोड़ जाती है। जिनसे बुराई का आहत होना स्वाभाविक है। कविता कवि के जीवन का दर्पण होती है। जीवन जगत् का दर्पण है परन्तु यह मानव के स्वभाव, आचरण और अभिरुचि का पर्याय है। कवि ईश्वर-विश्वासी है और निर्गुण ब्रह्म का अनुगामी है -

तुम्हारी आवाज़ आदि है, अनादि है
उसका न कोई पर्याय है, न ही कोई विलोम
तुम्हारी आवाज़ को ही सब उच्चारते हैं। 

’मैं कवि हूँ इस देश का’ काव्य-संग्रह में जहाँ अतुकांत रचनाओं को स्थान दिया गया है, वहीं भाई तेजेंद्र शर्मा जी ग़ज़ल भी बड़ी ख़ूबसूरती से कहते हैं। ग़ज़ल का एक तेवर देखिए -

जब तलक काम था मैं धड़कनों में था उनकी 
अब मेरे नाम से ही दिन ख़राब हो जाते हैं। (अवसरवादिता)

और 

भावनाओं से नहीं उनका कोई नाता है, 
पैसे वाले ही आज उनके दिल को भाते हैं। 
ठोस सच्चाई ज़िन्दगी की जानते वो नहीं
सफ़र पे आख़िरी सब हाथ ख़ाली जाते हैं। (जीवन-सत्य)

जो लोग धर्म के नाम पर हिंसा करते हैं और अपने आप को आलिम और पंडित की संज्ञा देते हैं। उनके शेरों ने उनका भी सच बयान किया है -

हज़ारों पोथियाँ लिख डालीं शान में तेरी
तुझे परमात्मा, अल्लाह और ख़ुदा जाना।
तुम्हारे नाम पर कर डाला क़त्ल-ए-आम यहाँ
भजन सुने, पढ़ी नमाज सुबहो शाम यहाँ।

संसार की बड़ी शक्तियों और आक़ाओं पर भी भाई तेजेन्द्र शर्मा ने बड़े गहरे व्यंग्य किए हैं। जो उनके सीने में गहरी जलन पैदा करते हैं। संसार में शांति के नाम पर शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा शोषण तथा ताक़त के मद में चूर होकर छोटे राष्ट्रों को मिटा रहे हैं। ’मकड़ी बुन रही जाल’ इस सच को उजागर करती है। देखे इसकी कुछ पंक्तियाँ -

मकड़ी बुन रही जाल...
ऊपर से नीचे आता पानी 
जूठा हुआ नीचे से 
बकरी के बच्चे का
होगा अब बुरा हाल
मकड़ी बुन रही है जाल…

भाई तेजेन्द्र शर्मा ने इस काव्य-संग्रह का नाम ’मैं कवि हूँ इस देश का’ यह अवश्य रखा है पर मैं मानता हूँ किसी भूखण्ड पर आप सीमाएँ अवश्य खींच सकते हैं पर कवि की भावनाएँ सीमाओं में क़ैद नहीं हो सकतीं। स्वयं कवि तेजेन्द्र शर्मा भी यह कार्य नहीं कर सके। वे उस देश के ही नहीं इस देश के भी कवि हैं। कोई भी व्यक्ति चाहे भी तो अपने अतीत से पूरी तरह अलग नहीं हो सकता। उनकी रचनाएँ और विषय उन्हें संसार का कवि कह रहे हैं पर यह उनकी महानता है कि वे स्वयं को इस देश का कवि ही मानते हैं।

उनकी इस रचना-धर्मिता और रचना-संसार को बुनने के लिए बहुत-बहुत साधुवाद। उन्हीं की एक आवाज़, शब्द-वीथिका और शब्दों के मखमली संसार में आपको छोड़कर विदा लेता हूँ -

तुम्हारी आवाज़ ही कृष्ण की राधा है, 
विष्णु की लक्ष्मी है, शिव की पार्वती है।
और यही है राम की जानकी। 

माँ जानकी, प्रभु राम आदि सभी शक्तियाँ आपको पुनः नवीन शब्द-निधियाँ प्रदान करते रहें। इसी आशा के साथ….

मनोज कुमार ’मनोज’ (अन्तर्राष्ट्रीय गीतकार)
83, कुदन विला, 
रोशनपुर डौरली, मेरठ (उ.प्र.)
दूरभाष - 09837606377
email – manojkumarmanojmrt@yahoo.com    
 

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